आर्थिक संकट और गहराया, कोर सेक्टर में 14 साल की सबसे बड़ी गिरावट
सरकार के तमाम दावों के उलट देश की आर्थिक स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है। ताज़ा रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। देश के 8 कोर सेक्टर यानी उद्योग जगत के सबसे अहम क्षेत्रों में सितंबर महीने का उत्पादन अगस्त के उत्पादन से 5.2 प्रतिशत कम हुआ है। अगस्त में इन कोर सेक्टर का उत्पादन 0.5 प्रतिशत कम हो गया था। ये 8 क्षेत्र हैं, कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, स्टील, सीमेंट, बिजली, उर्वरक और रिफाइनरी उत्पाद यानी कच्चे तेल साफ़ करने के संयंत्र से निकले उत्पाद।
सबसे बुरा हाल कोयला क्षेत्र का है। कोयला क्षेत्र का उत्पादन पिछले महीने की तुलना में 20.5 प्रतिशत कम हो गया। प्राकृतिक गैस उत्पादन 4.9 प्रतिशत कम हुआ। कच्चे तेल के उत्पादन में कोई बदलाव नहीं हुआ। रिफाइनरी उत्पादों के उत्पादन में 6.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। स्टील उत्पादन में 0.3 प्रतिशत की मामूली गिरावट हुई।
उर्वरक एक मात्र क्षेत्र है, जिसका उत्पादन अगस्त की तुलना में बढ़ा, इसमें 5.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
इसके पहले अगस्त में ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ दर्ज किया गया था, यानी पहले से भी कम उत्पादन हुआ था। जुलाई के मुक़ाबले अगस्त में औद्योगिक विकास 4.3 प्रतिशत से घटकर -1.10 प्रतिशत पर आ गया है। इसमें ऋण यानी माइनस का निशान भी है। इसका मतलब हुआ कि वृद्धि होने की जगह कमी हुई है। विकास के भारी-भरकम दावों के बीच 1.10 प्रतिशत की वृद्धि ही बहुत कम थी पर तथ्य यह है कि 1.10 प्रतिशत की कमी हुई है। ये आँकड़े फ़रवरी 2013 के बाद सबसे कमज़ोर हैं।
देश के 23 औद्योगिक समूहों में से 15 में निर्माण वृद्धि घटते हुए नकारात्मक हो गई है। इसे औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईपीआई) कहते हैं। इससे पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक वृद्धि की क्या स्थिति है। माँग कम होने के कारण औद्योगिक उत्पादन कम हो जाना डरावना है। ख़ासकर तब जब अंतरराष्ट्रीय स्थिति भी अच्छी नहीं है।
देश में अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्थितियों की चाहे जितनी आड़ ली जाए, मुख्य कारण नोटबंदी और फिर बगैर तैयारी के जीएसटी लागू किया जाना ही है। रही-सही कसर ख़राब हालत में भी अधिकतम टैक्स वसूली के लिए ‘टैक्स आतंकवाद’ जैसी स्थिति बना देने से भी पूरी हो गई है।
हर चीज को राजनीतिक सफलता से जोड़ने और मीडिया मैनेजमेंट को ही राजनीतिक सफलता का आधार मानने का यही हश्र होना था। हालाँकि, ख़बर है कि सरकार सूक्ष्म और लघु उद्योगों यानी एमएसएमई के लिए एक्शन प्लान तैयार कर रही है। सरकार जीडीपी में एमएसएमई की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत करना चाहती है। इस पर तेज़ी से काम हो रहा है।