कोर सेक्टर चार साल के न्यूनतम स्तर पर, वृद्धि दर शून्य के पास
नरेंद्र मोदी सरकार चाहे जो दावे करे, सच यह है कि अर्थव्यवस्था लगातार तेज़ी से गिर रही है, संकट गहराता जा रहा है और स्थिति पहले से बदतर होती जा रही है। इतना ही नहीं, तमाम इन्डिकेटर बता रहे हैं कि निकट भविष्य में भी हालात सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। हालत यह है कि यदि सरकार ने तुरन्त कोई कोशिश नहीं की तो अर्थव्यवस्था भयानक मंदी के दौर में फिसल जाएगी, जहाँ से निकलना बेहद मुश्किल होगा।
लाइव मिंट ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि अप्रैल में अर्थव्यवस्था के 6 इन्डिकेटर बता रहे थे कि अर्थव्यवस्था पीछे जा रही है, उसके एक महीने बाद यानी मई में 8 इन्डिकेटरों ने संकेत दिया कि आर्थिक स्थिति बदतर हो रही है।
क्या कहते हैं आर्थिक इन्डिकेटर
उपभोक्ता से जुड़े चार इन्डिकेटरों को देखने से लगता है कि माँग और खपत लगातार कम हो रही है। गाड़ी, ट्रैक्टर, दोपहिया वाहन और घरेलू हवाई यात्रा में बिक्री में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। ऐसा लगातार पाँचवें महीने हो रहा है। इसमें से तीन इन्डिकेटर यानी गाड़ी, ट्रैक्टर, दोपहिया वाहन की बिक्री में गिरावट साल भर से देखी जा रही है। रेल से माल ढोने के मामले में भी कमी आई है।यही हाल उद्योग जगत का है। उद्योग सेक्टर में गिरावट का हाल यह है कि जून में यह 0.20 प्रतिशत पर पहुँच गई, यह 50 महीने यानी 4 साल से भी अधिक समय के न्यूनतम स्तर पर है। अर्थव्यवस्था का हाल बुरा तो पहले से ही है, इस बार मानसून के देर से आने और औसत से कम बारिश होने का भी असर पड़ा है।
0.2 प्रतशित की वृद्धि
अब तो सरकार भी इसे मानने लगी है। वाणिज्य मंत्रालय ने बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में जो आँकड़े दिए हैं, उनसे यह साफ़ है कि कच्चा तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस, रिफ़ाइनरी के उत्पाद, उर्वरक, स्टील, सीमेंट और बिजली क्षेत्रों के कामकाज में सिर्फ़ 0.20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह चिंता की बात इसलिए है कि पिछले महीने ही 4.30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई थी। पिछले साल इसी दौरान इन क्षेत्रों में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।अप्रैल और जून के बीच वृद्धि की दर 3.5 प्रतिशत थी। दो साल पहले इसी दौरान 5.50 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। साफ़ है, बीते दो साल में औद्योगिक विकास में लगातार गिरावट आई है।
सबसे अहम चुनिंदा 8 सेक्टरों में वृद्धि की दर 0.2 प्रतिशत हो जाए तो चिंता की बात है कि यह शून्य वृद्धि के पास पहुँच गई। इन क्षेत्रों में गिरावट चिंता की बात इसलिए भी है कि ये 8 सेक्टर उद्योग जगत के कुल कामकाज का 40.2 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं।
सीएमआईई रिपोर्ट में क्या है
निफ्टी में देश की 50 बड़ी कंपनियाँ शामिल हैं। इस तिमाही 28 कंपनियों के नतीजे आए हैं, जिनमें 21 औद्योगिक कंपनी हैं। मुनाफा 11% कम हुआ है। 20 हज़ार कंपनियों के सर्वेक्षण के आधार पर सीएमआईई का कहना है कि मुनाफा दर गिरना दीर्घकालीन प्रवृत्ति है - 2007 में जहाँ कुल पूंजी पर कर पश्चात मुनाफे की दर 8.1% थी, 2018 में 1.7% ही रह गई।
मारुति की बिक्री इस तिमाही में 33.5% घटी है। अन्य कंपनियों का भी ऐसा ही हाल है।
ब्लूमबर्ग के अनुसार सिर्फ़ 7 बड़े शहरों में 4.643 ट्रिलियन रुपये के आवास निर्माण प्रोजेक्ट किसी न किसी चरण में अटके हुये हैं।
इकनॉमिक टाइम्स बता रहा है कि पिछले पाँच साल में बैंकों ने कॉर्पोरेट एनपीए से बचने के लिए बड़ी मात्रा में कर्ज़ लोगों को दिए गए थे। मसलन, गृह, कार, पर्सनल, क्रेडिट कार्ड, एजुकेशन में काफ़ी कर्ज दिया गया था। अब छँटनी व कम वेतन वृद्धि से उनका भुगतान अटकने लगा है।
इसके पहले भी अर्थव्यवस्था के खराब प्रदर्शन करने की ख़बरें लगातार आती रही हैं। घरेलू और विदेशी संस्थाओं ने इस पर एक बार नहीं, कई बार चिंता जताई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक ने साफ़ तौर पर कहा है कि भारत का विकास दर गिरा है, यह और गिरेगा। रिज़र्व बैंक ने भी इसकी पुष्टि कर दी है।
यही वजह है कि रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में लगातार तीन बार कटौती की है और इसने संकेत दिया है कि ज़रूरत पड़ने पर वह आगे भी कटौती कर सकती है। केंद्रीय बैंक ने आईआईपी यानी इनडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन की वृद्धि दर में कटौती कर दी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बजट में जो प्रावधान किए गए हैं, उससे स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है। यह मुमकिन है कि बजट की वजह से कच्चे तेल, रिफ़ाइनरी उत्पाद, सीमेंट और बिजली क्षेत्र में माँग थोड़ी बढ़े और स्थिति में मामूली सुधार हो।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने सरकार की ज़बरदस्त आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह साल पहली बार सत्ता में आने के बाद यानी 2014 से ही ग़लत नीतियों पर चल रही है। उन्होंने कहा, 'किसानों को बर्बाद कर दो, छोटे व्यापारियों को बर्बाद कर दो, उद्योग व्यापार को बर्बाद कर दो, और समाज के सभी तबके को तबाह कर दो। साल 2014 से ही जिन आर्थिक नीतियों पर चल रही है, उनका आशय यही है।'
Destroy farmers, destroy small traders, destroy entrepreneurs, destroy businesses - bring misery to all sections of society - that seems to be the sole motive of the govt's economic policies since 2014. And it wants to avoid taking responsibility for its actions. pic.twitter.com/CuotWzCnW3
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) August 1, 2019
सवाल यह उठता है कि अब आगे क्या होगा। क्या सरकार तुरन्त कोई ऐसा कदम उठाएगी, जिससे अर्थव्यवस्था को बल मिले, कोई सहारा मिले और यह एक बार फिर सुधरने लगे ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि सरकार ने कोई घोषणा न की है और न ही ऐसा लगता है कि वह ऐसा कुछ करेगी। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में 5 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था करने की घोषणा तो कर दी, पर यह नहीं बताया कि ऐसा कैसे होगा। आख़िर सरकार क्या करने जा रही है जिससे सकल घरेलू उत्पाद की दर एकदम से छलाँग लगा दे