मुख्यमंत्री की शपथ 'योगी' के रूप में नहीं होती
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि यदि उन्हें मसजिद निर्माण के समय निमंत्रित किया जाता है तो वह इसमें एक योगी होने के नाते भाग नहीं लेंगे। उन्होंने तर्क दिया था कि, 'मुख्यमंत्री के अलावा मैं एक योगी भी हूँ।'
हिन्दू योगी!
तर्कशास्त्र में किसी तर्क-वाक्य की सत्यता मापने का तरीका प्रतिलोम प्रक्रिया से भी होता है। अगर प्रश्न होता कि 'एक हिन्दू योगी के रूप में क्या वह मसजिद तामीर होने के आयोजन में जायेंगे' और यदि उनका उत्तर होता कि 'मैं योगी के अलावा सूबे के लोगों का मुख्यमंत्री भी हूँ, लिहाज़ा (समय हुआ तो) जरूर जाऊंगा', तो वह उत्तर सभी प्रजातांत्रिक, संवैधानिक, नैतिक, आध्यात्मिक व वैयक्तिक पैमाने पर खरा उतरता। धर्म, अनुष्ठान, तदनुरूप जीवन शैली सार्वजानिक जीवन के नहीं, व्यक्तिगत जीवन के चुनाव हैं, जो स्व-स्वीकृत सार्वजनिक जीवन के तकाजों के ऊपर नहीं रखे जा सकते।
मुख्यमंत्री ने संविधान में निष्ठा की शपथ ली थी न कि सनातन-हिन्दू धर्म की या गोरक्षपीठ के पीठाधीश की। इसी निष्ठा की शपथ सुप्रीम कोर्ट का जज भी लेता है। क्या वह कह सकता है कि एक धर्म-विशेष की पूजा पद्धति पर आये मुकदमे पर वह किसी और धर्म के रीति-रिवाजों के पैरामीटर्स के अनुरूप फैसला देगा, क्योंकि वह स्वयं उस धर्म का अनुयायी है
क्या कहा मुसलिम संगठन ने
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गयी ज़मीन पर मसजिद बनाने वाली संस्था इंडो-इसलामिक कल्चरल फाउंडेशन ने कहा है कि इसलाम में मसजिद तामीर करने में शिलान्यास की कोई व्यवस्था नहीं है। उसने कहा, 'हम मुख्यमंत्री को अस्पताल, पुस्तकालय और अन्य जन-सुविधाओं की इमारतों के शिलान्यास पर बुलायेंगे।' यानी, यदि मुख्यमंत्री का जवाब सकारात्मक होता तो वह बहुत ही गरिमामय माना जाता।मुख्यमंत्री के उद्गगार ने दो गंभीर सवाल पैदा किए हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था से जुड़ा है जबकि दूसरा हिन्दू धर्म से। विश्व की सभी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में एक मौलिक सिद्धांत है : व्यक्ति की चाहे कितनी भी भूमिकाएं हों, जिस भूमिका में वह स्वेच्छा से और सार्वजानिक रूप से प्रतिज्ञाबद्ध होता है, वह अन्य सभी भूमिकाओं पर वरीयता रखता है।
कर्तव्य की वरीयता
एक कलेक्टर पूर्णकालिक नौकर होता है और आपदा के समय वह बाढ़ की विभीषिका से लोगों को बचाने की जगह पति- या पितृ- धर्म नहीं निभा सकता या सेना का अधिकारी सीमा पर व्यक्तिगत धार्मिक अनुष्ठान को सुरक्षा के ऊपर वरीयता नहीं दे सकता। एक मंत्री किसी व्यापारी से अन्तरंग सम्बन्ध को व्यक्तिगत मुद्दा कह कर ख़ारिज नहीं कर सकता।
उसी तरह अगर किसी समुदाय ने मसजिद की तामीर के अवसर पर अपने मुख्यमंत्री को निमंत्रित किया है तो वह संविधान किसी भी व्याख्या के तहत यह कह कर इनकार नहीं कर सकता कि वह 'योगी भी है' क्योंकि जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो उसमें आदित्य नाथ योगी एक नाम था न कि आध्यात्मिक/धार्मिक रास्ते का चुनाव।
मुख्यमंत्री या पीठाधीश
अगर योगी का तर्क मान लिया जाए तो राष्ट्रपति भी निष्पक्ष नहीं रह सकता, क्योंकि उससे भी अपेक्षा की जाती है कि जिस दिन पद की शपथ लेगा वह दलगत सोच से ऊपर हो जाएगा। यही अपेक्षा एक राज्यपाल या स्पीकर से भी की जाती है। बीते 5 अगस्त को राम मंदिर शिलान्यास के कार्यक्रम में भी वह एक 'योगी' की तरह प्रधानमंत्री की आगवानी नहीं कर रहे थे, न ही उनकी शिरकत किसी धर्मानुयायी की तरह थी। निमंत्रण-पत्र पर भी 'योगी आदित्यनाथ' और ठीक नीचे 'मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश' लिखा था, न कि 'पीठाधीश, गोरक्षपीठ, गोरखपुर'।योगी की पहली परिभाषा ऋग्वेद के दशम मंडल के 136वें अध्याय के तीसरे-चौथे श्लोक में मिलती है। 'मुनिर्देवस्य देवस्य, सौकृत्याय सखा हित' मुनि (गेरुवाधारी) सभी देवों के पवित्र कार्यों में सखा/सहायक होता है।' महोपनिषद का पूरा श्लोक है 'अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम, उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम' (यह अपना है और वह पराया, यह छोटे चित्त वाले लोग कहते हैं जबकि उदार चरित्र वाले पूरी दुनिया को ही अपना परिवार समझते हैं।’
कौन है योगी
यह श्लोक संसद भवन के प्रवेश द्वारा उकेरा गया है ताकि सार्वजानिक जीवन में रहने वाले इसका संज्ञान लें। आदित्यनाथ संसद के कई बार सदस्य रहे हैं, जहाँ सांसद के रूप में भी उन्हें संविधान में निष्ठा की शपथ दिलाई गयी थी।गीता के अध्याय 6 में योगी की परिभाषा 'युक्त इत्युच्यते योगी, सम्लोष्ठाश्मकांचनः' (जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सोना एक सामान हैं) बताया गया है। अगले श्लोक में मित्र, शत्रु, साधु या पापी के प्रति समभाव अपनाने वाले को ही योगी की मान्यता दी गयी है।
संवैधानिक दायित्व
भारतीय समाज को न तो आदित्यनाथ के योगी होने से मतलब है न ही उत्तर प्रदेश की जनता को उनके आध्यात्मिक मुकाम से ऊपर पहुँचने या न पहुँचने से।
अगर मंदिर के शिलान्यास में वह मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री की आगवानी करते हैं (आमतौर पर एक सन्यासी इस तरह के प्रोटोकॉल से ऊपर होता है) तो उन्हें मसजिद के तामीर होते वक़्त बुलाये जाने पर जाना उनका संवैधानिक, वैधानिक और नैतिक दायित्व है।
'तयोस्तु कर्मसन्यासात कर्मयोगो विशिष्यते' (फिर भी कर्मसंन्यास से कर्मयोग बेहतर है) कह कर कृष्ण ने मार्ग भी दिखा दिया है।
देश के सबसे बड़े सूबे में अल्पसंख्यकों की संख्या क़रीब चार करोड़ है और उन्हें जब यह अहसास होगा कि हमारा मुखिया दो व्यक्तित्व रखता है, जिसमें एक उनके धार्मिक अनुष्ठान से हिन्दू/योगी होने के नाते विरत रहता है तो वह मायूस होगा। फिर उसे यह भी नहीं मालूम कि कब कौन सा व्यक्तित्व मुखर होगा और कौन सा गौण। मुख्यमंत्री के रूप में गेरुआधारी 'योगी' ने जिस दिन शपथ लिया, उसी दिन वह 'कर्मयोगी' हो गए न कि कर्म-सन्यासी (योगी) रहे।