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बीएमसी चुनाव: पसोपेश में कांग्रेस, अकेले लड़ें या अघाडी के साथ

बीएमसी चुनाव: पसोपेश में कांग्रेस, अकेले लड़ें या अघाडी के साथ

महाराष्ट्र में शिव सेना और एनसीपी के साथ सरकार में शामिल कांग्रेस इन दिनों पसोपेश से गुजर रही है। 

महाराष्ट्र में शिव सेना और एनसीपी के साथ सरकार में शामिल कांग्रेस इन दिनों पसोपेश से गुजर रही है। कांग्रेस 2022 में होने वाले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के चुनाव में अकेले दम पर उतरना चाहती है लेकिन मजबूरी ये है कि वह महा विकास अघाडी सरकार में शामिल है। 

बीएमसी के चुनाव फरवरी, 2022 में होने हैं लेकिन देश की इस सबसे बड़ी महानगरपालिका के चुनावों के लिए एक साल पहले ही तैयारी शुरू हो जाती है। 

मुंबई कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने अशोक जगताप ने कहा है कि कांग्रेस को बीएमसी का चुनाव अपने दम पर लड़ना चाहिए। जबकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यह साफ कर चुके हैं कि महा विकास अघाडी सरकार में शामिल तीनों दल सभी स्थानीय निकाय चुनावों में मिलकर ताल ठोकेंगे और बीजेपी को हराएंगे। शिव सेना के अलावा एनसीपी भी इस बात पर सहमत है कि बीएमसी का चुनाव मिलकर ही लड़ा जाना चाहिए। 

विधान परिषद चुनाव में जीत

यह बात सही भी है क्योंकि इसी महीने हुए विधान परिषद (एमएलसी) के चुनावों में महा विकास अघाडी ने बीजेपी को चित कर दिया था। 6 सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी को सिर्फ़ 1 सीट पर जीत मिली थी। इससे उद्धव ठाकरे सरकार ने संदेश दिया था कि महा विकास अघाडी का गठबंधन अटूट है और तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ें तो महाराष्ट्र में बीजेपी को हराना आसान काम है। 

कांग्रेस चूंकि राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए वह एनसीपी और शिव सेना से ख़ुद को कमतर नहीं दिखाना चाहती। लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में पिछले एक साल में जिस तरह ठाकरे सरकार चली है, उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस को वो सियासी अहमियत नहीं मिलती, जिसकी वह हक़दार है।

इस ओर इशारा ख़ुद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी कर चुके हैं, जब उन्होंने एक बयान में ये कहा था कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र में फ़ैसले लेने वाला प्रमुख दल नहीं है। ऐसी भी चर्चा सुनाई देती है कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार ही अधिकतर फ़ैसले लेते हैं। लेकिन इन चर्चाओं के पीछे कोई मजबूत आधार नहीं दिखाई देता। 

महाराष्ट्र की सियासत में असर रखने वाले मराठी समाज में से ही कांग्रेस ने मुंबई ईकाई के अध्यक्ष का चुनाव किया है जबकि मुंबई में 27 फ़ीसदी उत्तर भारत के राज्यों के मतदाता भी हैं। इसका मतलब यह है कि पार्टी मराठी मतदाताओं को नाराज़ नहीं करना चाहती। 

देखिए, महाराष्ट्र की सियासत पर चर्चा- 

मुश्किल होगा सीट बंटवारा 

अगर महा विकास अघाडी के तीनों दल इस बात पर राजी होते हैं कि वे मिलकर बीएमसी का चुनाव लड़ेंगे तो निश्चित रूप से सीटों के बंटवारे में बहुत मुश्किल पेश आएगी और तीनों ही दलों में बग़ावत होनी तय है। क्योंकि 227 सीटों वाली बीएमसी में सीटों के बंटवारे के बाद तीनों दलों में ऐसे बहुत सारे नेता टिकट पाने से वंचित रह जाएंगे जो 2017 के बीएमसी चुनावों में अपने दलों की ओर से चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसे में संभावित बग़ावत कहीं महा विकास अघाडी सरकार को भारी न पड़े।

 - Satya Hindi

मेयर हमारा होगा: बीजेपी 

दूसरी ओर, बीजेपी ने बीएमसी चुनाव के लिए अभियान शुरू कर दिया है। इस अभियान को ‘मिशन मुंबई 2022’ का नाम दिया गया है और कहा गया है कि पार्टी मुंबई में अपना मेयर बनाने के लिए पूरी ताक़त झोंकेगी। 

सरकार बनाने के दावे

बीते दिनों में बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने के दावे तेज़ किए हैं। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री राव साहब दानवे के बयानों के कारण सियासी माहौल बेहद गर्म हो गया था। दोनों नेताओं ने कहा था कि महाराष्ट्र के अंदर जल्द बीजेपी की सरकार बनेगी। 

फडणवीस ने हाल में कहा था कि बीजेपी बीएमसी चुनाव अकेले ही लड़ेगी और 114 से ज़्यादा सीटों पर जीत हासिल करेगी। बीएमसी में बहुमत का आंकड़ा 114 है। 

2017 के चुनाव में बीजेपी और शिव सेना ने गठबंधन में साथ रहते हुए भी यह चुनाव अलग-अलग लड़ा था। तब शिव सेना को 86 और बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं। लेकिन चूंकि मुख्यमंत्री बीजेपी का था, इसलिए बीएमसी का मेयर शिव सेना का बना था। 

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