मुसलिम वोटों के सहारे यूपी में गठबंधन को चुनौती देने में जुटी कांग्रेस
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में कांग्रेस अब एसपी-बीएसपी गठबंधन से सीधे-सीधे दो-दो हाथ करने की रणनीति पर उतर आई है। अभी तक कांग्रेस, एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ कुछ सीटों पर गठबंधन, कुछ पर अप्रत्यक्ष तालमेल और कुछ सीटों पर दोस्ताना संघर्ष की संभावनाएँ तलाश रही थी। लेकिन बीएसपी प्रमुख मायावती के कांग्रेस पर लगातार हमलों की वजह से इन तमाम संभावनाओं पर पानी फिर गया। लिहाज़ा, अब कांग्रेस ने रणनीति बदल कर सीधे मुसलिम वोटों पर दाँव खेलना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस अब उन सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतार रही है, जहाँ गठबंधन का उम्मीदवार मुसलिम नहीं है और जहाँ मुसलिम मतदाताओं की संख्या 20% से ज़्यादा है।
इमरान, नसीमुद्दीन को मैदान में उतारा
शुक्रवार देर रात जारी हुई कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवारों की लिस्ट इसी ओर इशारा कर रही है। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं। मुरादाबाद लोकसभा सीट पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर की जगह हाल के वर्षों में मशहूर हुए शायर इमरान प्रतापगढ़ी को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं, बगल की बिजनौर लोकसभा सीट पर बीएसपी से निकाले जाने के बाद कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
- दो सीटों पर उम्मीदवारों का बदलना कांग्रेस की नई रणनीति की शुरुआत है। इससे कांग्रेस ने साफ़ संकेत दिया है कि वह अब बीजेपी के साथ एसपी-बीएसपी गठबंधन को भी सीधी चुनौती देगी। कांग्रेस अब गठबंधन को किसी भी तरह के रियायत देने के मूड में नहीं लगती है।
कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में राज बब्बर को मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वहाँ उनके पक्ष में माहौल बनता हुआ नहीं दिख रहा था। दरअसल, मुरादाबाद में 45% मुसलिम मतदाता हैं। लिहाज़ा, यहाँ कांग्रेस की स्थानीय इकाई शुरू से ही किसी मजबूत मुसलिम उम्मीदवार को चुनाव लड़ाए जाने के हक़ में थी।
2009 में अज़हर ने जीती थी सीट
ग़ौरतलब है कि 2009 में कांग्रेस ने मशहूर क्रिकेटर अज़हरुद्दीन को मुरादाबाद से उतारकर यह सीट जीती थी। स्थानीय कांग्रेसी नेता इसी तरह का कोई मशहूर नाम चाह रहे थे। हाल के वर्षों में अपनी जज़्बाती शायरी से मुसलमानों में बेहद लोकप्रिय हुए इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस के टिकट पर किसी भी सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा पहले ही जता चुके थे।
कांग्रेस ने मुरादाबाद से इमरान प्रतापगढ़ी को उतारकर समाजवादी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है। गठबंधन में यह सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई है।
समाजवादी पार्टी ने अभी मुरादाबाद से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। दो बार चुनाव लड़ चुके एसटी हसन का नाम सबसे आगे चल रहा है। एसटी हसन का मुरादाबाद में पिछड़े मुसलमानों में विरोध दिखाई देता है। अखिलेश यादव ने यहाँ उम्मीदवार तय करने की ज़िम्मेदारी आज़म ख़ान को दी हुई है। मुरादाबाद लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए आज़म ख़ान एसटी हसन के अलावा किसी और नाम पर विचार नहीं कर रहे हैं। लिहाज़ा, इस बार भी हसन का टिकट तय माना जा रहा है। हालाँकि दो बार चुनाव लड़ कर वह पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं। अब इमरान प्रतापगढ़ी के मैदान में आने के बाद समाजवादी पार्टी पर कोई और मजबूत उम्मीदवार उतारने का दबाव बढ़ गया है।
समाजवादी पार्टी की स्थानीय इकाई की ओर से एसटी हसन के विरोध के चलते ही अब तक उनके नाम की घोषणा नहीं हुई है। अभी स्थानीय इकाई कोई मजबूत नाम ढूंढने की तलाश में जुटी है।
बिजनौर लोकसभा सीट पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारना कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक है। एसपी-बीएसपी गठबंधन में यह सीट बीएसपी के हिस्से में आई है।
बिजनौर लोकसभा सीट बीएसपी की राजनीति की प्रयोगशाला रही है। मायावती पहली बार इसी सीट से जीत कर लोकसभा पहुँची थीं, इसलिए आज भी बीएसपी के लिए यही अच्छी सीट मानी जाती है।
दरअसल, बिजनौर में पिछले तीन महीने से बीएसपी में टिकट को लेकर बड़ा खेल चल रहा है। बिजनौर में 40% मुसलिम मतदाता हैं। मुसलिम समुदाय यहाँ से गठबंधन की तरफ़ से कोई मुसलिम उम्मीदवार उतारे जाने की उम्मीद कर रहा था। लेकिन बीएसपी ने पहले समाजवादी पार्टी की विधायक रहीं रुचि वीरा को उम्मीदवार बनाया। दलित समाज की तरफ़ से उनका तीख़ा विरोध होने पर उनका टिकट काटकर चाँदपुर से बीएसपी के दो बार विधायक रहे इक़बाल ठेकेदार को थमा दिया गया। इक़बाल का भी विरोध हुआ तो मेरठ के मलूक नागर को टिकट दे दिया गया।
मलूक नागर पहले भी बिजनौर से चुनाव लड़ चुके हैं। यहाँ मुसलमानों के एक बड़े तबक़े ने एलान कर रखा है कि अगर गठबंधन का उम्मीदवार मुसलमान नहीं हुआ तो वह गठबंधन को वोट नहीं देंगे। इसी का फायदा कांग्रेस उठाने की कोशिश कर रही है।
बिजनौर की सियासी हवा को पहचानते हुए कांग्रेस ने मायावती के साथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को मैदान में उतारा है। साल 1989 में जब मायावती यहाँ से सांसद बनी थीं तब नसीमुद्दीन, मायावती के साथ हुआ करते थे। लिहाज़ा, बिजनौर की सियासी ज़मीन उनके लिए नई नहीं है। अगर एसपी-बीएसपी गठबंधन से नाराज चल रहे मुसलमानों का भरपूर समर्थन कांग्रेस को मिलता है तो वह 1985 के बाद यह सीट जीत सकती है।
साल 1985 में आख़िरी बार कांग्रेस के टिकट पर मीरा कुमार इस सीट से लोकसभा चुनाव जीतीं थींं। उसके बाद से कांग्रेस यहाँ कभी भी मुख्य मुक़ाबले में नहीं रही। इसी तरह 1991 में मायावती के लोकसभा चुनाव हारने के बाद बीएसपी भी कभी मुख्य मुक़ाबले में नहीं रही।
- कांग्रेस के आला सूत्रों के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में पहले से उतारे गए उम्मीदवारों के नामों पर पुनर्विचार किया जा रहा है। कांग्रेस ऐसी सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतारने की रणनीति बना रही है, जहाँ गठबंधन का उम्मीदवार मुसलिम नहीं है और मुसलिम मतदाताओं की तादाद वहाँ 20% से ज़्यादा है। ऐसी सूरत में कांग्रेस को मुसलमानों का भरपूर समर्थन मिलने की उम्मीद है।
कांग्रेस को समर्थन देने की चर्चा
उत्तर प्रदेश में मुसलिम समुदाय के साथ-साथ बीजेपी विरोधी हिंदू वोटरों में चर्चा आम है कि केंद्र में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सरकार बनाने का मुक़ाबला है। लिहाज़ा, एसपी-बीएसपी गठबंधन को वोट देकर अपना वोट ख़राब करने से बेहतर है कि कांग्रेस को समर्थन दे दिया जाए। पश्चिम उत्तर प्रदेश के गाँवों-देहातों में यह चर्चा आम है।
इस बार के लोकसभा चुनाव की सबसे ख़ास बात यह है कि बीजेपी समर्थक तो मुखर होकर बोल रहे हैं लेकिन बीजेपी विरोधी ख़ामोश हैं। बंद कमरों में चल रही बैठकों में बीजेपी को हराने की रणनीति पर विचार किया जा रहा है।