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राजस्थान में कांग्रेस की 'गुर्जर राजनीति' दांव पर, महंगा पड़ेगा सौदा 

राजस्थान में कांग्रेस की 'गुर्जर राजनीति' दांव पर, महंगा पड़ेगा सौदा 

राजस्थान में कांग्रेस नेता सचिन पायलट की बगावत से पार्टी की गुर्जर राजनीति दांव पर लग गई है। बीजेपी को इससे सीधा फायदा होगा। क्या है राजस्थान की गुर्जर राजनीति और बीजेपी कैसे उस पर काम कर रही है, जानिए इस रिपोर्ट सेः

राजस्थान विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमों के बीच संघर्ष और भी तेज हो गया है। चुनाव के लिए यह शुभ लक्षण नहीं है।

जुलाई 2020 में जब पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की तो भी दोनों के बीच संबंध संतुलित रहे। लेकिन राजस्थान कांग्रेस में नाटकीय मंच फिर तैयार है क्योंकि पायलट इस बार नया सौदा लेकर आए हैं। वो राजस्थान में अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर दबाव बनाने के लिए उपवास पर बैठने जा रहे हैं।   

पायलट और गुर्जर

राजस्थान में सचिन पायलट गुर्जरों की राजनीति से सीधे जुड़े हुए हैं। समय-समय पर गुर्जर सम्मेलनों में उनकी शिरकतों से इसे देखा गया। गुर्जर जब-तब आरक्षण के मुद्दे पर आंदोलन करते रहते हैं और सचिन पायलट की अपील पर आंदोलन वापस लेते रहे हैं। 2020 में सचिन को मुख्यमंत्री बनाने की मांग गुर्जरों संगठनों की ओर से आई थी और इसके लिए उन्होंने राज्य में धरना, प्रदर्शन तक किया था।

गुर्जरों के प्रमुख नेता किरोड़ीमल बैंसला का पिछले साल निधन हो गया। उन्होंने राजस्थान में जबरदस्त आरक्षण आंदोलन छेड़ा था। वो कांग्रेस में सचिन पायलट का नजदीक थे। लेकिन जब कांग्रेस ने 2018 में चुनाव जीतने के बाद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो कर्नल बैंसला 2019 में बीजेपी में शामिल हो गए। उनके निधन के बाद उनका बेटा विजय बैंसला भी बीजेपी के साथ ही है।

बीजेपी की नजरः राज्य की 40 विधानसभा सीटों पर गुर्जर मतदाता बहुत बड़ा दखल रखते हैं। यानी हार-जीत तय करते हैं। 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 9 गुर्जर प्रत्याशी उतारे थे लेकिन सब के सब चुनाव हार गए थे। जबकि कांग्रेस ने 11 गुर्जर उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और उनमें से 7 चुनाव जीत गए थे। बीएसपी से जीते गुर्जर विधायक जोगिंदर सिंह अवाना कांग्रेस में शामिल हो गए और इस तरह कांग्रेस के पास 8 गुर्जर विधायक हो गए।

कांग्रेस के इस विशालकाय गुर्जर प्रभुत्व के पीछे यह बात प्रोजेक्ट की गई कि गुर्जर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। शुरुआत में कांग्रेस आलाकमान का रुख भी सचिन पायलट के समर्थन में रहा, लेकिन अशोक गहलोत ने बाजी पलट दी। उनके समर्थक विधायकों ने खुले विरोध का प्रदर्शन किया और पायलट अपने साथ पूरे विधायक जुटा नहीं सके। इससे आलाकमान की छीछालेदर हुई और राजस्थान में कांग्रेस एक तरह से कमजोर भी हुई। यह सारा घटनाक्रम 2020 से चल रहा है।

इस वजह से बीजेपी की नजर गुर्जर वोट बैंक पर लगातार है और वो एक सधी हुई रणनीति से काम कर रही है। बीजेपी को लगता है कि सचिन की आड़ में गुर्जर वोट बैंक पर हाथ साफ किया जा सकता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी तक राजस्थान में उन मंदिरों की यात्रा कर रहे हैं जो गुर्जर महापुरुषों से जुड़े हुए हैं। उधर, स्व. किरोड़ीमल बैंसला के बेटे विजय बैंसला की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरें मार रही है। विजय बैंसला खुलकर बीजेपी के साथ हैं। राजस्थान के गुर्जरों में भीलवाड़ा के देवनारायण मंदिर का खास महत्व है। पीएम मोदी जब जनवरी 2023 में वहां पहुंचे और जिस तरह विजय बैंसला ने उस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उससे बीजेपी की रणनीति साफ हो गई। मोदी की इस मंदिर में यात्रा के समय ही तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने यह माना था कि पीएम मोदी की यह यात्रा कांग्रेस के गुर्जर वोट बैंक पर निशाना है। मोदी के कार्यक्रम में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी विजय बैंसला और पार्टी के अन्य गुर्जर नेताओं को दी गई थी।

क्या करेगी कांग्रेस

कांग्रेस के पास अब चुनाव से पहले मौके कम हैं। या तो वो स्पष्ट घोषणा करे कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जीतने पर मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बनाएगी। लेकिन कांग्रेस की ऐसी घोषणा नहीं करने की भी मजबूरी है। अगर वो ये घोषणा करेगी तो जाट और राजपूत नाराज हो जाएंगे जो गहलोत की वजह से फिलहाल कांग्रेस के साथ बने हुए हैं। जातियों का यह समीकरण संभालना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है। जो उसके पास बेहतर ऑप्शन है, वो ये है कि सचिन पायलट को गुप्त रूप से संकेत दिया जाए कि पार्टी के जीतने पर राज्य की बागडोर उन्हें सौंपी जा सकती है। एकमात्र इसी कदम से यह संकट टल सकता है। 

अगर सचिन पायलट नहीं मानते हैं और विरोध पर आमादा रहते हैं तो गहलोत के दबाव पर उन पर पार्टी अगर कार्रवाई करती है तो बीजेपी को फायदा होगा। बीजेपी उन्हें शामिल कर बाजी पलट सकती है। लेकिन ऐसे में वसुंधरा राजे क्या करेंगी। क्या वो चुप रहेंगी, क्योंकि सचिन पायलट के बीजेपी में आने पर फिर उनके नेतृत्व पर भी संकट आएगा। इस तरह पायलट के लिए भी फैसला लेना आसान नहीं है।

बहरहाल, इस बार गहलोत खेमा एक्शन मोड में है। राजस्थान के एक कैबिनेट मंत्री ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे उन लोगों को समर्थन न दें जो अशोक गहलोत सरकार द्वारा किए गए कार्यों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्व मंत्री रामलाल जाट ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल लोगों को सोचना चाहिए कि पार्टी आलाकमान ने ही गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया है। मंत्री रामलाल जाट से गहलोत ने यह बयान दिलवाकर अप्रत्यक्ष संकेत देने की कोशिश की है। साफ है कि पायलट की किसी भी हरकत पर गहलोत चुप नहीं बैठेंगे।

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