किसानों की मांगें माने जाने को कांग्रेस ने 'सत्य की जीत' बताया
सरकार द्वारा किसानों की मांगें माने जाने को कांग्रेस ने 'सत्य की जीत' बताया है। राहुल की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब किसानों ने आज आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी है। गुरुवार को सिंघु बॉर्डर पर हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। मोर्चा की बैठक में यह सहमति बनी है कि 11 दिसंबर से किसान वापस लौटना शुरू कर देंगे। वे बीते एक साल से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे थे।
राहुल ने किसानों के आंदोलन को 'सत्याग्रह' क़रार दिया और कहा कि वह इस जीत में शहीद अन्नदाताओं को भी याद करते हैं।
अपना देश महान है,
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 9, 2021
यहाँ सत्याग्रही किसान है!
सत्य की इस जीत में हम शहीद अन्नदाताओं को भी याद करते हैं।#FarmersProtest #SatyaKiJeet pic.twitter.com/L1JeJ8Tf1N
राहुल गांधी ने इसके साथ एक वीडियो साझा किया है जिसमें किसानों के प्रदर्शन के दौरान ली गई तसवीरों का कोलाज है और किसानों की मांगों के समर्थन में पार्टी के होने की बात भी लिखी गई है। राहुल ने उसमें दावा किया है कि कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है।
शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा, 'मैं आज किसानों को उनकी जीत पर बधाई देती हूँ। लेकिन, कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ साल भर के विरोध प्रदर्शन के दौरान 700 किसानों की जान चली गई। हम हमेशा किसानों के साथ खड़े रहेंगे।'
सुखबीर सिंह बादल ने किसानों की वापसी के फ़ैसले को किसानों की जीत बताया है।
ਜਿੱਤ ਉਪਰੰਤ ਕਿਸਾਨ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਵਾਪਸੀ ਬੜਾ ਚੰਗਾ ਸੰਕੇਤ ਹੈ ਅਤੇ ਜਿੱਥੋਂ ਤੱਕ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ, ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਾਸਤੇ ਸਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਰਹੇ ਹਾਂ, ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਬਣਨ 'ਤੇ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਗੰਭੀਰ ਮਸਲਿਆਂ ਦੇ ਛੇਤੀ ਹੱਲ ਵਾਸਤੇ ਠੋਸ ਕਦਮ ਜ਼ਰੂਰ ਚੁੱਕਾਂਗੇ। pic.twitter.com/UjJutSo75a
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) December 9, 2021
बता दें कि किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा है कि प्रदर्शन करने वाले किसान 11 दिसंबर को धरना स्थल खाली करेंगे।
दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा, 'हमने अपना आंदोलन स्थगित करने का फ़ैसला किया है। हम 15 जनवरी को समीक्षा बैठक करेंगे। अगर सरकार अपने वादे पूरे नहीं करती है, तो हम अपना आंदोलन फिर से शुरू कर सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि किसान सरकार के वादों की हर महीने समीक्षा करेंगे।
बता दें कि किसानों का आंदोलन भले ही तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध से शुरू हुआ था, लेकिन इन क़ानूनों के वापस लिए जाने पर ही यह ख़त्म नहीं हुआ। किसान इन क़ानूनों के अलावा छह अन्य मांगों को लेकर भी प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन पहले सरकार इस पर राजी नहीं हो रही थी।
लंबे चले संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव से ऐन पहले सरकार ने किसानों की क़रीब-क़रीब सभी मांगें मान ली हैं। इसने किसान नेताओं से बातचीत की मांगें माने जाने का प्रस्ताव पेश किया। इस पर किसान नेता पिछले दो दिन से गहन मंथन कर रहे थे और आज सरकार के प्रस्ताव को किसानों ने स्वीकार कर लिया।