भारत जोड़ो यात्रा क्या देश में नफ़रत का व्यापार ख़त्म कर पायेगी?
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कन्याकुमारी से भारत जोड़ने का पैग़ाम लेकर पैयां पैयां चल पड़े हैं।
सवा सौ साल पुरानी उनकी पार्टी अपने इतिहास के सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है। यह यात्रा भले ही देश को जोड़ने, आपसी सद्भाव बढ़ाने के घोषित उद्देश्य से शुरू हुई है लेकिन हर राजनैतिक दल का हर कदम राजनीति के लक्ष्य साधने के लिए होता है वैसे ही इसका भी है। होगा ही, इससे किसे इंकार है!
साढ़े तीन हजार किलोमीटर चल कर यह यात्रा जब पाँच महीने बाद श्रीनगर पहुँचेगी तब तक इसके राजनैतिक लक्ष्य कितने पूरे होंगे, यह अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह तय है कि यह यात्रा देश में भाईचारे का संदेश पहुँचाने में तो कामयाब हो ही जाएगी।
जब देश घृणा के घटाटोप में घिरा हुआ है तब कोई प्रेम का पैग़ाम लेकर इतनी कठिन यात्रा पर पैयां पैयां निकल पड़ा हो तो एक सभ्य समाज उसे उम्मीद की निगाह से देखेगा ही। देखना भी चाहिए।
इस यात्रा में कांग्रेस पार्टी का कोई प्रतीक, चुनाव चिन्ह, झंडा डंडा नहीं है और न होगा। यात्रा सिर्फ़ एकता और भाईचारे की बात करेगी। स्वाभाविक है कि भले कोई प्रतीक न हो लेकिन पार्टी का सबसे बड़ा शुभंकर राहुल गांधी जब सबसे आगे क़दम रखेगा तो पार्टी का नाम पता भी घर घर स्वयमेव पहुंच जाएगा। इसके चुनावी फलितार्थ जो भी होंगे हमारी बला से लेकिन अगर यह समाज में बढ़ते सांप्रदायिक, विभाजनकारी विचार को दो क़दम भी पीछे धकेलने में सफल रही तो देश और समाज दोनों के हित में होगा।
यह आधुनिक युग में देश ही नहीं, संभवतः दुनिया की सबसे लंबी दूरी की पदयात्रा है। अगर यह अपने गंतव्य तक सफलतापूर्वक पहुंच सकी तो यह अपने आप में एक इतिहास होगा।
आज़ादी के पहले और बाद की राजनैतिक यात्राएँ
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बहाने देश में हुई राजनैतिक यात्राओं का फौरी लेखा जोखा देख लेना समीचीन होगा।
आज़ादी के संग्राम में महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती (अहमदाबाद) से समुद्र तक के कस्बे दांडी तक पैदल यात्रा की थी। अंग्रेज सरकार के नमक कानून को तोड़ने के लिए यह यात्रा 390 किलोमीटर दूरी तय करके 6अप्रैल 1930 को दांडी पहुंची थी।
यह यात्रा अपने उद्देश्य में सफल रही थी।
आज़ादी के बाद पचास के दशक में आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन में पदयात्रा की। क़रीब तेरह साल चली इस यात्रा में आचार्य भावे ने 58 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा यात्रा की थी।
विनोबा भावे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाते थे। खुद गांधी जी ने उन्हें देश का 'पहला सत्याग्रही' कहा था।
आज़ाद भारत में सबसे महत्वपूर्ण यात्राओं में चंद्रशेखर की 1983 में निकली भारत यात्रा यादगार मानी जाती है। इंदिरा गांधी की सत्ता के ख़िलाफ़ जनजागरण के लिए यह यात्रा कन्याकुमारी से राजघाट, दिल्ली तक की थी। इस यात्रा के कुछ साल बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे।
1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली थी। राममंदिर निर्माण की मांग के लिए निकली यह यात्रा पूरी नहीं हो सकी। बीच में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन तब तक यह रथयात्रा देश की धरती पर सांप्रदायिकता, वैमनस्ता, धार्मिक कटुता का हल चला चुकी थी।
देश आजतक उसी दौर में बही विभाजनकारी राजनीति की जहरीली आबोहवा को भुगत रहा है। हां इसके बाद भाजपा सत्ता का स्वाद चखने में अवश्य सफल रही। यह यात्रा पैदल नहीं थी, सुसज्जित चार पहिया रथ पर थी।
कांग्रेस के नेता सुनील दत्त ने 1987 में पैदल भारत यात्रा की थी। यह सिख आतंकवाद का चरम दौर था। तब सुनील दत्त ने मुंबई से अमृतसर तक यात्रा की। सुनील दत्त ने परमाणु हथियारों के खिलाफ़ नागासाकी से हिरोशिमा की यात्रा भी की थी।
एन टी रामराव ने 1982 में चैतन्य रथम यात्रा निकाली। आधुनिक सुविधा संपन्न रथ में 75 हजार किलोमीटर की यात्रा करके एन टी आर सत्ता के सिंहासन तक पहुँच गए।
आंध्र प्रदेश में पहले सन 2003 में वाई एस राजशेखर रेड्डी ने पदयात्रा की। बाद में सरकार बनाई। उनके बेटे जगन मोहन ने भी यात्रा की और आज सत्ता में बैठे हैं।
हाल के वर्षों में सबसे उल्लेखनीय पदयात्रा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने की। क़रीब छह महीने में दिग्विजय ने तीन हजार किलोमीटर चल कर नर्मदा परिक्रमा की। सन 2018 में मप्र में कांग्रेस की सरकार बनने में इस नर्मदा यात्रा का बड़ा योगदान माना जाता है।
गैर राजनैतिक यात्राओं में बाबा आमटे की कन्याकुमारी से कश्मीर और कच्छ से कोहिमा तक की यात्रा उल्लेखनीय है।
अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग की पदयात्रा
दुनिया के इतिहास में महान और परिवर्तनकारी पदयात्राओं में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की पदयात्रा गिनी जाती है। मार्टिन लूथर ने सन 1965 में अश्वेतों के मताधिकार के लिए अलबामा की राजधानी मोंटगोमरी तक 25 हजार लोगों के साथ पैदल मार्च किया। इस मार्च के बाद ही अगस्त 1965 में अश्वेतों को मतदान का अधिकार मिला।
मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी को अपना प्रेरणा पुरुष मानते थे। गांधी के सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह के सिद्धांत आत्मसात करके ही मार्टिन लूथर ने हर आंदोलन चलाया।
प्राचीन समय में देश, दुनिया में यात्राएं...
मानव सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य में भ्रमण, देशाटन की ललक रही आई है। जल, थल मार्ग से अनेक महत्वपूर्ण यात्राएँ की गईं जिनके ज़रिए दुनिया के लोगों ने एक दूसरे को जाना।
ज्ञात इतिहास में महात्मा गौतम बुद्ध के भारत भ्रमण का उल्लेख मिलता है। ईसा के पांच सौ साल पहले जन्मे गौतम ने भारत के अलावा कश्मीर पार करके अफगानिस्तान तक यात्रा की। बामियान बौद्ध धर्म की राजधानी बना।
आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भारत यात्रा की थी। इसे 'शंकर दिग्विजय यात्रा' कहा गया। इस यात्रा के दौरान ही चारों पीठ स्थापित किए और एक तरह से भारत के एकीकरण का अभूतपूर्व कार्य किया।
महा पंडित राहुल सांकृत्यायन ने बीसवीं सदी के दूसरे दशक में यात्राएँ शुरू कीं तो जीवन के आख़िर तक घूमते ही रहे। ज्ञानार्जन के लिए उन्होंने रूस, जापान, तिब्बत की दुरूह यात्राएँ कीं और वोल्गा से गंगा जैसी रचनाएं लिखीं।
कोलंबस की इतिहास प्रसिद्ध यात्रा ने अमेरिका को खोज निकाला। उससे पहले दुनिया अमेरिका से अनभिज्ञ थी।
दुनिया के तमाम यात्री भारत आते रहे।
ईसा पूर्व यूनानी यात्री मैगस्थनीज, चीनी यात्री फाह्यान, ह्वेंसांग ने भारत भ्रमण करके यहां के बारे में विस्तार से लिखा।
महमूद गजनवी के साथ सन 1000 ई में अलबरूनी भारत आया और मोरक्को (अफ्रीका) से इब्न बतूता ने भारत आकर प्रमाणिक लेखन किया।
इटली का यात्री मार्कोपोलो सन 1288 में भारत आया और निकालो कोंटी ने सन 1420 में भारत की यात्रा की।
यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि ये सब यात्री पैदल नहीं आए थे। उस समय उपलब्ध जलमार्ग में नौकाओं या थलमार्ग में घोड़े, खच्चर आदि से ही इतनी लंबी यात्राएं की गई थीं।