देश में क्या इतनी महंगाई है कि विपक्ष सड़क पर आ जाए?
कांग्रेस महंगाई पर सरकार को घेर रही है। सांसद राष्ट्रपति भवन की तरफ़ मार्च भी कर रहे थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया गया। राहुल, शशि थरूर जैसे नेताओं को हिरासत में भी लिया गया। महंगाई और बेरोजगारी के ख़िलाफ़ कांग्रेस नेताओं और समर्थकों ने काले कपड़े पहनकर विरोध भी किया। कांग्रेस ने कहा है कि वह आम लोगों की महंगाई के मुद्दे को उठाना चाहती है लेकिन सरकार ऐसा करने नहीं दे रही है।
तो सवाल है कि देश में क्या इतनी महंगाई है कि सच में जनता त्रस्त है? क्या सरकार ऐसा मानती भी है या इसे सिरे से खारिज करती है? हालाँकि, संसद में बहस के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण खुद ऐसा स्वीकार कर चुकी हैं, लेकिन संसद में दो दिन पहले ही बीजेपी सांसद जयंत सिन्हा ने महंगाई के मुद्दे को ही खारिज कर दिया। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि महंगाई कहीं पर भी है ही नहीं।
जयंत सिन्हा के अजीबो-गरीब बयान ने उन लोगों को और आक्रोशित कर दिया जो पहले से ही परेशान हैं। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो साझा किए गए हैं जिसमें लोग महंगाई के मुद्दे पर बीजेपी सांसद के बयान पर ग़ुस्से में बात करते दिखाई देते हैं। कुछ लोग तो यह कहते सुने गए कि जयंत सिन्हा जीतने के बाद अपने संसदीय क्षेत्र ही नहीं आए इसी वजह से वह महंगाई को कोई मुद्दा नहीं मान रहे हैं।
बीजेपी सांसद के बयान के बाद विपक्ष भी ज़्यादा आक्रामक नज़र आ रहा है। विपक्षी दल डीजल-पेट्रोल से लेकर रसोई गैस, खाने के तेल, दाल जैसे सामानों की क़ीमतें सामने रख रहे हैं।
कई ऐसी जीचें हैं जो पिछले छह महीने में ही काफ़ी ज़्यादा महंगी हो गई हैं। वनस्पति तेल छह महीने पहले जहाँ 137 रुपये में मिलता था उसकी कीमत अब 159 रुपये हो गई है। इसी तरह छह महीने पहले 145 रुपये मिलने वाला सोया तेल अब 162 रुपये का हो गया है।
छह महीने में सूरजमुखी तेल 150 रुपये से बढ़कर 184 रुपये और पाम ऑयल 127 रुपये से बढ़कर 140 रुपये का हो गया है।
इनमें 10 से 23 फ़ीसदी के बीच बढ़ोतरी हुई है।
छह महीने पहले नमक का जो पैकेट 18 रुपये में मिलता था वह 20 रुपये का हो गया। इसी तरह छह महीने में आलू 21 से बढ़कर 27, टमाटर 34 से बढ़कर 38 और गेहूँ 28 से बढ़कर 30 रुपये का हो गया है। इसमें भी 7 से लेकर 24 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
कांग्रेस ने पिछले तीन सालों में महंगाई बढ़ने की तुलना करते हुए एक चार्ट जारी किया है। इसके अनुसार 2019 में जहाँ पेट्रोल 73 रुपये का मिलता था वह 33 फ़ीसदी बढ़कर 97 रुपये का हो गया है। डीजल भी 66 रुपये से 36 फीसदी बढ़कर 90 रुपये का हो गया है। एलपीजी सिलेंडर तो 494 रुपये से 113 फ़ीसदी बढ़कर 1053 रुपये का हो गया है। इसी तरह अन्य सामान भी महंगे हुए हैं।
कांग्रेस ने 2014 और 2022 के बीच भी क़ीमतों की तुलना की है। 2014 में जब कांग्रेस की सरकार गई थी तब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की क़ीमत 107 डॉलर प्रति बैरल था और तब भारत में लोगों को पेट्रोल क़रीब 71 रुपये और डीजल क़रीब 57 रुपये प्रति लीटर दिया जा रहा था। 2014 में ही मोदी सरकार सत्ता में आई थी। 2022 में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल क़रीब 97 डॉलर प्रति बैरल है तो पेट्रोल 97 रुपये और डीजल 90 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है।
इसी तरह कांग्रेस ने 2014 और 2022 में रसोई गैस के दाम की भी तुलना की है।
गैस सिलेंडर भी आम जन की कमर तोड़ रहा है।
— Congress (@INCIndia) August 4, 2022
5 अगस्त के 'हल्ला बोल' में 'लुटेरी सरकार' के विरुद्ध जनता की आवाज़ उठेगी।#महंगाई_पर_हल्ला_बोल pic.twitter.com/9U0uiZFlLC
महंगाई को देखते हुए ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने शुक्रवार को एक बार फिर रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी की है। अब रेपो रेट बढ़कर 5.40 फीसदी हो गया है। पिछले कुछ महीनों के अंदर रेपो रेट में यह तीसरी बढ़ोतरी है। मई में रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी की गई थी। 8 जून को भी रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी हुई थी।
रेपो रेट के बढ़ने से घर की ईएमआई यानी होम लोन, गाड़ियों के लिए लिए गए लोन और पर्सनल लोन भी महंगे हो जाएंगे। आरबीआई जिस रेट पर दूसरे बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है। रेपो रेट कम होने का मतलब होता है कि बैंक से मिलने वाले सभी तरह के लोन सस्ते हो जाते हैं जबकि रेपो रेट ज्यादा होने का मतलब है कि लोन चुकाने के लिए आपको ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे।
कांग्रेस ने महंगाई के साथ ही बेरोजगारी को भी मुद्दा बनाया है। इसने युवा बेरोजगारी दर के आँकड़े बताकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है।
'विश्व' में तथाकथित विश्वगुरु का नहीं बेरोजगारी का डंका बोल रहा है।
— Congress (@INCIndia) August 4, 2022
देश के बेरोजगार युवा के लिए भाजपाई हुकूमत के विरुद्ध कांग्रेस 5 अगस्त को आवाज़ बुलंद करेगी।#महंगाई_पर_हल्ला_बोल pic.twitter.com/uRwZ37ZReY
बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार की तीखी आलोचना होती रही है। मोदी सरकार ने हाल ही में संसद में खुद माना है कि पिछले आठ साल में 22 करोड़ आवेदन आए थे इनमें से 7.22 लाख लोगों को नौकरियाँ दी गई हैं। यानी हर साल 1 लाख से भी कम औसत रूप से क़रीब 90 हज़ार नौकरियाँ दी गई हैं। तो बाक़ी के करोड़ों लोग क्या कर रहे हैं? क्या वे बेरोजगार हैं? इसका जवाब तो नहीं दिया गया है, लेकिन बेरोजगारी बढ़ने की ख़बरें जब तब आती रही हैं। नौकरियाँ देने का ऐसा रिकॉर्ड रखने वाली मोदी सरकार ने पिछले महीने ही फिर से वादा किया है कि 2024 तक यानी क़रीब डेढ़ साल में अगले लोकसभा चुनाव तक 10 लाख नौकरियाँ दी जाएंगी। यह कैसे होगा? 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब हर साल 2 करोड़ नौकरी का वादा किया गया था। जो काम सरकार आठ साल में भी नहीं कर पाई वो डेढ़ साल में कैसे कर पाएगी?
अप्रैल महीने में बेरोजगारी का आँकड़ा ही देख लीजिये। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के अनुसार अप्रैल में बेरोजगारी दर 7.83% हो गई थी। यह मार्च में 7.60% थी।
अप्रैल में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.22% हो गई, जो पिछले महीने 8.28% थी। हालाँकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.29% से घटकर 7.18% हो गई थी। सबसे अधिक 34.5% बेरोजगारी दर हरियाणा में दर्ज की गई थी। इसके बाद राजस्थान में 28.8% थी।
अप्रैल महीने में ही समग्र श्रम भागीदारी दर को लेकर सीएमआईई का ही आँकड़ा आया था। रिपोर्ट के अनुसार 2017 और 2022 के बीच समग्र श्रम भागीदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत हो गई थी।
आसान शब्दों में कहें तो कामकाजी आबादी में से जितने लोग श्रम में लगे हैं यानी रोजगार में लगे हैं, वही श्रम भागीदारी है। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो रोजगार में नहीं हैं, लेकिन इसकी तलाश में हैं। श्रम भागीदारी दर 40 प्रतिशत होने का सीधा मतलब है कि क़रीब 60 फ़ीसदी लोगों ने नौकरी ढूंढना ही छोड़ दिया है। अपने लिए उचित नौकरी नहीं मिलने की वजह से निराश होकर ऐसे लोगों ने काम की तलाश ही छोड़ दी है।