कांग्रेस और पीके में बातचीत टूटी है, दोस्ती नहीं!
प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की तमाम अटकलों और ख़बरों पर आख़िरकार विराम लग गया। दरअसल, कांग्रेस में पीके की भूमिका को लेकर तमाम उहापोह थे तो प्रशांत किसी भी क़ीमत पर 2017 के उत्तर प्रदेश प्रयोग को फिर से दोहराना नहीं चाहते हैं। यही वह बिंदु है जहाँ दोनों के बीच बातचीत बनते-बनते बिगड़ गई। लेकिन पीके और कांग्रेस की बातचीत टूटी है दोस्ती नहीं।
इसकी जानकारी देते हुए कांग्रेस महासचिव और मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाकर प्रशांत किशोर को उसका सदस्य बनाकर पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया लेकिन पीके ने इनकार कर दिया। प्रशांत किशोर ने भी ट्वीट करके कहा है कि कांग्रेस में गहराई तक जड़ें जमा चुकीं सांगठनिक समस्याओं को परिवर्तनकारी सुधारों के ज़रिए सुलझाने के लिए मुझसे ज़्यादा पार्टी को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। इस तरह एक बार फिर कांग्रेस में शामिल होकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने की पीके की संभावनाओं पर विराम लग गया है।
दरअसल, पिछले कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ प्रशांत किशोर की लंबी बातचीत के बाद ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस में प्रशांत की राजनीतिक पारी जल्दी ही शुरू होने वाली है। कांग्रेस के शीर्ष नेता भी मानने लगे थे कि पीके पार्टी में आ रहे हैं। सोनिया गांधी ने कमोबेश सभी बड़े नेताओं की सीधे पीके से बातचीत कराकर यह संदेश दे दिया था पीके की कांग्रेस में आने की घोषणा की महज औपचारिकता ही शेष है।
बताया जाता है कि पीके के तजुर्बे रणनीतिक कौशल और चुनाव प्रबंधन की कला का पूरा लाभ तो लेना चाहती है लेकिन उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने के लिए वो आज़ादी नहीं देना चाहती है जिसकी प्रशांत किशोर को दरकार है। कांग्रेस चाहती है कि पीके पार्टी में शामिल होकर अन्य नेताओं की तरह सीमित भूमिका और सीमित अधिकारों के साथ काम करें जबकि प्रशांत अपने काम में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप या बदलाव स्वीकार करने के मामले में एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
कांग्रेस के कुछ बड़े नेता पीके प्रयोग को लेकर बेहद आशंकित और असुरक्षित महसूस कर रहे थे जबकि कुछ खुलकर पीके के समर्थन में भी आ गए थे।
जी-23 के नाम से जाने जाने वाले नेताओं- गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शशि थरूर जैसे कई नेताओं ने पीके से मुलाकात भी की। कई की उनसे टेलीफोन से भी बात हुई। पीके के समर्थन और विरोध में कांग्रेसियों के बयान भी आने लगे।
बताया जाता है कि इस बीच पीके की कंपनी आईपैक ने तेलंगाना में टीआरएस के चुनाव प्रबंधन का काम संभालने के सिलसिले में बातचीत शुरू की और इसके लिए प्रशांत किशोर खुद हैदराबाद गए और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव से मुलाक़ात की। इसे लेकर भी मीडिया और कांग्रेस के भीतर पीके के इरादों को लेकर सवाल उठे। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने इसके बावजूद उच्चस्तरीय एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का गठन करने की घोषणा करते हुए प्रशांत किशोर को इसका सदस्य बनने और कांग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव किया। लेकिन पीके इसके लिए तैयार नहीं हुए।
वह कांग्रेस नेताओं के किसी ग्रुप में बंधकर काम नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस नेताओं के चक्रव्यूह में फँसकर अभिमन्यु बन चुके हैं। जब उनकी पूरी कार्ययोजना को बेहद आधे अधूरे ढंग से लागू करके उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने को मजबूर कर दिया गया और उसके बाद कांग्रेस का जो हश्र हुआ उससे पीके पर ऐसा दाग लगा जिसे धुलने में उन्हें लंबा वक़्त लगा। इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, तब ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे। जबकि कांग्रेस नेतृत्व इसे लेकर उहापोह में था और पीके के कांग्रेस प्रवेश के विरोधी नेता पार्टी नेतृत्व को यह समझाने में सफल हो गए कि पीके या किसी भी एक व्यक्ति को इतनी छूट देना कांग्रेस और नेतृत्व दोनों के लिए ठीक नहीं होगा। इससे राहुल गांधी की छवि भी प्रभावित होगी और पीके एक नए सत्ताकेंद्र बन जाएंगे। इसलिए बीच का रास्ता निकालकर उन्हें एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का सदस्य बन कर पार्टी में काम करने का प्रस्ताव दिया गया जिसे उन्होंने मंजूर करने से इनकार कर दिया।
पीके और कांग्रेस के बीच फिलहाल बात बनते-बनते बिगड़ी है, लेकिन संवाद ख़त्म नहीं हुआ है। फ़िलहाल प्रशांत किशोर अपनी राजनीतिक मेल मुलाकातों का सिलसिला जारी रखते हुए खबरों में बने रहेंगे। इस साल के आखिर में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद मुमकिन है कि एक बार फिर उनके और कांग्रेस के बीच मेल मिलाप की नई प्रक्रिया शुरू हो सकती है।