यूपी विधानसभा में सावरकर की तसवीर, कांग्रेस ने किया विरोध
सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक को अपना बताने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने मूल प्रेरणा स्रोत विनायक दामोदर सावरकर को किसी कीमत पर नहीं छोड़ सकती है। ताज़ा विवाद यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के कक्ष में सावरकर की एक तसवीर का अनावरण किया है, जिसका विरोध कांग्रेस ने किया है।
स्पीकर को चिट्ठी
उत्तर प्रदेश विधान परिषद के कांग्रेस सदस्य दीपक सिंह ने सावरकर की तसवीर विधानसभा में लगाने का विरोध करते हुए स्पीकर को एक चिट्ठी लिखी है।
विधानसभा अध्यक्ष रमेश यादव को लिखी चिट्ठी में उन्होंने कहा है,
“
"सावरकर की तसवीर उन लोगों के साथ लगाना जिन्होंने अंग्रेजों के हर तरह के अत्याचार को सहा और आज़ादी की लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया, उनका अपमान है।"
दीपक सिंह, सदस्य, उत्तर प्रदेश विधान परिषद
क्या कहा अखिलेश ने?
दीपक सिंह ने यह भी कहा कि सावरकर की तसवीर विधानसभा से हटा कर बीजेपी के दफ़्तर में लगा दिया जाए। स्पीकर ने विधान परिषद के सचिव को इस मामले को देखने को कहा है।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि युवाओं को इस पर बहस करना चाहिए कि आज़ादी की लड़ाई में किसका क्या योगदान था।
विनायक दामोदर सावरकर हिन्दू महासभा से जुड़े हुए थे और वे उन लोगों में से हैं, जिनसे बीजेपी प्रेरणा लेती है और अपना आदर्श मानती है।
सावरकर पर विवाद क्यों?
सावरकर को लेकर विवाद इसलिए है कि कालापानी की सज़ा मिलने के बाद उन्हें अंडमान निकोबार द्वीप के पोर्ट ब्लेअर स्थित सेल्युलर जेल में रखा गया था। लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्होंने एक के बाद कई माफ़ीनामा अंग्रेजों को लिखे और सज़ा ख़त्म कर देने की गुहार की। सावरकर ने ब्रिटिश शासकों को यह भी आश्वस्त किया कि वे कभी ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ कुछ नहीं करेंगे। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें माफ़ करते हुए रिहा कर दिया।
बीजेपी की दलील है कि यह सावरकर की रणनीति थी ताकि वे बाहर आकर फिर आन्दोलन कर सकें। लेकिन जेल से निकलने के बाद सावरकर फिर कभी स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े हों, इसका रिकॉर्ड नहीं है।
महात्मा गांधी हत्याकांड में सावरकर अभियुक्त थे, लेकिन उन्हें इस आधार पर बरी कर दिया गया कि उनके ख़िलाफ गवाह देने वाला एक आदमी ही था, उसकी पुष्टि किसी ने नहीं की।
लेकिन बाद में एक अलग आयोग गठित किया गया, जिसने यह कहा कि सावरकर को सिर्फ तकनीकी कारणों से रिहा किया गया था। लेकिन उस रिपोर्ट के आने के पहले ही सावरकर की मृत्यु हो चुकी थी।