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क्या केजरीवाल बीजेपी की बी टीम हैं?

क्या केजरीवाल बीजेपी की बी टीम हैं?

अरविंद केजरीवाल ने यह क्यों दावा किया कि बीजेपी पिछले दरवाज़े से सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनवाना चाहती है? और कांग्रेसियों का आरोप में कितना दम है कि केजरीवाल इस काम में उसके सहयोगी हैं?

केजरीवाल समर्थकों और कांग्रेस समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर और राजनीतिक विमर्श में द्वन्द्व छिड़ा हुआ है और वह बढ़ता ही जा रहा है।

कांग्रेस समर्थकों का आरोप है कि केजरीवाल आरएसएस की बी टीम है और कांग्रेस को निबटाने में लगी हुई है। वह हर उस जगह चुनाव लड़ने पहुँच जाती है जहां कांग्रेस बीजेपी के मुक़ाबले में है!

केजरीवाल समर्थकों का तर्क है कि कांग्रेस अपने ही कारणों से खुद समाप्त हो रही है और बीजेपी का कहीं मुक़ाबला करने के लिए तैयार नहीं है। बस ख़ानापूर्ति कर रही है। उसके विधायक अनुशासनहीन हैं और बीजेपी के हाथ बिक जाते हैं। वह ऐसे विधायकों की लिस्ट दोहराती रहती है। गोवा में कांग्रेस विधायकों की बड़ी खेप बीजेपी में दाखिल हुई है।

कांग्रेस की समस्याएँ उसका सच हैं। राजस्थान में वह दो फाड़ है, छत्तीसगढ़ में भी दूसरा धड़ा हाईकमान के समक्ष पेंडिंग है। गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब वह गँवा चुकी है। केरल में उसकी वापसी न हो सकी। उसके राज्यसभाई नेता पार्टी का टर्मिनल बदलकर दूसरे टर्मिनलों में बंगला/ पेंशन तलाश रहे हैं। नौजवानों के लिए उसमें कोई आकर्षण वाली बात बची नहीं है और न पैदा हो पा रही है। पुराने रिश्तों के नाम पर कारपोरेट सपोर्ट भी सूखते तालाब की कब तक सिंचाई करेगा?

अब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर उसकी आस लगी है। हालाँकि वह देश की सबसे पुरानी पार्टी है जिसके हमदर्द देश के ज़र्रे ज़र्रे में फैले हुए हैं। कमज़ोर वर्गों में आज भी उसकी धुँधलाती स्मृतियों के अक्स हैं। अक्लियतों को आज भी उसी से आस है और वह उन मुद्दों पर आज भी सब बोलने का जोखिम उठाती रहती है जिससे बाक़ी दूसरों की घिग्घी बंधती है।

 

केजरीवाल ने पिछले दस बरसों में देश की राजनीति में आप नाम का स्टार्टअप खड़ा किया है। वे राजनीतिक पार्टियों को ख़ारिज करते हैं और खुद को मौजूदा दौर का मसीहा बताते हैं। उनके पास दिल्ली में लगातार तीसरी बार जीतने का रिकॉर्ड है। अब उन्होंने पंजाब भी फ़तह कर लिया है जिससे उनके स्टार्टअप में ताज़ा इन्वेस्टमेंट आ गया है। नतीजतन उनकी महत्वाकांक्षा आकाश में जा पहुँची है और वे नई सफलताओं के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। गुजरात में फ़िलहाल उन्होंने पड़ाव किया है और देश की सबसे बड़ी कुर्सी के लिए भी साथ साथ दावा कर दिया है!

 

ताज़ा सरगर्मी केजरीवाल के उस बयान पर है जिसमें उन्होंने दावा किया कि बीजेपी पिछले दरवाज़े से सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनवाना चाहती है!

यह बयान आप वालों तक को हज़म न हुआ, कांग्रेसियों को तो ख़ैर क्या होता! बीजेपी दावा करती रही है कि वह कांग्रेस मुक्त भारत देखना चाहती है। कांग्रेसियों का आरोप है कि केजरीवाल इस काम में उसके सहयोगी हैं।

केजरीवाल के पीछे कोई बैगेज नहीं है, सब वर्तमान है। उनका स्टार्टअप चल तो निकला है। उसमें इन्वेस्टमेंट भी आ रहा है लेकिन बड़े छोटे कार्यकाल में ही उसकी फाल्टलाइन्स भी सामने आ गई हैं। उनका स्टार्टअप बेतरह मौक़ापरस्त और व्यक्तिवादी है। सब कुछ मैं पर आधारित। दरअसल, उनका यह गुण मोदी जी की पक्की नक़ल है। मोदी जी के यहाँ पहले से ही द्वितीयोनास्ति लागू है लेकिन उनके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा विशाल संगठन है।

कम समय में ही केजरीवाल का बैगेज तैयार हो रहा है, दो कमरे के मकान में रहूँगा की जगह बंगला और फिर उसका लकदकीकरण। चंदा माँग कर संगठन चलाने की जगह दूसरे रास्तों से अर्जित धन के आरोप। ठकुरसुहातियों से घिरते जाना और अपनी राय से अलग राय वालों को पार्टी से बाहर कर देना। निजी व्यवहार/ बातचीत में निरंकुश तानाशाह जैसा व्यवहार करना लेकिन बाहर सार्वजनिक मंच पर दीनहीन बने रहना। न कोई सांगठनिक विचार है और न ही पार्टी का कोई विचार है।

केजरीवाल ऐसे तमाम मामलों में आज की राजनीति के सफल क्षेत्रीय छत्रपों जैसे ममता बनर्जी, केसीआर, जगन मोहन रेड्डी आदि की तरह ही हैं। एक मामले में उनसे मीलों आगे हैं। वह है मीडिया/ सोशल मीडिया कंट्रोल। दिल्ली की अर्धसरकार के बजट से ही यह करिश्मा उन्होंने कर दिखाया है और पंजाब में तुरंत उनकी सरकार ने इसे लागू कर लिया है। दरअसल, दिल्ली में होने से नेशनल मीडिया (टीवी चैनल्स) पर उनकी पकड़ ने उन्हें मोदी जी के बाद सबसे ज़्यादा चर्चित व्यक्तित्व में बदल दिया है।

 

केजरीवाल की सरकार ‘भ्रष्टाचार’ के विरोध पर बनी थी पर सरकार बनने के बाद उन्होंने 300 यूनिट फ़्री बिजली, बेहतर सरकारी स्कूलों की शिक्षा और बेहतर सरकारी अस्पताल को अपना मॉडल घोषित कर दिया है।

केरल के सिवाय किसी भी दूसरे राज्य में उनको इस मॉडल पर श्रोता मिल ही सकते हैं और मिल रहे हैं, यही उनकी पूँजी बन गई है। ‘मॉडल’ थ्योरी उन्होंने गुजरात मॉडल की मार्केटिंग से उड़ाई है और अब गुजरात में ही उसे बीजेपी के मुँह पर पोत रहे हैं।

केजरीवाल से उलट कांग्रेस के पास दिक़्क़तें ही दिक़्क़तें हैं। लोकसभा चुनावों में दो बार बुरी तरह से पराजित होने के कारण उनके नेतृत्व पर से उनकी पाँतों का भरोसा उठ गया है और पार्टी का अनुशासन छिन्न भिन्न है। जिन दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार बची है उनके मुख्यमंत्रियों से नेतृत्व को खुद तालमेल रखना पड़ रहा है। वहाँ धड़ों में बंटी पार्टी धराशायी हो रही है लेकिन नेतृत्व कुछ कर पाने की हालत में नहीं है। पार्टी 2019 के बाद राहुल गांधी द्वारा इस्तीफा दे दिए जाने से पूर्णकालिक अध्यक्ष के बिना चल रही है और इस सवाल से छिपती फिरती है।

 

 - Satya Hindi

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रियंका गांधी को उतार देने के बावजूद सिर्फ़ दो सीटों पर सिमट जाने से कांग्रेसियों का मनोबल पूरी तरह टूट कर बिखर गया है। पुराने छत्रप सरकारी पार्टी में घोंसले ढूँढ रहे हैं और नयी भर्ती वाले अभी कांग्रेस जैसे बूढ़े बरगद के लिए खाद पानी जुटाने के लिए अनुभवहीन हैं। पिछले दो तीन दशकों में कांग्रेस में कई जगह (महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना) स्थानीय छत्रपों ने विद्रोह करके स्वयं को ख़ुदमुख़्तार घोषित कर लिया और कांग्रेस वहाँ ग़ायब हो गई या जर्जर हो चुकी है। बाक़ी जगहों पर केजरीवाल चुनौती बन गए हैं। गोवा, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा आदि ऐसे ही राज्य हैं जहाँ केजरीवाल कांग्रेस को जीम जाने का लक्ष्य रखते हैं!

लंबे समय तक किंकर्तव्यविमूढ़ रहने के बाद पहली बार कांग्रेस ने भारत जोड़ो नामक एक लंबी पदयात्रा का राजनीतिक कार्यक्रम हाथ में लिया है। इसका सार्वजनिक और दीर्घकालिक असर चाहे जो हो पर गोवा में आठ कांग्रेस विधायकों ने बीजेपी का पटका धारण करके गोवा के बीते चुनाव में केजरीवाल के उस बयान की पुष्टि की है कि कांग्रेस को वोट देना बीजेपी को वोट देने के बराबर है क्योंकि उसके विधायक तो चुनाव जीतने के बाद बीजेपी में ही जाने हैं।

 

केजरीवाल फ़िलहाल सफलता की कश्ती पर सवार हैं इसलिए वे कांग्रेस पर तंज कस सकते हैं लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके मुख्यमंत्री पद के चेहरे समेत सारे प्रमुख नेता उत्तराखंड में बीजेपी का पटका पहन चुके हैं, पंजाब के भी पिछले बार के अनेक विधायक दल छोड़कर भाग निकले थे।

इसलिए वे भी ऐसा भरोसा तब तक ही दिखा सकते हैं जब तक सफलता उनके इर्द-गिर्द है, असफलता के दौर में ही यह परीक्षा हो पाती है कि दरअसल विचारधारा आधारित संगठन और विचारहीन जमात में से किसके आकर्षण में सत्यता है और क़िसमें मौक़ापरस्ती? फिर केजरीवाल तमाम क्षेत्रीय छत्रपों की तरह दूसरी पंक्ति तैयार करने में विश्वास नहीं रखते, किसी विपरीत परिस्थिति में उनके दल के लिए यह आत्मघाती हो सकता है।

 

राजनीति में आरोप/प्रत्यारोप किसी का उदय या अस्त तब कर सकते हैं जब उनके लिए कैम्पेन करने वाले में लोगों तक संप्रेषणीय होने की कला हो। मोदी जी और केजरीवाल ने साबित किया है कि उनमें यह कला है जबकि राहुल गांधी ने साबित किया है कि इस कला में वे कभी प्रवीण नहीं हो सकते। इसलिए केजरीवाल के आरएसएस की बी टीम होने के कांग्रेसी आरोप अकलियतों, लिबरल, बुद्धिजीवी तबकों में तो प्रतिध्वनि पाते हैं लेकिन बाक़ी समाज में उसकी फ़िलहाल कहीं कोई सुनवाई नहीं। यह सही है कि देर सबेर केजरीवाल को इससे नुक़सान होना शुरू हो जाएगा लेकिन वे उसकी भरपाई भाजपा से बेहतर हिंदू बनकर करने की कोशिश करते मिलते हैं जिसे हनुमान चालीसा याद है और जो अयोध्या के राम मंदिर के दर्शन के लिए बुजुर्गों की मुफ़्त यात्रा का प्रायोजक है और कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने का भी समर्थक है। हालाँकि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश और गोवा में हालिया विधानसभा चुनावों में केजरीवाल के प्रदर्शन से यह कहीं साबित नहीं हुआ कि बेहतर हिंदू के उनके स्वरूप को हिंदुत्व की पाँतों में स्वीकार किया गया।

 

राजनीति में यह संभव नहीं है कि कोई किसी को वाकओवर दे, इसलिए कांग्रेस की यह आलोचना कि केजरीवाल आरएसएस की बी टीम है कांग्रेस को कोई राजनीतिक लाभ दे सकती है, इसमें संदेह है। हाँ बीजेपी के लिए यह सुगम संगीत ज़रूर है।

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