कांग्रेस आलाकमान को थोड़ा सख़्त होने की ज़रूरत
कांग्रेस मझधार में है। सीएसडीएस का सर्वे कहता है कि वह महाराष्ट्र और हरियाणा में बुरी तरह हार रही है। हार होना या न होना एक मसला है। इन दो राज्यों में होने वाले चुनाव में कहीं से कोई प्रतिरोध नहीं नज़र आ रहा है। अगर किसी से पूछा जाए कि महाराष्ट्र-हरियाणा का चुनाव परिणाम क्या होगा, तो तपाक से यह उत्तर आ रहा है कि इन राज्यों बीजेपी को कोई चुनौती या प्रतिरोध है ही नहीं।
चुनाव परिणाम को लेकर जनता का असल में रुख बताना मुश्किल है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में सर्वे से इतर परिणाम आए थे। छत्तीसगढ़ में कड़ा मुक़ाबला दिखाया जा रहा था, वहां बीजेपी बुरी तरह से हारी। वहीं, गुजरात में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी किसी तरह से शहरी इलाक़ों के दम पर जीतने में कामयाब रही थी और कांग्रेस अच्छा चुनाव लड़कर हारी थी। अब 2019 के लोकसभा चुनाव की ऐतिहासिक हार के बाद कांग्रेस बुरी तरह पस्त है।
कांग्रेस के लचर होने की एक प्रमुख वजह पार्टी की आंतरिक कलह है। लंबी कवायद के बाद भी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना नेता नहीं चुन पाई। राहुल के इस्तीफ़े के बाद पार्टी में अध्यक्ष पद खाली हो गया। लंबे विचार-विमर्श और मंथन के बाद पार्टी ने सोनिया गाँधी को कार्यकारी अध्यक्ष चुना।
बहरहाल, कांग्रेस का स्थिर अध्यक्ष न चुन पाने का मसला अभी पृष्ठभूमि में चला गया है और कांग्रेसियों के साथ उसके सहयोगी दलों व विपक्षी दलों सहित आम जनता ने मान लिया है कि सोनिया गाँधी ही स्थाई अध्यक्ष हैं।
दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में जमकल सिर-फुटव्वल हो रही है। हरियाणा का ही उदाहरण लेते हैं। लोकसभा चुनाव में बड़े जोरशोर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चुनाव प्रचार किया। परिणाम आया तो हरियाणा की सभी लोकसभा सीटों पर पार्टी बुरी तरह से चुनाव हार गई। जेएनयू में एनएसयूआई से छात्र राजनीति शुरू करने वाले हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर और हुड्डा में जंग छिड़ गई। हुड्डा ने अपनी अलग पार्टी बनाने की धमकी के साथ जनसभा और शक्ति प्रदर्शन किया। आखिरकार कांग्रेस ने हुड्डा के सामने घुटने टेक दिए और तंवर हटा दिए गए। उनकी जगह कुमारी शैलजा को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया। उपेक्षा से नाराज तंवर ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया और दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी (जजपा) को समर्थन दे दिया। अब हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा लॉबी ताकतवर है।
इसी तरह से कांग्रेस में महाराष्ट्र में भी जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, प्रतिभा पाटिल, शिवराज पाटिल, सुशील कुमार शिंदे सहित तमाम बड़े नाम वाला दल आज नेपथ्य में है। कांग्रेस के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक शरद पवार थोड़ा बहुत मोर्चा संभाले हुए हैं। वहीं, शिवसेना से आकर कांग्रेस की राजनीति करने वाले संजय निरूपम नाराज हो गए।
टिकट बंटवारे से नाराज निरूपम ने घोषणा की कि कुछ सीटों को छोड़कर पार्टी की हर जगह जमानत जब्त होगी। उन्होंने पार्टी छोड़ने की धमकी भी दी। विधानसभा में नेता विपक्ष रहे राधा कृष्ण विखे पाटिल समेत कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हो गए।
खुर्शीद, सिंधिया की बयानबाज़ी
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने इस बीच बयान दिया कि कांग्रेस अपनी दिशा ही नहीं तय कर पा रही है और वह आगामी महाराष्ट्र व हरियाणा चुनाव हारेगी। इसी तरह से मध्य प्रदेश में ग्वालियर राजपरिवार के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी बगावती तेवर अपना लिये। कश्मीर में अनुच्छेद 370 को कमजोर किए जाने के बीजेपी के फ़ैसले पर पार्टी से अलग रुख रखते हुए उन्होंने बीजेपी का समर्थन किया था। वहीं, हाल में सिंधिया ने कमलनाथ की आलोचना की और खुर्शीद का परोक्ष रूप से पक्ष लेते हुए कहा कि कांग्रेस को आत्मावलोकन करने की ज़रूरत है।
कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार तिहाड़ में हैं। पार्टी ने चिदंबरम का तो साथ दिया है, लेकिन शिवकुमार की पूरी तरह उपेक्षा कर दी है और उन्हें स्थानीय नेता तक ही समेट दिया है।
पूरे विपक्ष की तरह से कांग्रेस के और भी तमाम नेता केंद्र सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं। इनमें से कुछ समय-समय पर कांग्रेस के ख़िलाफ़ बयान देते रहते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस अपनी लोकप्रियता के निचले स्तर पर है। राहुल गाँधी जितना कांग्रेस को संभालने की कवायद कर रहे हैं, कांग्रेस का शीराज़ा बिखरता ही चला जा रहा है। हालांकि कांग्रेस अभी सामाजिक न्याय और वंचितों को हक़ दिलाने की लड़ाई लड़ती नज़र आ रही है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने ओबीसी, एससी, एसटी को नौकरियों में ज्यादा हक़ दिलाने की कवायद की। वहीं राजस्थान व छत्तीसगढ़ में पिछड़े वर्ग के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया।
उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकारिणी के गठन में न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पिछड़े वर्ग से बने हैं, बल्कि जिला अध्यक्षों में भी पिछड़े वर्ग और दलितों को महत्व दिया जा रहा है। पार्टी पूरी कवायद में है कि दलितों व पिछड़ों के जिस तबक़े ने बीजेपी का दामन थाम लिया है, उन्हें कांग्रेस के पाले में लाया जाए।
पार्टी की एकजुटता की कवायद भी बहुत ज़रूरी है। डूबते दल के आगे बढ़ने के लिए यह ज़रूरी है कि पार्टी एकजुटता को लेकर सख़्ती बरते। इस समय पार्टी जिस हाल में है, उसके पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है।
जो सर्वे आये हैं, उनकी मानें तो हरियाणा और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस हारने वाली है। ऐसे में हरियाणा या महाराष्ट्र के किसी भी विद्रोही नेता को पार्टी से तत्काल 5 साल के लिये निकाल देना सबसे बेहतर रास्ता है। पार्टी हार ही रही है। ऐसे में विद्रोही रुख अपनाने वाले नेताओं को निकालकर अगर 10-15 सीटें और हार जाती है तो पार्टी की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।
कांग्रेस को अनुशासन पर खास जोर देने की ज़रूरत है, जिससे नेताओं की बयानबाजियों की वजह से पार्टी में निराशा का माहौल न बने। देश में विपक्ष की उदासी व निराशा ने भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी जंग एकतरफा बना दी है। कांग्रेस उन बड़े से बड़े नेताओं को तत्काल निकाले, जो पार्टी के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। तभी बीजेपी के ख़िलाफ़ कुछ सकारात्मक माहौल बनने की संभावना है।