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कश्मीरी पंडितों पर कांग्रेस का प्रस्तावित विधेयक बीजेपी के लिए परीक्षा?

कश्मीरी पंडितों पर कांग्रेस का प्रस्तावित विधेयक बीजेपी के लिए परीक्षा?

क्या सरकार कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर श्वेत पत्र जारी करने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने को तैयार हो सकती है या उनके नरसंहार व सामूहिक पलायन की जांच के लिए जाँच आयोग बना सकती है?

कश्मीरी पंडितों को लेकर बनी फ़िल्म 'द कश्मीर फाइल्स' को जोर-शोर से बढ़ावा देने में लगी सरकार क्या कश्मीरी पंडितों से जुड़े कांग्रेस के किसी प्रस्ताव पर साथ आ सकती है? यह सवाल इसलिए कि एक कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा कश्मीरी पंडितों के हालात पर संसद में प्राइवेट मेंबर बिल लाने वाले हैं।

इस निजी विधेयक में सरकार से आग्रह किया जाएगा कि वह घाटी में समुदाय के पुनर्वास को बिना किसी देरी के सुनिश्चित करे। इसमें उनकी संपत्तियों को कश्मीरी पंडितों को फिर से मुहैया कराने और सुरक्षा प्रदान करने पर ध्यान देने की मांग भी शामिल है। कश्मीर में उनकी वापसी को प्रोत्साहित करने के लिए रोजगार देने की मांग भी की गई है।

लेकिन सवाल है कि क्या इसके लिए सरकार तैयार होगी? यह सवाल इसलिए कि एक तो यह विधेयक कांग्रेस द्वारा पेश किया जाना है और दूसरा, इसमें कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिस पर बीजेपी के सदस्य सहमत होंगे, इसमें संदेह है।

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यसभा में कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा कश्मीरी पंडित (पुनर्स्थापन और पुनर्वास) अधिनियम विधेयक पेश करने वाले हैं। बीजेपी सरकार के लिए यह एक परीक्षा हो सकती है क्योंकि यह कश्मीरी पंडितों के अब तक के अत्याचारों और दुर्दशा पर एक श्वेत पत्र जारी करने के लिए विशेषज्ञ समितियों की मांग करता है। इसके साथ ही उनके 'नरसंहार' और 'सामूहिक पलायन' की जाँच के लिए एक जांच आयोग गठित करने की भी मांग करता है।

रिपोर्ट के अनुसार, उस निजी विधेयक में मांग की जाएगी कि श्वेत पत्र भारत के एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक पैनल द्वारा संकलित किया जाए। इसमें केंद्र में बीजेपी के आठ साल के शासन और राज्य में उसकी पिछली सरकार को भी शामिल किया जाएगा। 

इसके अलावा जिस जांच आयोग के गठन की बात की गई है वह जाहिर तौर पर 1989 की जाँच करने के लिए बाध्य होगा। यह वह अवधि थी जब बीजेपी द्वारा समर्थित वीपी सिंह की सरकार थी और उसी दौरान कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था।

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल तब बीजेपी के वफादार जगमोहन थे। कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर प्रतिद्वंद्वियों पर बीजेपी के हमले के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया में दोनों मुद्दे प्रमुख रूप से सामने आए हैं।

कश्मीरी पंडितों का मुद्दा बीजेपी सरकार और कांग्रेस के बीच हाल में इसलिए उछला है क्योंकि इस पर एक फिल्म द कश्मीर फाइल्स आई है। इस फ़िल्म में कश्मीरी पंडितों की हत्या और उनके पलायन की त्रासदी को दिखाया गया है। लेकिन इस फ़िल्म में रखे गए तथ्यों को लेकर सवाल उठाए गए हैं। सरकार इस फ़िल्म को टैक्स फ्री कर और अन्य तरीक़ों से बढ़ावा दे रही है जबकि विपक्षी दलों के नेता इस फिल्म को प्रचार, प्रोपेगेंडा और नफ़रत को बढ़ावा देने वाला क़रार दे रहे हैं।

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हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि इस फिल्म को बदनाम करने की साजिश की गई है। दिल्ली में बीजेपी संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने फिल्म के आलोचकों पर तंज किया और कहा कि वे गुस्से में हैं क्योंकि हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म उस सच्चाई को सामने ला रही है जिसे जानबूझकर छिपाया गया था। उन्होंने कहा था कि पूरी जमात जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा फहराया था, 5-6 दिनों से उग्र है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि तथ्यों और कला के आधार पर फिल्म की समीक्षा करने के बजाय, इसे बदनाम करने की साजिश की जा रही है। 

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प्रधानमंत्री के बयान के एक दिन बाद कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि क्या देश के पीएम बापू के आदर्शों से लेकर कश्मीरी पंडितों के दर्द तक सब कुछ फ़िल्मों के जिम्मे छोड़ देना चाहते हैं? तथ्यों और सच्चाई से मुंह फेरने वाली मोदी सरकार को आख़िर कब अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होगा? उन्होंने कहा कि आख़िर कब तक केवल झूठ-नफ़रत-बंटवारे में ही राजनीतिक अवसर तलाशते रहेंगे?

बहरहाल, तन्खा का बिल घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी की सुविधा के लिए एक विस्तृत बुनियादी ढांचा स्थापित करना चाहता है। इसमें सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना, लौटने वाले परिवारों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए भारी निवेश, शिक्षा और नौकरियों के लिए कोटा और उनके लिए मासिक पारिवारिक सहयोग शामिल है। इन सबसे ऊपर यह चाहता है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के तहत समुदाय को 'अल्पसंख्यक' घोषित किया जाए। लेकिन सवाल वही बना हुआ है- क्या बीजेपी सरकार इसके लिए तैयार होगी?

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