बंगाल: सियासी वजूद बचाने के लिए फिर साथ आए कांग्रेस-लेफ़्ट
यह शायद बंगाल में ममता बनर्जी और बीजेपी की आक्रामक राजनीति का ही असर है कि किसी वक़्त में बंगाल में 34 साल तक सत्ता में रहे वाम मोर्चा (लेफ़्ट) को फिर से कांग्रेस से हाथ मिलाना पड़ा है। कांग्रेस भी राज्य की सत्ता में रह चुकी है।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा में संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने गुरूवार को एलान किया कि कांग्रेस और वाम मोर्चा मिलकर बंगाल का चुनाव लड़ेंगे। चौधरी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गठबंधन को हरी झंडी दे दी है। बंगाल में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं, इस लिहाज से वक़्त ज़्यादा नहीं बचा है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और वाम मोर्चा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन इस गठबंधन का प्रदर्शन ख़राब रहा था। इसलिए ऐसा माना जा रहा था कि दोनों दल इस बार गठबंधन नहीं करेंगे। पर सियासी मजबूरी या सियासी हालात को देखते हुए दोनों को फिर साथ आना पड़ा।
बंगाल में कांग्रेस और वाम मोर्चा के साथ आने का सीधा मतलब ख़ुद के वजूद को बचाने की कोशिश है क्योंकि मीडिया यह दिखा रहा है कि राज्य में सियासी लड़ाई बीजेपी और टीएमसी के बीच है। ऐसे में मैसेज यह जा रहा था कि ये दोनों लड़ाई से बाहर हैं।
करो या मरो वाले हालात
कांग्रेस और वाम मोर्चा ने यह फ़ैसला सोच-समझकर लिया है। दोनों दल इस बात को जानते हैं कि अगर टीएमसी या बीजेपी में से कोई भी सत्ता में आया तो बंगाल पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी और सत्ता में वापसी का ख़्वाब सिर्फ़ ख़्वाब ही बनकर रह जाएगा। इसलिए करो या मरो की हालत में दोनों फिर से साथ आ गए।सरकार बनाना बीजेपी का सपना
बंगाल का चुनाव इन दिनों मेन स्ट्रीम मीडिया पर छाया हुआ है। जनसंघ के संस्थापक और बीजेपी के प्रेरणा पुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बंगाल में भगवा लहराना बीजेपी का सपना रहा है। लेकिन वाम मोर्चा के इस मजबूत गढ़ में यह सपना महज सपना ही बनकर रह गया था। इस काम में तेज़ी आई, 2014 में अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद।
2016 के विधानसभा चुनाव में 3 सीटें आने के बाद भी बीजेपी और संघ ने बंगाल को केंद्र में रखा और उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मेहनत का फल भी मिला, जब राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान करते हुए बीजेपी ने 18 सीटें झटक लीं। इसके बाद बीजेपी ने ठान लिया कि राज्य में सरकार बनानी है और बीते दिनों में नड्डा के काफिले पर हमले से लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या की घटना तक पर मोदी सरकार और बीजेपी संगठन ममता सरकार पर टूट पड़े हैं।
कांग्रेस यह आरोप लगाती है कि यह ममता बनर्जी ही हैं, जिन्होंने 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर उसे बंगाल में पैर पसारने का मौक़ा दिया जबकि उसने तब ममता को सावधान भी किया था।
साथ आना सियासी मजबूरी
2016 के चुनाव नतीजों की बात करें तो कांग्रेस को 44, वाम मोर्चा को 32, बीजेपी को 3 और टीएमसी को 211 सीट मिली थीं। यानी पिछली बार कांग्रेस और वाम मोर्चा का गठबंधन मिलकर भी टीएमसी को सत्ता में आने से नहीं रोक पाया था। इस बार तो बीजेपी भी जबरदस्त टक्कर दे रही है, ऐसे में दोनों दलों के फिर से साथ आने को सिर्फ़ सियासी मजबूरी ही कहा जा सकता है।
बंगाल चुनाव पर देखिए वीडियो-
सीएए-एनआरसी अहम मुद्दा
ममता बनर्जी ने राज्य में जिस आक्रामक अंदाज में सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनों की अगुवाई की थी, उससे यह माना जा रहा है कि लगभग 30 फ़ीसदी मुसलिम आबादी वाले इस राज्य में वह मुसलिम मतों का बड़ा हिस्सा हासिल करेंगी। बीजेपी सीएए-एनआरसी के ही जरिये हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करेगी क्योंकि गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा हाल में कह चुके हैं कि नए साल में सीएए को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
ऐसे में कांग्रेस और वाम मोर्चा के सामने अपने पिछले प्रदर्शन को सिर्फ़ बरकरार रखने की नहीं बल्कि उससे कहीं बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती है। क्योंकि 294 सीटों वाली बंगाल विधानसभा में बहुमत के लिए 148 सीटों की ज़रूरत है, जिसके लिए दोनों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
केरल में होगी मुसीबत
बंगाल में गठबंधन को लेकर जो ना-नुकुर चल रही थी, उसके पीछे केरल भी बड़ा कारण था। केरल में भी बंगाल के साथ ही विधानसभा चुनाव होने हैं। केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन और वाम मोर्चा वाले गठबंधन की आमने-सामने की टक्कर होनी है। ऐसे में बंगाल में साथ लड़ना और केरल में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ भिड़ना, वो भी एक ही वक़्त में, इसे लेकर कांग्रेस और वाम मोर्चा दोनों सियासी विरोधियों के निशाने पर रहेंगे।