कमलनाथ बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव से 'दूर' क्यों रहे?
मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ प्रतिपक्ष कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव दो दिन की लंबी चर्चा के बाद गुरुवार को औधें मुंह गिर गया। सदन की संख्या के मान से इस प्रस्ताव का गिर जाना सुनिश्चित था। राज्य विधानसभा के चुनावी साल के ठीक पहले शिवराज सरकार की कथित कारगुजारियों, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर घेराबंदी के प्रयास में कांग्रेस उलट ‘फंस’ गई। दरअसल प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत से लेकर सरकार के जवाब तक कमलनाथ की अनुपस्थिति न केवल सुर्खियों में रही, बल्कि उनके सदन में न आने से कांग्रेस की जबरदस्त घेराबंदी का अवसर सत्तापक्ष को मिल गया।
बता दें कि राज्य विधानसभा के सोमवार से शुरू हुए पांच दिवसीय शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन प्रतिपक्ष कांग्रेस ने शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की सूचना दे दी थी। सूचना के बाद दो दिन आसंदी (विधानसभा स्पीकर) और सरकार पर इस प्रस्ताव को चर्चा में लेने का दबाव कांग्रेस पक्ष द्वारा बनाया गया। आसंदी और सरकार की मंजूरी के बाद ऐसा लगा कि कांग्रेस न केवल अपने मंसूबे में सफल हुई, बल्कि प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष को जमकर धोयेगी।
बुधवार को दोपहर करीब 12 बजे, 50 से ज्यादा बिन्दुओं वाले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा आरंभ हुई। पिछले दिनों कमलनाथ की जगह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाये गये दिग्विजय सिंह के नजदीकी नेता डॉ. गोविंद सिंह ने चर्चा की शुरुआत की। पक्ष और विपक्ष के तीन दर्जन से कुछ ज्यादा सदस्यों ने सदन में अपनी बातें रखीं। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा बुधवार और गुरुवार की दरमियानी रात ढाई बजे तक चली।
प्रतिपक्ष कोई नये आरोप लेकर नहीं आ पायी। शिवराज सरकार के मौजूदा एवं पूर्व कार्यकालों के कथित पुराने भ्रष्टाचार और मुद्दों को ही नये सिरे से उठाती नज़र आयी। अधिकांशतः अखबारों की पुरानी कतरनों, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर नुमाया हुईं ‘खबरों’ के आसपास ही आरोप सिमटे रहे। अविश्वास प्रस्ताव पर पहले दिन की चर्चा से जुड़ी मीडिया की ख़बरें कमलनाथ के सदन से ‘नदारद’ रहने पर ज्यादा केन्द्रित रही। यही हेडलाइन बनी कि अहम अवसर पर भी कमलनाथ सदन में नहीं पहुंचे। यहाँ बता दें कि भोपाल में विधानसभा भवन में शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान जब कांग्रेस के सदस्य आरोपों के बाण छोड़ रहे थे, तब विधानसभा के तत्कालीन लीडर ऑफ अपोजिशन और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सिरोंज में आमजनता से ‘मुखातिब’ होते (सभा करते) रहे।
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ ने भोपाल से लगी सिरोंज विधानसभा क्षेत्र के लोगों से कहा, ‘मैंने पहले ही कह दिया था कि सिरोंज आऊंगा। मैं वचन का पक्का हूं, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव छोड़कर आपके बीच आया हूँ।’
कमलनाथ बुधवार के बाद गुरुवार को भी विधानसभा नहीं पहुंचे। गुरुवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का जवाब आना था। कमननाथ का गुरुवार को भी सदन में ना आना चर्चा का विषय रहा।
दरअसल कमलनाथ अथवा उनका मीडिया प्रबंधन देखने वालों को भी अधिकारिक तौर पर इस बात की ‘खबर’ नहीं थी (मीडिया के पूछने पर कुछ नहीं बता पाये) कि नाथ आखिर कहां ‘व्यस्त’ हैं?
उधर सीएम शिवराज ने कांग्रेस के सदस्यों के हंगामे और तीखी नोंकझोक के बीच करीब ढाई घंटे अनवरत जवाब दिया। उन्होंने कमलनाथ की अनुपस्थिति में कांग्रेस पर जमकर निशाने साधे। कांग्रेस के लिए दुर्भाग्यजनक बात यही रही कि नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की अस्वस्थ माता की हालत नाजुक हो जाने की सूचना आ गयी थी। बुधवार आधी रात के बाद वे भी अपने घर लहार (भिंड) के लिए रवाना हो गये थे।
कमलनाथ की अनुपस्थिति का सत्तापक्ष को मिला लाभ
कमलनाथ के सदन से अनुपस्थित रहने पर सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सदस्यों ने नाथ, कांग्रेस खेमे और उसके अविश्वास प्रस्ताव की जमकर चुटकियां लीं। राज्य सरकार के प्रवक्ता और संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पहले सवाल उठाया और कहा, ‘कमल नाथ को ऐसा कौन सा काम आ गया जो महत्वपूर्ण अवसर पर भी सदन से गैरहाजिर हैं।’
सवाल का जवाब भी मिश्रा ने दिया और कहा, ‘विधानसभा को बकवास कहने वाले कमलनाथ जी के लिए सदन सर्वोपरि नहीं है!’ सत्तापक्ष के अन्य सदस्यों ने भी अनुपस्थिति पर कमलनाथ और कांग्रेस पर तीखे कटाक्ष किये।
प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रतिपक्ष कांग्रेस पूरी तरह से बिखरी-बिखरी नजर आयी। कमलनाथ की अनुपस्थिति पर सत्तापक्ष हावी तो रहा ही, अनेक अवसरों पर उनकी गैर मौजूदगी से जुड़ी ‘हानि’ भी साफ तौर पर दिखी। दरअसल, कमलनाथ बेहद सीनियर होने के साथ नियम-कायदों के जानकार हैं। उनके न होने से आसंदी एवं सरकार को नियम-कायदों में उलझाने, इनका पालन कराने और कथित अनावश्यक लाभ लेने देने की चेष्ठा को विफल करने की कांग्रेस की रणनीति परवान नहीं चढ़ पायी।
रात को ही दिल्ली रवाना हो गये थे कमलनाथ
सिरोंज के बाद कुछ विवाह समारोह में शामिल होने के पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के लिए कमलनाथ के रवाना होने की जानकारी सूत्रों ने ‘सत्य हिन्दी’ को दी। सूत्रों ने बताया कमलनाथ प्रदेश के अपने पूर्व निर्धारित दौरे के बाद दिल्ली के लिए उड़ गए थे। बताया यह भी गया कि दिल्ली में पार्टी से जुड़ी कोई अहम बैठक गुरुवार को पूर्व से निर्धारित थी, उसी के लिए वह दिल्ली गए हैं।
कैसे फतह होगा 2023 का किला?
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में होना है। चुनावी साल के ऐन पहले कांग्रेस में कथित बिखराव ने पार्टी की चिंता पालने वालों को बेचैन किया हुआ है। एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर ‘सत्य हिन्दी’ से साफ़ तौर पर कहा, ‘मध्य प्रदेश कांग्रेस और उसके मुखिया कमलनाथ यह मानकर चल रहे हैं कि बीजेपी, केन्द्र एवं मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी और भाजपा नेताओं में भारी विवाद राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी करा देगा।’
नेता ने आगे कहा, ‘कमलनाथ भले ही वचन के पक्के हैं, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव जैसे अहम मौक़े को छोड़कर वचन को निभाना गले नहीं उतर पा रहा है। विधानसभा रात ढाई बजे तक चली थी। उनका अपना निजी विमान है। दिल्ली की उड़ान को आगे-पीछे करके कुछ समय के लिए भी विधानसभा में उपस्थित हो जाते तो बात बन सकती थी।’
सवालों की लंबी फेहरिस्त है
कमलनाथ का सिरोंज विधानसभा क्षेत्रवासियों से वचन निभाना, शादी समारोह में शामिल होना और दिल्ली उड़ जाने की वजह से अनेक सवालों को जन्म मिला है। सवाल उठाते हुए पूछा जा रहा है, ‘राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश में रहने के दौरान दिग्विजय सिंह से (कथित तौर पर) हुई अनबन तो अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से दूरी की वजह तो नहीं रही?’
पूरे मामले पर कमलनाथ की ओर से अभी सफाई नहीं आयी है। उनसे जुड़े सूत्रों का दावा है, ‘साहब वचन के पक्के हैं, यदि किसी को टाइम दे दिया तो उसे निभाने में या पूरा करने में कोई बदलाव वे नहीं करते हैं।’
‘अब सामंजस्य बेहद जरूरी है’
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राजेश सिरोठिया ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘कमलनाथ के बेहद महत्वपूर्ण अवसर पर सदन में न रहने से सवाल उठना लाज़मी है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए उन्हें समय निकालना चाहिए था। चूंकि वे बड़े कद के लीडर हैं, लिहाज़ा इस बारे में पार्टी उनसे कोई सवाल करेगी, संभव प्रतीत नहीं होता।’ सिरोठिया आगे कहते हैं, ‘अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय था। मगर सरकार को घेरने से जुड़ी तैयारियों में कांग्रेस पूरी तरह से फ्लॉप नज़र आयी। प्रस्ताव के बाद लगाये गये सारे के सारे आरोप अख़बार की पुरानी कतरनों तक ही सीमित रहे। आरोपों की प्रस्तुतियाँ भी लचर रहीं। अकेले जीतू पटवारी भर ने प्रभावी अंदाज में दमदार आरोप लगाये।’ सिरोठिया ने सवालों के जवाब में कहा, ‘कांग्रेस कबीलों में बंटी है, सबको मालूम है। बावजूद इसके, ऐसे अवसर एकजुट होकर और पूरी सामंजस्यता के साथ अपनी बात रखना ज़रूरी है। सुनहरा अवसर प्रतिपक्ष कांग्रेस ने हाथों से निकल जाने दिया।’
‘सत्य हिन्दी’ ने मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह से सवाल किया, कांग्रेस खेमे द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव को सत्तारूढ़ दल विधानसभा में अब तक लाये गये प्रस्तावों में सबसे लचर प्रस्ताव करार दे रही है, अजय सिंह ने कहा, ‘माफी चाहता हूं, इसका जवाब कांग्रेस के किसी विधायक से लीजिये।’ अगला सवाल करने के पहले उन्होंने फोन काट दिया।
शिवराज सिंह से क्या बोले
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ढाई घंटे के लंबे जवाब में कांग्रेस और उसके नेताओं पर न केवल जमकर निशाने साधे, बल्कि कमलनाथ की सरकार ‘गिरने’ के कारण भी गिनाये।
शिवराज सिंह ने कहा, ‘विधानसभा के 2018 के चुनाव में जब हमें 109 सीटें मिली थीं और हम बहुमत से 7 सीटें दूर रह गये थे। कांग्रेस 114 सीटें लेकर आ गई थी तभी हमने विपक्ष में बैठने का मन बना लिया था। नतीजे आते ही मैंने तय कर लिया था, सुबह राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दूंगा। हमारे दल के कुछ साथी चाहते थे, इस्तीफा ना दूं, स्थितियों को देखूं-समझूं। सरकार बनाने का अवसर मिल सकता है। मगर मेरे दिल ने यह सब नहीं माना। हम चाहते तो जोड़-तोड़ करके तब ही सरकार बना लेते, लेकिन हम विपक्ष में बैठे।’
सीएम ने आगे कहा, ‘कमलनाथ की सरकार अपने कर्मों से गिरी। नाथ सरकार में 165 दिन में 450 आईएएस और आईपीएस के ट्रांसफर किए गए। कुल 15 हजार से ज्यादा तबादले किए गए। वल्लभ भवन दलालों का अड्डा बन गया था। सीएम के ओएसडी का जो वीडियो वायरल हुआ, उसके कारण भ्रष्टाचार की विष बेल ऐसी फैली कि पूरे मध्यप्रदेश में त्राहि-त्राहि मच गई।’
उन्होंने कहा, ‘अगर पूछ रहे हैं तो मैं बताना चाहता हूं कि एक नहीं, कई मामले हैं। सिंचाई परियोजना में घोटाला किया गया। विधायकों को मिलने के लिए समय नहीं दिया जाता था। अपने विधायकों से कहते थे चलो-चलो...! कोई बड़ा ठेकेदार आ जाए, तो उसे बैठाते थे।’ सीएम ने कहा,
“
यदि कांग्रेस सरकार ने जनकल्याण और प्रदेश के विकास के लिए कार्य किया होता तो उनकी ही सरकार के मंत्री उन्हें छोड़कर हमारे साथ न आते। हमारे पास आए साथियों का फ़ैसला सही था और जनता ने उन्हें उपचुनाव में भारी बहुमत से फिर से निर्वाचित किया।
शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश
सीएम का जवाब लाइव हुआ
मध्य प्रदेश विधानसभा में लाये गये अविश्वास प्रस्तावों पर मुख्यमंत्री के जवाब को लेकर यह पहला मौक़ा रहा जब सीएम के जवाब को ‘लाइव’ प्रसारित किया गया। इसकी लिंक सरकार की ओर से मीडिया को भेजी गई। मीडिया ने चैनलों के जरिये पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री के जवाब का विधानसभा से सीधा प्रसारण किया।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता के.के.मिश्रा ने लाइव पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, ‘माननीय विधानसभा अध्यक्ष जी, आप सदन के न्यायाधिपति हैं, विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान विपक्ष की सही आवाज़ का सीधा प्रसारण नहीं? आज सीएम के जवाब का सीधा प्रसारण!! क्या यह न्याय है?’
ध्वनिमत से नामंजूर हुआ अविश्वास प्रस्ताव
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जवाब के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई और प्रस्ताव ध्वनिमत से अस्वीकृत हो गया। प्रस्ताव अस्वीकृत होने के बाद कुल पांच दिनों के इस सत्र में एक दिन पहले गुरुवार को ही विधानसभा की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।