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राहुल को अपने ही लोगों ने किया गुमराह, बने हार का कारण?

राहुल को अपने ही लोगों ने किया गुमराह, बने हार का कारण?

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के 3 हफ़्ते बाद भी कांग्रेस में हार को लेकर एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने का सिलसिला जारी है। 

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के 3 हफ़्ते बाद भी कांग्रेस में हार को लेकर एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने का सिलसिला जारी है। जहाँ पार्टी के बुजुर्ग नेता हार के लिए राहुल गाँधी के बेहद क़रीबी और भरोसेमंद लोगों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं युवा नेतृत्व पार्टी में ऊँचे पदों पर बैठे नेताओं के सिर इसका ठीकरा फोड़ रहा है।

रविवार को ‘द संडे गार्जियन लाइव डॉट कॉम’ मेंं प्रकाशित एक ख़बर के बाद पार्टी के भीतर ज़बरदस्त घमासान मचा हुआ है। इस ख़बर में दावा किया गया है कि राहुल गाँधी के बेहद क़रीबी लोगों ने चुनावी नतीजों का ग़लत आकलन देकर उन्हें गुमराह किया और इसी वजह से राहुल गाँधी को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर होना पड़ा। इसके लिए कांग्रेस के डाटा एनालिसिस विभाग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती को ज़िम्मेदार ठहराया गया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने राहुल गाँधी को 184 सीटें जीतने का भरोसा दिलाया था। साथ ही यह भी कहा था कि सबसे ख़राब हालात में भी पार्टी कम से कम 164 सीटें जीतेगी। इस आकलन के मुताबिक़ चुनावी नतीजे नहीं आने पर राहुल गाँधी को क़रारा झटका लगा और इसी के बाद उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया। ख़बर में यह भी दावा किया गया कि चुनावी नतीजे आने के बाद से ही प्रवीण चक्रवर्ती ग़ायब हैं और बड़े नेताओं की लाख कोशिश के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है। उन पर 24 करोड़ रुपए का भारी-भरकम बिल बनाने का भी आरोप लगा।

यह ख़बर सामने आने के बाद कांग्रेस में हड़कंप मच गया। हालाँकि पार्टी के बड़े नेताओं ने इस बारे में मुँह नहीं खोलना ही बेहतर समझा। आपसी बातचीत में कांग्रेस के कई नेताओं ने इसे साज़िश का हिस्सा क़रार दिया। लेकिन अंदर की बात यह है कि पार्टी आलाक़मान की तरफ़ से प्रवीण चक्रवर्ती को सफ़ाई देने के लिए कहा गया है। यह बात सही है कि ख़बर छपने के बाद से प्रवीण चक्रवर्ती ने किसी भी पत्रकार से इस बारे में कोई बात नहीं की। ‘सत्य हिंदी’ ने भी उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मोबाइल नहीं उठाया। एसएमएस के ज़रिए पूछे गए सवालों का जवाब भी नहीं दिया। सोमवार को उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर बाक़ायदा एक बयान जारी करके अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को बेबुनियाद, शरारतपूर्ण, दुखी और बदनाम करने वाला क़रार दिया। साथ ही उन्होंने इस ख़बर को भारतीय पत्रकारिता के लिए भी अपमानजनक बताया। 

प्रवीण चक्रवर्ती ने लोकसभा चुनाव के नतीजे वाले दिन यानी 23 मई को ट्वीट करके बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत से जीतने की बधाई दी थी और कांग्रेस को हार से सबक़ सीखने की बात कही थी। इसके बाद चक्रवर्ती ने एक भी ट्वीट नहीं किया था।

पार्टी आलाक़मान की तरफ़ से निर्देश मिलने के बाद ही चक्रवर्ती ने अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब दिया है। इससे ज़ाहिर होता है कि कहीं ना कहीं दाल में कुछ ना कुछ काला ज़रूर है। चक्रवर्ती अपने ऊपर लगे आरोपों पर बात नहीं कर रहे हैं। अपने विभाग के आधिकारिक लेटर हेड पर जारी किए गए बयान के अलावा उन्होंने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। उन्होंने यह दावा ज़रूर किया है कि वह और उनका विभाग पहले की तरह कांग्रेस के लिए काम करता रहेगा।

पहले भी उठते रहे सवाल

कांग्रेस के डाटा एनालिसिस विभाग को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की एक बैठक में उस वक़्त कई नेताओं ने प्रवीण चक्रवर्ती को निशाने पर लिया था जब उन्होंने शक्ति एप के ज़रिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से फ़ीडबैक लेकर उम्मीदवार तय करने का सुझाव दिया था। उनके विभाग के भारी-भरकम बजट को लेकर भी पार्टी के कई नेताओं ने सवाल उठाए थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि चक्रवर्ती और और उनके विभाग को लेकर पार्टी में उन नेताओं को एतराज़ है जो पहले राहुल गाँधी के इर्द-गिर्द रहा करते थे और यह विभाग बनने के बाद राहुल के दरबार में उनकी अहमियत कम हुई है। 

पिछले साल फ़रवरी में डाटा एनालिसिस विभाग का गठन करने के बाद जब प्रवीण चक्रवर्ती को राहुल गाँधी ने इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी थी तभी से प्रवीण राहुल गाँधी के सबसे भरोसेमंद बने हुए हैं। क्योंकि यह विभाग कांग्रेस में एक स्वायत्त संस्था की तरह काम करता है। प्रवीण चक्रवर्ती सीधे राहुल गाँधी को रिपोर्ट करते हैं। वह कांग्रेस के बाक़ी नेताओं को भाव नहीं देते। यह बात कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ नेताओं को चुभती है। कांग्रेस सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं का गुट प्रवीण चक्रवर्ती को बलि का बकरा बनाने की साज़िश कर रहा है।

कांग्रेस शासित तीन राज्यों में शिकस्त

‘द संडे गार्जियन’ की ख़बर में यह भी दावा किया गया कि पिछले साल के आख़िर में तीन राज्यों में बने कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें अपने-अपने राज्यों में सम्मानजनक सीटें जीतने का भरोसा दिलाया था। कमलनाथ ने जहाँ मध्य प्रदेश में 10 से 15 सीटें जीतने का भरोसा दिलाया था वहीं राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 15 -16 सीटें जीतने का भरोसा दिलाया था। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ज़रूर राहुल गाँधी को ज़मीनी सच्चाई से वाकिफ़ करा दिया था कि उनके राज्य में कांग्रेस दो-तीन से ज़्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी। यह भी बताया जा रहा है कि कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने भी राहुल गाँधी को पहले ही बता दिया था कि गुजरात में एक भी सीट जीतने की संभावना नहीं है। इस पर राहुल गाँधी ने नाराज़गी भी ज़ाहिर की थी।

राहुल जीत के प्रति आश्वस्त थे

प्रवीण चक्रवर्ती ने भले ही बयान जारी करके अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को बेबुनियाद क़रार दे दिया हो लेकिन यह सच्चाई है कि चुनावी नतीजे आने से एक दिन पहले तक राहुल गाँधी केंद्र में अपनी सरकार बनने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। यह भी सच है कि कांग्रेस मुख्यालय के सामने बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत का जश्न मनाने की बड़े पैमाने पर तैयारी की गई थी। दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़े सभी उम्मीदवारों को निर्देश दिए गए थे कि कम से कम 10 से 20 हज़ार लोगों को दस जनपथ और 24 अकबर रोड के सामने इकट्ठा किया जाए। कांग्रेस के आला सूत्रों ने इस बात की तस्दीक की है कि आख़िरी चरण के मतदान के बाद चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली आकर जब राहुल गाँधी से मुलाक़ात की थी तो उस बैठक में अगली सरकार के गठन को लेकर विस्तार से चर्चा हुई थी। इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि अगर सरकार बनाने के लिए नए सहयोगी दलों की ज़रूरत पड़ेगी तो उन्हें कैसे यूपीए में शामिल कराया जाए। राहुल गाँधी की सलाह पर ही नायडू ने लखनऊ जाकर मायावती और अखिलेश से मुलाकात की थी।

कांग्रेस के नेता यह बात मानते हैं कि चुनावी नतीजे आने से पहले तक उन्हें केंद्र में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की सरकार बनने की पूरी उम्मीद थी।

कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का दावा है कि देशभर से मिले फ़ीडबैक के मुताबिक़ कांग्रेस के 120 से 140 सीटें तक जीतने की उन्हें उम्मीद थी। मतदान के शुरुआती चरणों में कांग्रेस को 140 सीटें जीतने की उम्मीद थी लेकिन आख़िरी चरण आते-आते कांग्रेस को इस बात का अहसास हो गया था कि वह सौ के आसपास सीटें जीत सकती है। इसीलिए मतदान ख़त्म होने के फ़ौरन बाद नई सरकार के गठन को लेकर कांग्रेस अपने सहयोगियों और अन्य दलों को साधने के लिए सक्रिय हो गई थी। यह सब राहुल गाँधी के निर्देश पर हुआ था। ज़ाहिर है उस वक़्त राहुल को पूरी उम्मीद थी कि चुनावी नतीजे उनके हक़ में आएँगे।

राहुल को मिल रहा था अच्छे प्रदर्शन का फ़ीडबैक

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नेताओं का कहना है कि डाटा एनालिसिस विभाग ने राहुल गाँधी को 184 सीटें जीतने का भरोसा दिया था या नहीं इस बारे में वह पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते। अगर ऐसी कोई बात हुई होगी तो वह राहुल गाँधी और प्रवीण चक्रवर्ती के बीच ही हुई होगी। किसी भी बैठक में राहुल गाँधी ने 184 सीटें जीतने की बात नहीं कही। सिर्फ़ यह भरोसा दिलाया कि उन्हें जो फ़ीडबैक मिल रहा है उसके मुताबिक़ कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन कर रही है।

अंदरुनी कलह बढ़ी?

जैसे-जैसे कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपनी हार के कारण खोजने में जुटी है वैसे-वैसे नई-नई बातें सामने आ रही हैं। कांग्रेस में सिर फुटव्वल बढ़ता जा रहा है। राहुल गाँधी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ज़िम्मेदारी संभालने को किसी भी सूरत में तैयार नहीं हो रहे हैं। लिहाज़ा पार्टी में नेतृत्वहीनता की स्थिति बनी हुई है। यह स्थिति जितनी देर तक बनी रहेगी उतना ही नुक़सान पार्टी को होगा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को कई मोर्चों पर जंग लड़नी पड़ गई है। उनके सामने राहुल गाँधी को अध्यक्ष बने रहने के लिए राज़ी करना एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। उनके राज़ी नहीं होने की स्थिति में वैकल्पिक व्यवस्था बनाने की चुनौती अलग है और अब सिर फुटव्वल को रोकने की नई चुनौती खड़ी हो गई है।

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