मोदी के ख़िलाफ़ खड़े होने पर भागवत भी आतंकवादी हो जाएंगे: राहुल
कृषि क़ानूनों के मसले पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरूवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाक़ात की है। उनके साथ वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद और अधीर रंजन चौधरी भी मौजूद रहे।
प्रियंका को लिया हिरासत में
पहले योजना थी कि राहुल विजय चौक से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च निकालेंगे और इसमें कांग्रेस के तमाम नेता और सांसद शामिल होंगे। लेकिन पुलिस ने कोरोना के चलते धारा 144 लागू होने का हवाला देते हुए मार्च निकालने की इजाजत नहीं दी। मार्च निकालने की कोशिश के दौरान पुलिस ने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। इसके बाद प्रियंका ने कांग्रेस नेताओं के साथ मंदिर मार्ग पुलिस थाने के बाहर धरना दिया। थोड़ी देर बाद प्रियंका और तमाम नेताओं को पुलिस ने छोड़ दिया।
राहुल ने कहा, ‘बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को किसान और मजदूर समझ गया है और जो लोग मोदी जी के ख़िलाफ़ खड़े होते हैं, उनके बारे में ग़लत बोला जाता है। किसान खड़े हों तो वो आतंकवादी, ग़रीब खड़ा हो तो वो आतंकवादी और अगर एक दिन मोहन भागवत खड़े हो जाएं तो वो भी आतंकवादी हो जाएंगे।’
किसान, कृषि और ग़रीब विरोधी क़ानून
कांग्रेस नेताओं ने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ 2 करोड़ हस्ताक्षरों के अवाला एक ज्ञापन भी राष्ट्रपति को सौंपा। ज्ञापन में इन तीनों कृषि क़ानूनों को तुरंत निरस्त करने की मांग की गई है और इन्हें किसान, कृषि और ग़रीब विरोधी बताया गया है। ज्ञापन में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि सरकार कुछ पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है।
कांग्रेस ने ज्ञापन में कहा है कि इन कृषि क़ानूनों को अध्यादेश के जरिये थोपा गया और यहां तक कि जानबूझकर देश की संसद को दरकिनार किया गया। इसके अलावा किसानों के आंदोलन को 29 दिन होने, इसमें 44 किसानों की मौत होने और इसके बाद भी मोदी सरकार के उनका दर्द नहीं समझने की बात भी ज्ञापन में लिखी गई है।
राहुल गांधी किसान आंदोलन के मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा निकालने से लेकर कई ट्वीट भी कर चुके हैं। राहुल का कहना है कि ये क़ानून पूरी तरह किसानों के विरोध में हैं और इन्हें बिना देर किए वापस ले लिया जाना चाहिए।
कड़ाके की ठंड में हिंदुस्तान की सियासत को गर्मा देने वाले किसान आंदोलन को आम लोगों के साथ ही विपक्षी दलों का भी पूरा साथ मिल रहा है। भारत बंद से लेकर भूख हड़ताल तक कर चुके किसान आने वाले दिनों में आंदोलन को और तेज़ करने की तैयारी में हैं तो विपक्ष भी उनके हक़ में लगातार आवाज़ उठा रहा है।
किसान आंदोलन से मिलेगी ऑक्सीजन!
राहुल गांधी जानते हैं कि हाल ही में बिहार, हैदराबाद के बाद जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है। इसके अलावा बीते कुछ महीनों में चले घमासान के कारण भी पार्टी आलोचना का सामना कर रही है। ऐसे वक़्त में ज़रूरी है कि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के साथ ही उन्हें एकजुट भी किया जाए और इसके लिए किसान आंदोलन एक सुनहरा मौक़ा है। किसानों के हक़ में आवाज़ बुलंद कर राहुल गांधी कांग्रेस को ऑक्सीजन दे सकते हैं।
दिल्ली की जमा देने वाली सर्दी में किसान तमाम बॉर्डर्स पर धरना दे रहे हैं। कई दौर की बातचीत बेनतीजा होने के बाद उनमें ख़ासा ग़ुस्सा है और उन्हें लगता है कि सरकार उनकी मांग को सुनने के लिए तैयार नहीं है, उल्टा वह इन कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बता रही है।
तेज़ होगा आंदोलन
किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए बनाए गए संयुक्त किसान मोर्चा ने दुनिया भर में रह रहे भारतीयों से अपील की है कि वे कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जिस देश में रह रहे हैं, 26 दिसंबर को वहां के दूतावासों के बाहर प्रदर्शन करें। मोर्चा ने कहा है कि 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा के सभी टोल प्लाज़ा को फ्री कर दिया जाएगा।
थालियां बजाने की अपील
25 और 26 दिसंबर को किसान बीजेपी और उनके सहयोगी दलों के नेताओं के घरों में जाकर इन कृषि क़ानूनों को वापस करने के लिए दबाव बनाने को लेकर ज्ञापन सौंपेंगे। इसके अलावा 27 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात करेंगे, उस दिन उसी वक़्त देश भर के लोगों से थालियां बजाने की अपील की गई है।
विपक्षी नेता भी मिले थे
इससे पहले 8 दिसंबर को भी तमाम विपक्षी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने इस मसले पर राष्ट्रपति से मुलाक़ात की थी। विपक्षी नेताओं ने कहा था कि किसानों और विपक्ष से बातचीत किए बिना इन क़ानूनों को पास कर दिया गया। प्रतिनिधिमंडल में राहुल गांधी के अलावा, सीताराम येचुरी, एनसीपी मुखिया शरद पवार सहित कुछ और नेता शामिल थे।
झुकी है मोदी सरकार
टिकरी, सिंघु और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों का साफ कहना है कि उन्हें इन कृषि क़ानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। किसानों से बातचीत करने तक से पीछे हटती रही सरकार अब इन क़ानूनों में संशोधन करने की बात कह चुकी है, एमएसपी पर लिखित आश्वासन की बात कह चुकी है लेकिन किसान इसके लिए राजी नहीं हैं। सरकार के लिए भी इस मसले का हल निकालना बेहद मुश्किल हो गया है।