राज्यसभा के सभापति अंपायर होते हैं, चीयरलीडर नहीं: कांग्रेस
कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की इसलिए तीखी आलोचना की है कि उन्होंने लंदन में राहुल गांधी की टिप्पणी पर निशाना साधा था। कांग्रेस ने कहा है कि राज्यसभा के सभापति एक अंपायर होते हैं और किसी भी सत्ताधारी के लिए चीयरलीडर नहीं हो सकते।
इस मामले में कांग्रेस महासचिव और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने एक बयान जारी किया है। उन्होंने कहा है कि गुरुवार को एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर एक कार्यक्रम में सभापति ने राहुल गांधी के यूनाइटेड किंगडम में दिए गए भाषण पर कुछ टिप्पणियां कीं। रमेश ने बयान में कहा है, 'कुछ पद ऐसे हैं जिनके लिए हमें अपने पूर्वाग्रहों, अपनी पार्टी की निष्ठाओं को त्यागने की ज़रूरत होती है और जो भी प्रोपेगेंडा हो, हम उससे खुद को दूर रखने के लिए मजबूर होते हैं।'
Here is a statement I have just issued in response to some remarks made by the Vice President and Chairnan of the Rajya Sabha a few hours ago. pic.twitter.com/N8BWX0ALmu
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 9, 2023
कांग्रेस की यह प्रतिक्रिया उपराष्ट्रपति धनखड़ द्वारा राहुल गांधी पर संसद में माइक्रोफोन बंद करने के संबंध में उनकी टिप्पणी के लिए हमला करने के बाद आई है। उपराष्ट्रपति ने राहुल गांधी पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि वह इस मुद्दे पर चुप रहे तो वह संविधान के 'गलत पक्ष' में होंगे।
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने कहा था, 'हम तथ्यात्मक रूप से अपुष्ट नैरेटिव के इस तरह के मनगढ़ंत विश्लेषण को कैसे सही ठहरा सकते हैं... जी20 का अध्यक्ष होने के नाते भारत गौरव के क्षण में है। और देश के कुछ लोग अति उत्साह में हमें बदनाम करने में जुटे हैं। हमारी संसद और संविधान को कलंकित करने के लिए इस तरह के गलत अभियान मोड को नजरअंदाज करना बहुत गंभीर और असाधारण है।'
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उपराष्ट्रपति ने आगे कहा था कि कोई भी राजनीतिक रणनीति या पक्षपातपूर्ण रुख हमारे राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता करने को सही नहीं ठहरा सकता है। उन्होंने कहा कि इस दुस्साहस पर मैं चुप रहता हूँ तो यह संविधान के गलत पक्ष में होगा।
उन्होंने कहा था, 'मैं इस बयान को कैसे सही मान सकता हूं कि भारतीय संसद में माइक बंद कर दिया जाता है? ऐसा कहने की उनकी हिम्मत कैसे हुई? हमारे पास हमारे इतिहास का एक काला अध्याय था, आपातकाल की घोषणा। किसी भी लोकतंत्र का सबसे काला दौर। लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति अब परिपक्व हो गई है। इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो सकती है।' उन्होंने कहा कि जो कोई भी देश के अंदर या बाहर ऐसा कहता है, वह राष्ट्र का अपमान है।
उपराष्ट्रपति की वह टिप्पणी राहुल गांधी के उस व्याख्यान के संदर्भ में था जिसमें उन्होंने सोमवार को लंदन में ब्रिटिश सांसदों से कहा था कि लोकसभा के माइक्रोफोन अक्सर विपक्ष के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
राहुल ने हाउस ऑफ कॉमन्स परिसर के ग्रैंड कमेटी रूम में भारतीय मूल के दिग्गज विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान यह टिप्पणी की थी।
धनखड़ ने कहा था, 'मैं राजनीति में कोई पक्षकार नहीं हूं। मैं पक्षपातपूर्ण रुख में शामिल नहीं हूं। लेकिन मैं संवैधानिक कर्तव्य में विश्वास करता हूं ... अगर मैं चुप रहता हूं, तो इस देश में विश्वास करने वाले अधिकांश लोग हमेशा के लिए चुप हो जाएंगे। हम ऐसा नहीं कर सकते कि इस तरह के आख्यान को चलने और रफ्तार पकड़ने दें।'
उपराष्ट्रपति के इस बयान पर तीखी आपत्ति जताते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, 'भारत के उपराष्ट्रपति का कार्यालय, जिसे संविधान राज्यसभा के अध्यक्ष होने की अतिरिक्त जिम्मेदारी देता है, सबसे प्रमुख है।' उन्होंने कहा कि धनखड़ एक ऐसी सरकार के बचाव में उतरे, जिससे उन्हें संवैधानिक रूप से दूरी बनाए रखनी पड़ती है।
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने विदेश में ऐसा कुछ नहीं कहा है जो उन्होंने यहाँ कई बार नहीं कहा है। कांग्रेस नेता ने तर्क दिया कि राहुल का बयान तथ्यात्मक था और धरातल पर वास्तविक था। उन्होंने कहा कि पिछले दो हफ्तों में विपक्षी दलों से जुड़े बारह से अधिक संसद सदस्यों को संसद में उनकी आवाज को दबाने का विरोध करने के लिए विशेषाधिकार हनन के नोटिस दिए गए हैं।
रमेश ने आरोप लगाया कि पिछले आठ वर्षों में, चैनलों और समाचार पत्रों को ब्लैक आउट किया गया है, छापे मारे गए हैं और इस हद तक डराया गया है कि केवल सरकार की ही आवाज उठाई जा रही है।
उन्होंने कहा, 'अध्यक्ष, हालांकि, एक अंपायर, एक रेफरी, एक दोस्त, दार्शनिक और सभी के लिए मार्गदर्शक है। वह किसी भी सत्तारूढ़ व्यवस्था के लिए चीयरलीडर नहीं हो सकता। इतिहास नेताओं को उस उत्साह से नहीं मापता है जिसके साथ उन्होंने अपनी पार्टी का बचाव किया, बल्कि उस गरिमा से मापता है जो उन्होंने लोगों की सेवा में अपनी भूमिका निभाई।'
कांग्रेस महासचिव व संगठन के प्रभारी के सी वेणुगोपाल ने भी ट्वीट कर उपराष्ट्रपति पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'संसदीय कार्यवाही को गलत ढंग से पेश करना उपराष्ट्रपति के कार्यालय के लिए शोभा नहीं देता है।' उन्होंने कहा कि विपक्षी सांसदों के माइक बार-बार बंद कर दिए जाते हैं।
Instead of denying something that is out in the public glare, the Hon'ble VP should ensure that the opposition is given ample space to raise issues of public importance, no matter how uncomfortable they make the Modi govt.
— K C Venugopal (@kcvenugopalmp) March 9, 2023
उपराष्ट्रपति हाल ही में एक अन्य वजह से भी सुर्खियों में रहे थे। दरअसल, जगदीप धनखड़ के निजी स्टाफ के आठ अधिकारी संसद की 12 स्थायी समितियों और आठ विभाग से जुड़ी स्थायी समितियों में 'लगाए' गए हैं। लेकिन इन नियुक्तियों पर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने ट्वीट किया, 'उपराष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन अध्यक्ष हैं। वह वाइस चेयरपर्सन के पैनल की तरह सदन के सदस्य नहीं हैं। वह संसदीय स्थायी समितियों में निजी कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं? क्या यह संस्थाओं को कमजोर करने के समान नहीं होगा?' राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा था, 'इस तरह के कदम के पीछे जो तर्क है, वह मूल रूप से स्थायी समितियों के विचार और संरचना के खिलाफ जाता है?'
पिछले महीने ही राज्यसभा के सभापति के तौर पर जगदीप धनखड़ के उस फ़ैसले की विपक्ष ने तीखी आलोचना की थी जिसमें उन्होंने 12 विपक्षी सांसदों के खिलाफ मामले को जांच और रिपोर्टिंग के लिए सदन की विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया था।
इन सांसदों पर सदन के वेल में बार-बार हंगामा करने, नारेबाजी करने, कार्यवाही को बाधित करने जैसे आरोप थे। अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर और कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल के निलंबन को रद्द करने को लेकर इन सांसदों ने सदन की कार्यवाही को बार-बार बाधित किया था जिससे सदन को स्थगित भी करना पड़ा था।
हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ न्यायपालिका की तुलना में विधायिका की शक्तियों का मुद्दा भी उठाते रहे हैं। उन्होंने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने पूछा कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी।
इसी साल जनवरी में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा था- 'क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं', इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा। केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।