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असम: एंटी बीजेपी फ़्रंट बनाने की मुहिम तेज; अजमल के साथ गठबंधन पर कांग्रेस में रार

असम: एंटी बीजेपी फ़्रंट बनाने की मुहिम तेज; अजमल के साथ गठबंधन पर कांग्रेस में रार

राजनीतिक लिहाज से पूर्वोत्तर के बेहद अहम राज्य असम में 2021 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है।

राजनीतिक लिहाज से पूर्वोत्तर के बेहद अहम राज्य असम में 2021 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। राज्य में अप्रैल-मई में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। लेकिन बेशुमार मुसीबतों से जूझ रही कांग्रेस के लिए यहां भी एक मुश्किल इंतजार कर रही है। 

मुश्किल यह है कि कई बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके तरूण गोगोई ने कहा है कि कांग्रेस ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एआईयूडीएफ़) से आगामी चुनाव में गठबंधन के लिए तैयार है। लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा इसके पूरी तरह ख़िलाफ़ है। 

कांग्रेस और एआईयूडीएफ़, चुनाव में गठबंधन करेंगे इसके संकेत तब मिले जब कुछ दिन पहले राज्यसभा चुनाव में वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भूयान के नामांकन के बाद गोगोई और एआईयूडीएफ़ के प्रमुख बदरूद्दीन अजमल एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नामांकन कक्ष से बाहर आए। 

बदले राजनीतिक हालात की मजबूरी

यहां ये बताना ज़रूरी होगा कि ये वही गोगोई हैं जिन्होंने 2006 के विधानसभा चुनाव के दौरान एआईयूडीएफ़ को नकारते हुए पूछा था कि ये बदरूद्दीन अजमल कौन हैं। लेकिन अब बिलकुल बदले राजनीतिक हालात में तरूण गोगोई एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। 2006 के दौर में गोगोई राज्य के सबसे बड़े नेता थे। गोगोई के साथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा और पूर्व मंत्री रॉकीबुल हसन खड़े हैं। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ बातचीत में रिपुन बोरा कहते हैं, ‘जो भी बीजेपी को सत्ता से बाहर करना चाहता है, हम उससे साथ आने की अपील करते हैं। हम एंटी बीजेपी पॉलिटिकल फ़्रंट बनाएंगे।’ बोरा कहते हैं कि 2016 में कांग्रेस की हार का कारण अकेले लड़ना ही था लेकिन इस बार कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव लड़ेगी। इसीलिए, गोगोई और बोरा 2016 की भूल को सुधारना चाहते हैं। 

जबकि कांग्रेस के दूसरे धड़े का यह मानना है कि एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन करने से राज्य के हिंदू मतदाता कांग्रेस से दूर चले जाएंगे और इससे सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा होगा।

न्यूज़ 18 के मुताबिक़, जैसे ही गोगोई ने एआईयूडीएफ़ और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन का एलान किया नेता विपक्ष देबब्रत सैकिया, वरिष्ठ नेता प्रद्युत बोरदोलोई, भूपेन बोरा और कुछ अन्य नेताओं ने बैठक की और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को हटाने की मांग को लेकर कांग्रेस आलाकमान को पत्र लिखने का फ़ैसला किया।

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असम में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए गोगोई को पूरा जोर लगाना होगा।

गोगोई और रिपुन बोरा इस बात को जानते हैं कि अगर एआईयूडीएफ़ का वोट उन्हें मिल जाता है तो बीजेपी से लड़ाई बहुत आसान हो जाएगी। लेकिन हिंदू वोटों को खोने का डर भी पार्टी के कुछ नेताओं को खाए जा रहा है। 

‘हमें पुरानी बातों को भूलना होगा। हमें उम्मीद है कि अखिल गोगोई के नेतृत्व वाली कृषक मुक्ति संग्राम समिति, वाम दल और अजीत भूयान का फ़्रंट हमारे साथ आएगा।’


अमीनुल इसलाम, महासचिव, एआईयूडीएफ़ ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा

2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी, असम गण परिषद और बोडो पीपुल्स फ़्रंट ने मिलकर चुनाव लड़ा था और इस गठबंधन को 86 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस को 26 और एआईयूडीएफ़ को 13 सीटें मिली थीं। 

जटिल है असम की राजनीति 

असम की राजनीति बेहद जटिल है। बीजेपी असम में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ के मुद्दे को उठाकर ही असम में खड़ी हुई और सत्ता तक पहुंची। बीजेपी जिन्हें बांग्लादेशी घुसपैठिया बताती है, उनमें ज़्यादातर मुसलमान हैं। असम में अवैध रूप से रह रहे शरणार्थियों को बाहर करने को लेकर आज़ादी के बाद से संघर्ष होता रहा है। इस संघर्ष से असम गण परिषद का जन्म हुआ और उसने राज्य में सरकार भी बनाई। 

मुसलमान और एआईयूडीएफ़

असम में क़रीब 34 फ़ीसदी आबादी मुसलमानों की है और इनमें मूल असमिया और बांग्लादेश से आए मुसलमान शामिल हैं। अजमल की मुसलमानों पर मजबूत पकड़ है और इस 34 फ़ीसदी वोट पर लगभग उनका ही कब्जा है। 2005 में बनी उनकी पार्टी एआईयूडीएफ़ ने बहुत तेजी से राज्य में अपना आधार मजबूत किया है। एआईयूडीएफ़ ने 2006 में हुए असम विधानसभा चुनाव में पहली बार लड़ते हुए 10, 2011 में 18 और 2016 में 13 सीटें जीती थीं। 

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अजमल ने कम समय में असम में जनाधार बनाया है।

एआईयूडीएफ़ के प्रमुख अजमल का आधार वोट बैंक मुसलमान ही हैं। अजमल असम के साथ-साथ बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच में भी अपना आधार बनाने में सफल रहे हैं। 

अजमल असम की राजनीति के केंद्र बिदु हैं। अगर वो कांग्रेस के साथ जाते हैं तो बीजेपी इसे मुद्दा बनाएगी। लेकिन अजमल भी इस बात को जानते हैं कि बीजेपी को सत्ता में वापसी करने से रोकने के लिए गठबंधन करना ज़रूरी है।

सीएए बना गले की फांस

सीएए के ख़िलाफ़ आंदोलन असम से ही शुरू हुआ था। इसे लेकर मोदी सरकार का असम में जोरदार विरोध है क्योंकि उसने असम समझौते के मुताबिक़ बाहर से असम में आने वालों के लिए जो तिथि 24 मार्च, 1971 थी, उसे नए नागरिकता संशोधन क़ानून में 31 दिसंबर, 2014 कर दिया। इस वजह से असम गण परिषद के साथ बीजेपी की तनातनी चल रही है। सीएए उन लोगों पर लागू होगा, जो दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आ चुके हैं लेकिन इस क़ानून से मुसलमानों को बाहर रखा गया है। ऐसे में मुसलमानों के पास एकमात्र विकल्प बदरूद्दीन अजमल ही हैं। 

असम गण परिषद इस बात को जानती है कि बीजेपी असमिया राष्ट्रवाद को हिंदू राष्ट्रवाद में बदलने की कोशिश करके उसे राज्य की राजनीति से बाहर कर सकती है। लेकिन वह सीएए को लेकर बेहद कन्फ्यूज है कि वह क्या स्टैंड ले।

फिर से आंदोलन शुरू 

असम सरकार ने सीएए के ख़िलाफ़ आसू द्वारा फिर से आंदोलन शुरू करने के बाद हड़बड़ाहट में कहा कि वह 1985 के असम समझौते के खंड 6 को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो असमिया पहचान और विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए सुरक्षा उपायों से संबंधित है। लेकिन तरूण गोगोई ने कहा है कि अगर सीएए लागू होता है, तो खंड 6 कैसे लागू हो सकता है गोगोई ने कहा कि यह बैंक खाते में 15 लाख रुपये देने की तरह एक और जुमला है और जब तक वे सीएए को वापस नहीं लेते, तब तक खंड 6 को लागू नहीं किया जा सकता है।

नए दल की दस्तक 

चुनावों को नजदीक देखते हुए ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद ने एक कमेटी का गठन किया है। कहा जा रहा है कि ये दोनों जल्द ही राजनीतिक दल का गठन कर सकते हैं। ये बीजेपी के इसलिए ख़िलाफ हैं क्योंकि उसने सीएए में कट ऑफ़ डेट बढ़ा दी है जबकि कांग्रेस और अगप पर असमिया लोगों को धोखा देने का आरोप लगाते हैं। इनका मूल आधार असमिया वोट ही है। 

कुल मिलाकर कांग्रेस अगर एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन को लेकर पशोपेश में है तो बीजेपी, असम गण परिषद सीएए को लेकर असमिया लोगों को जवाब नहीं दे पा रहे हैं। असम गण परिषद सीएए आंदोलन के बाद बीजेपी का साथ छोड़ चुकी थी, अगर वह फिर से ऐसा करती है तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। 

बीजेपी को एनआरसी से बाहर रहे हिंदू वोटरों को घुसपैठिया साबित होने से भी बचाना है और वह असम के हिंदू वोटरों को भी खोना नहीं चाहती, उसके लिए एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाले हालात हैं। देखना होगा कि असम की जनता कैसा जनादेश देती है। 

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