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तमिलनाडु में पीएफ़आई ने फिर उठाया सिर, पीएमके कार्यकर्ता की हत्या से तनाव

तमिलनाडु में पीएफ़आई ने फिर उठाया सिर, पीएमके कार्यकर्ता की हत्या से तनाव

तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के औद्योगिक इलाके में एक व्यक्ति की हत्या के बाद सांप्रदायिक तनाव फैल गया है। 

तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के प्रसिद्ध सिल्क उत्पादन क्षेत्र तिरुभुवनम में एक आदमी के हाथ काट लेने और उसके बाद उसकी मौत से सांप्रदायिक तनाव फैला हुआ है। बीजेपी और संघ के अन्य संगठनों के अलावा पीएमके कार्यकर्ताओं ने यहाँ जाम लगा दिया और मृतक के परिवार को एक करोड़ रुपये हर्ज़ाना देने की माँग की है।

बीते बुधवार को यहाँ 48 वर्षीय वी रामालिंगम के दोनों हाथ काट दिए गए थे। वह उस समय अपने नाबालिग बेटे के साथ घर लौट रहे थे। हमलावर एक उग्र इस्लामी गुट पीएफआई  से संबद्ध बताए गए हैं, जिसका केरल और तमिलनाडु में काफ़ी असर है । 

पुलिस ने चार लोगों को पूछताछ के लिये पकड़ा है, जो इस संगठन से संबद्ध बताए जाते हैं । पीएफआई पर केरल में एक ईसाई शिक्षक का हाथ काटने, एक आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या , केरल के 21 युवाओं को आईएसआईएस के लिए लड़ने के लिए सीरिया भेजने से संबद्ध होने और मशहूर हदिया प्रकरण से जुड़े होने के मामले पहले से चर्चा में रहे हैं।

पीएफ़आई के मामलों की जाँच करने वाली केंद्रीय जाँच एजेन्सी के एक अधिकारी ने 'सत्य हिंदी' को बताया कि यह सुन्नी मुसलमानों के कट्टर वहाबी इस्लाम को मानने वालों का सक्रिय समूह है, जो कथित रूप से जो धर्मपरिवर्तन और हिंसक मामलों में शामिल है। केंद्र सरकार ने इसके नए स्वरूप एसडीएफ पर अभी तक प्रतिबंध नहीं लगाया है, जबकि केरल सरकार इसकी लगातार माँग करती रही है।

रामालिंगम पाँच बरस पहले तक पीएमके का सक्रिय कार्यकर्ता रहा और अब शादियों में टेंट वग़ैरह सप्लाई करने का काम करता था। हमले में मारे जाने के पहले कुछ पीडीएफ़ कार्यकर्ताओं से उसके धार्मिक मसले पर विवाद का वीडियो इस समय वायरल है।

रामालिंगम से विवाद धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर हुआ। पीएफ़आई दलित नेता जिग्नेश मेवानी का स्वागत कर चुका है और उनको आर्थिक मदद देने की तस्वीरें उसके प्रचार सामग्री में मौजूद हैं। 

 - Satya Hindi

एनआईए के एक अधिकारी ने इस संगठन की कारगुज़ारियों को रोक पाने में अपनी असफलता को आरएसएस की ऐसी ही कार्रवाइयों को रोक पाने में असफलता के समानांतर रखा। उन्होंने कहा कि अदालत में इस तरह के आरोपों को साबित कर पाना आसान नहीं होता है। सभी सांप्रदायिक संगठन इसका फ़ायदा उठाते हैं। इनके तमाम छद्म संगठन होते हैं, कार्यकर्ताओं का रिकार्ड नहीं होता और इन्हे परदे के पीछे से नेताओं और अफ़सरशाही और अपने समाज से भी समर्थन मिलता रहता है। 

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