दुनिया भर में जनता ने दिखाये बग़ावती तेवर
भारत में तो हम दीवाली मना रहे हैं लेकिन दुनिया के कई देशों में जनता की बग़ावत का आज सबसे बड़ा दिन है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता फजलुर रहमान ने इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ कराची में बग़ावत का झंडा गाड़ दिया है। उन्होंने अपने साथ नवाज शरीफ़ और बिलावल भुट्टो की पार्टियों को भी जोड़ लिया है।
मुसलिम लीग (नवाज़) और पीपल्स पार्टी के अलावा भी कई छोटी-मोटी पार्टियां मिलकर अब इस्लामाबाद में धरना देंगी। उनका कहना है कि जब तक इमरान ख़ान इस्तीफ़ा नहीं देंगे, वे राजधानी को घेरे रखेंगे। इनसे भी ज़्यादा बाग़ी तेवर लातीनी अमेरिका के देश चिली, स्पेन की राजधानी बार्सीलोना और इराक़ की राजधानी बग़दाद में आम लोग दिखा रहे हैं।
हांगकांग जैसे छोटे-से चीनी प्रदेश में 15-20 लाख लोग सड़क पर उतर आए हैं, यह असाधारण घटना है। चिली में भी 10 लाख लोगों ने प्रदर्शन किया है। बार्सीलोना में अलगाव के जनमत संग्रह को लेकर साढ़े तीन लाख लोग मैदान में उतर आए। बग़दाद में हजारों लोग पुलिसवालों से जूझते रहे।
अफ़ग़ानिस्तान में भी कुछ हफ्ते पहले जबर्दस्त प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग मारे गए। इन देशों की सरकारों के पसीने छूट गये और उन्हें लगभग हर जगह जनता के ग़ुस्से के आगे झुकना पड़ा। लेकिन भारत की जनता की सहनशीलता अपरंपार है। उसने नोटबंदी में सैकड़ों लोगों की बलि चढ़ा दी, कर्जदार किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लाखों लोग बेरोज़गार हो गए, जीएसटी ने लोगों के काम-धंधे ठप कर दिए, बैंको ने दीवाले निकाल दिए, लोगों की खून-पसीने की कमाई नाली में बह गई लेकिन हमारे लोग सब कुछ बर्दाश्त कर रहे हैं। बस, महाराष्ट्र में किसानों का एक प्रदर्शन भर हुआ।
भारत की जनता खांडा नहीं खड़का रही, इसका अर्थ यह नहीं कि वह कुंभकर्ण की नींद सोई हुई है या डरपोक है या निकम्मी है। वह अपने सेवकों (शासकों) को सबक सिखा रही है। उसने महाराष्ट्र और हरियाणा में सरकारों की उल्टे उस्तरे से हजामत कर दी है। विपक्ष में कोई सशक्त नेता या दल नहीं है, इसके बावजूद यह पहल उसने ख़ुद की है। इसका अत्यंत गंभीर अर्थ है। वह यह है कि अगले साल-डेढ़ साल में यदि केंद्र सरकार ने अपना ढर्रा नहीं बदला तो बिना किसी विरोधी दल या नेता के ही जनता अपने आप बग़ावती तेवर अख़्तियार कर लेगी।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)