बिहार: इन 46 सीटों पर गठबंधन करके ही मिल सकती है जीत, होगा जोरदार मुक़ाबला
बिहार में चुनावी घमासान जारी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर, वर्चुअल रैली का जोर और हर मुद्दे के केंद्र में लालू प्रसाद यादव का शोर सबको साफ-साफ सुनाई दे रहा है। लेकिन इन सबसे अलग बिहार के चुनाव में एक और ज़रूरी शर्त होती है। इस शर्त को जीते बिना किसी पार्टी के लिए चुनावी वैतरणी को पार करना नामुमकिन सा हो जाता है। वैसे तो यह शर्त देश की किसी भी चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए ज़रूरी होती है लेकिन बिहार के संदर्भ में यह कुछ ज्यादा अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में व्यक्तिवादी राजनीति के साथ-साथ दलगत राजनीति की धमक भी उतनी ही है जितनी किसी और चीज की।
बिहार में दलगत राजनीति के आधार में जातिगत समीकरणों का जाल है इसलिए व्यक्तिवाद के साथ-साथ दलों को साधने की भी परंपरा रही है। इसी का लाभ चुनावी माहौल में जीतन राम मांझी जैसे नेता उठाते हैं। सता के अनुरूप पाला बदलना इन्हें ही भाता और आता है।
फिलहाल हम बात करेंगे बिहार की 46 विधानसभा सीटों की। उपरोक्त संदर्भ में ये सीटें सटीक उदाहरण और प्रमाण दोनों हैं। तिरहुत प्रमंडल के जिलों में आने वाली इन सीटों में मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर और वैशाली जिलों की सीटें हैं। इन 46 विधानसभा सीटों पर बीजेपी, आरजेडी व जेडीयू में वही पार्टी अधिक सीट जीतने में सफल रही है जो शेष दो पार्टियों में से किसी एक के साथ जुड़ जाती है।
चुनावी गणित पर एक नज़र
2010 के विधानसभा चुनाव में जब जेडीयू और बीजेपी साथ थीं, तो मामला एकतरफा रहा था। इन दोनों पार्टियों ने 46 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2015 में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के गठबंधन ने 25 सीटों पर कब्जा किया था। 2020 के चुनाव में भी इन 46 सीटों पर गठबंधन की अहमियत को सभी पार्टियां समझ रही हैं।
इन सीटों पर 2010 और 2015 के चुनावों में कांग्रेस, निर्दलीय और लोकजनशक्ति पार्टी (एलेजपी) के उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि 2015 के चुनाव में कांग्रेस और एलजेपी को दो-दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन कई सीटों पर इन पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। निर्दलीय भी एक-दो सीटों पर जीतते रहे व कुछ सीटों पर दूसरे नंबर पर रह चुके हैं।
गठबंधन से ही सफलता
मुजफ्फरपुर जिले में बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू की जीत होती रही है। जिले के गायघाटस मानापुर, बोचहां, राई, कुढ़नी, सकरा, मुजफ्फरपुर, बरुराज, पारू और साहेबगंज विधानसभा सीटों में उन्हीं को अधिक सीटों पर विजय हासिल हुई जिन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा। 2015 के चुनाव में आरजेडी ने 6 और बीजेपी ने 3 सीटों पर जीत हासिल की थी और जेडीयू को एक भी सीट नहीं मिली थी। 2010 के चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने मिलकर नौ सीटों पर कब्जा किया था। उस समय आरजेडी को केवल एक सीट मिली थी।
पूर्वी चंपारण में बीजेपी रही है भारी
पूर्वी चंपारण की 12 विधानसभा सीटों रक्सौल, सुगौली, नरकटिया, हरसिद्धि, गोविंदगंज, केसरिया, कल्याणपुर, पीपरा, मधुबन, मोतिहारी, चिरैया और ढाका की सीटों पर पिछले दो चुनावों से बीजेपी का दबदबा रहा है। 2015 के चुनाव में बीजेपी को 7 और 2010 में के चुनाव में 6 सीटें मिली थीं। 2015 के चुनाव में आरजेडी को 4 और 2010 में बीजेपी-जेडीयू को 11 सीटों पर जीत मिली थी।
पश्चिमी चंपारण का हाल
पश्चिमी चंपारण की 9 सीटों- वाल्मीकि नगर, बेतियी, लौरिया, रामनगर, नरकटिया गंज, बगहा, नवतन, चनपटिया और सिकरा में 2015 के चुनाव में बीजेपी को 5 और जेडीयू को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। यहां कांग्रेस को भी दो सीटें मिलीं थीं। 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 3 और बीजेपी को 4 सीटें मिलीं। इन दोनों चुनाव में आरजेडी की झोली खाली रही।
सीतामढ़ी
सीतामढ़ी में 6 विधानसभा सीट हैं। इनमें बथनाहा, परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी, सीतामढ़ी और रुन्नीसैदपुर में गठबंधन का गणित भी सफल रहा है। साल 2015 में बीजेपी को 2, आरजेडी को 3 और जेडीयू को एक सीट मिली जबकि 2010 में बीजेपी ने 3 और जेडीयू ने 3 सीटों पर जीत हासिल की थी। यानी एनडीए को सौ फीसदी कामयाबी मिली थी।
शिवहर में जेडीयू का जादू
शिवहर में 2010 और 2015 दोनों चुनावों में जेडीयू का जादू सिर चढ़कर बोला है। उसने ही जीत हासिल की।
वैशाली
वैशाली जिले में 8 सीटें- हाजीपुर, पातेपुर, मनहार, राघोपुर, राजापाकर, महुआ, वैशाली और लालगंज हैं। यहां साल 2015 के चुनाव में महागठबंधन को 6 सीट मिलीं। इस दौरान आरजेडी को 4 सीटों का लाभ हुआ था। जेडीयू को दो सीटें मिली थीं। साल 2010 में एनडीए को बड़ी जीत हासिल हुई थी। जेडीयू को 5 और बीजेपी को एक सीट मिली थी।