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भारत-चीन सीमा विवाद: सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्टिंग से बचे मीडिया

भारत-चीन सीमा विवाद: सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्टिंग से बचे मीडिया

भारत-चीन सीमा पर तनाव बढ़ने की घटनाओं को लेकर मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टें जारी की जा रही हैं। इससे दोनों देशों के रिश्तों में अनावश्यक तनाव पैदा होता है।

ऐसे वक्त में जब भारत कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा है और इस महामारी के फैलने में चीन की भूमिका को लेकर भारतीय जनमानस में शंकाएं हैं, भारत-चीन सीमा पर तनाव पैदा करने वाली रिपोर्टें  चिंताजनक हैं। भारत और चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ने की कुछ सच और कुछ ग़लत परिप्रेक्ष्य में बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टें मीडिया द्वारा जारी की जा रही हैं। इससे दोनों देशों के रिश्तों में अनावश्यक तनाव पैदा होता है।

मीडिया को ऐसी रिपोर्टें जारी करने से पहले घटनाओं की आधिकारिक पुष्टि होने तक इंतजार  करना चाहिये और केवल अनाम विश्वसनीय सूत्रों के कथन का हवाला दे कर सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्टों से बचना चाहिये। 

उत्तरी लद्दाख में मनोरम पांगोंग झील के इलाक़े में सैनिकों के आमने-सामने आने की रिपोर्टों को जिस तरह सनसनी पैदा करते हुए पेश किया गया है  और जिस तरह चीन को डराने के लिये लद्दाख सीमा पर भारतीय वायुसेना द्वारा सुखोई-30 लड़ाकू विमान भेजने की रिपोर्ट मंगलवार को दिन भर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर चलती रही, उससे दोनों देशों के आला अधिकारी सकते में हैं। 

वर्तमान में भारत और चीन आपसी राजनयिक रिश्तों की स्थापना की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं और दोनों देशों का आला नेतृत्व रिश्तों को काफी अहमियत दे रहा है। 

चीन चाहे तो सीमा पर तनाव की वजहें दूर हो सकती हैं लेकिन उसकी नाजायज मांग को भारत नहीं मान सकता। लेकिन इसके बावजूद भारत चीन के साथ रिश्तों को संतुलित तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश करता है।

पिछले सप्ताह चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी लद्दाख के इलाक़े में पांगोंग झील के उत्तरी छोर पर भारत और चीन के सैनिकों के आमने-सामने आ जाने की स्थिति पैदा हो गई थी जिसे दोनों पक्षों ने आपसी बातचीत से सुलझा लिया है। ऐसा दोनों देशों के बीच समय-समय पर किये गए परस्पर विश्वास निर्माण के उपायों से मुमकिन हो सका है। यह भारत और चीन के राजनीतिक नेतृत्व की परिपक्वता को भी दिखाता है। 

भारतीय थलसेना ने इन रिपोर्टों का खंडन किया है कि वहां दोनों ओर से सैनिकों का जमावड़ा हो रहा है। थलसेना ने कहा है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने होने और आक्रामक रवैया दिखाने की घटनाएं होती हैं क्योंकि सीमा मसले का हल अब तक नहीं निकला है। 

दोनों सेनाओं की गश्ती पार्टियां स्थानीय स्तर पर सैन्य कमांडरों के हस्तक्षेप से परस्पर मान्य प्रक्रिया के अनुरुप इस तरह की घटनाओं का हल निकाल लेती हैं। थलसेना के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि अपुष्ट बयानों के आधार पर इस बारे में मीडिया में लगाई जाने वाली अटकलों से बचना चाहिये।

सुखोई विमान भेजने का खंडन 

वायु सेना ने भी इन रिपोर्टों का खंडन किया है कि  5 और 6 मई की रात को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दो चीनी हेलिकॉप्टरों के उड़ान भरने के जवाब में भारतीय वायुसेना ने अपने दो सुखोई -30 विमान उस इलाक़े में भेज दिये। इस बारे में सूत्रों ने कहा कि हेलिकॉप्टरों को वास्तविक नियंत्रण रेखा तक उड़ान भरने की इजाजत है और इसलिए चीनी हेलिकॉप्टरों ने भारतीय नभक्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया। 

वायु सेना के एक अधिकारी ने यह भी साफ किया कि उत्तरी सेक्टर में वायुसेना के किसी लड़ाकू विमान को नहीं भेजा गया। वास्तव में इस इलाक़े में अक्सर ट्रेनिंग उड़ानें होती रहती हैं जिनके बारे में मीडिया ने अटकलें लगानी शुरू कीं कि खासकर सुखोई -30 विमानों को लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में भेजा गया। 

रक्षा सूत्रों का कहना है कि लद्दाख के इलाक़े में दोनों वायु सेनाओं के विमान व हेलिकॉप्टर उड़ान भरते रहते हैं जिसे दोनों सेनाओं ने सामान्य हरकत माना है।

भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कुछ भी असामान्य हरकत होने की घटनाओं को मीडिया जिस तरह सनसनी पैदा करने वाली रिपोर्ट के तौर पर पेश करता है, उससे दोनों देशों के बीच पहले से चल रहे शंका भरे रिश्तों में ग़लतफहमी और बढ़ती है और रिश्तों में अनावश्यक तनाव पैदा होता है। 

इसके पहले गत शनिवार को लद्दाख और सिक्किम के नाकू ला इलाक़े में दोनों सेनाओं द्वारा आपस में गुत्थम-गुत्था होने और एक-दूसरे के बीच पत्थरबाजी की घटना होने की गम्भीर चिंताजनक रिपोर्टें आई थीं। हालांकि इन रिपोर्टों में कुछ सच्चाई थी जिससे आधिकारिक सूत्रों ने इनकार नहीं किया।

भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ाने वाली ख़बरें इसलिये सनसनी पैदा करती हैं क्योंकि चीन का रवैया भारत के प्रति आक्रामक रहता है। चीन ने हर मंच पर भारत का विरोध करना अपनी नीति बना ली है।

चाहे वह सुरक्षा परिषद में आतंकवादी मसूद अज़हर का मसला हो या फिर 48 देशों के न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता का मसला हो या फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का। इन सभी मसलों पर चीन हर मंच पर भारत के ख़िलाफ़ खड़ा दिखता है जिसे लेकर भारतीय राजनयिक हलकों में चीन के प्रति निराशा की भावना बनी रहती है लेकिन चीन के साथ रिश्तों को वे सम्भालकर चलना चाहते हैं। 

आज के मौजूदा विश्व भू-सामरिक माहौल में चीन से खुले तौर पर दुश्मनी बनाकर चलना ठीक नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था के कई सेक्टर चीन पर निर्भर हो गए हैं और इनके बिना भारत के लिये काफी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं जैसा कि हम आज के दौर में देख रहे हैं। हालांकि चीन की आक्रामक राजनयिक और आर्थिक चालों का जवाब देने से भारत नहीं चूकता है। 

आतंकवादी मसूद अज़हर को लेकर भारत ने सख्त क़दम उठाया और अपनी जीत सुनिश्चित की। इसके अलावा हाल में भारत की बड़ी प्राइवेट कम्पनियों के शेयर ख़रीदने की चीन की आक्रामक नीति को भी रोककर भारत ने साहसी क़दम उठा कर चीन को संकेत दिया है कि वह अपने फ़ैसले लेने के लिये स्वतंत्र है और चीन के रवैये से प्रभावित नहीं होता है।

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