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सीजेआई रमना: जज के लिए 115 नाम भेजे, पर सरकार ने 8 ही मंजूर किए

सीजेआई रमना: जज के लिए 115 नाम भेजे, पर सरकार ने 8 ही मंजूर किए

अदालतों में खाली पदों सरकार की प्रतिक्रिया कैसी रही है और इसका असर क्या होता है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने क़ानून मंत्री के सामने क्या कहा।

अदालतों में खाली पद भरने में सरकार आख़िर क्यों देरी कर रही है? भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने ही कहा है कि इस साल मई से सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने जजों के लिए 106 नाम और मुख्य न्यायाधीश के लिए 9 नाम भेजे, लेकिन सरकार ने अब तक सिर्फ़ 7 जजों और एक मुख्य न्यायाधीश के नाम को ही हरी झंडी दी है।

इसका साफ़ मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का पैनल जिन नामों की पूरी जाँच-पड़ताल कर सिफ़ारिश करता है सरकार उस पर मुहर लगाने में देरी करती है। इसका सुप्रीम कोर्ट कई बार ज़िक्र कर चुका है। अगस्त महीने में ही सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के बढ़ते खाली पदों को भरने में केंद्र सरकार की ओर से हो रही देरी पर नाराज़गी जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम द्वारा सिफारिशों को मंजूरी देने के वर्षों बाद भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं होने का कारण सरकार का ‘अड़ियल रवैया’ है।

अब भारत के मुख्य न्यायाधीश रमना ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया है। वह राष्ट्रीय क़ानूनी सेवा प्राधिकरण यानी एनएएलएसए के 'पैन इंडिया लीगल अवेयरनेस एंड आउटरीच कैंपेन' के शुभारंभ पर एक सभा को संबोधित कर रहे थे। शनिवार को हुए उस कार्यक्रम में शामिल प्रमुख लोगों में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू भी थे। सीजेआई रमना ने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि सरकार बाक़ी नामों को जल्द ही मंजूरी देगी'। उन्होंने कहा कि मंत्री रिजिजू ने 'सूचना दी है कि बाक़ी चीजें थोड़े समय में आने वाली हैं, एक या दो दिनों के भीतर'।

उन्होंने यह भी कहा कि इन पदों के भरने के बाद कुछ हद तक अदालतों में लंबित मामले कम होंगे। 

बता दें कि जजों के पद खाली होने का असर लंबित मामलों पर भी पड़ा। 2006 में उच्च न्यायालयों में जहाँ क़रीब 35 लाख केस लंबित थे वे बढ़कर अब 57 लाख से ज़्यादा हो गए हैं। ज़िला अदालतों में 2006 में जहाँ 2.56 करोड़ केस लंबित थे वे अब 3.81 करोड़ हो गए हैं।

अदालत में लंबित मामलों के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त महीने में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान को कहा था कि सिफारिशों को कॉलिजियम तक पहुँचने में महीनों और साल लगते हैं और उसके बाद महीनों और वर्षों में कॉलिजियम के बाद कोई निर्णय नहीं लिया जाता है।

उन्होंने कहा था कि इसलिए उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कम संख्या होगी तो महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी जल्दी निर्णय लेना लगभग असंभव हो जाएगा।

हाल ही में देश भर के उच्च न्यायालयों में खाली पदों को भरने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने बड़ा क़दम उठाया था। इसने अदालतों में पदोन्नति के लिए 10 महिलाओं सहित 68 नामों की सिफारिश की। यह पहला मौक़ा था जब कॉलिजियम ने एक साथ इतने नामों को मंजूरी दी है। इससे पहले इसी कॉलिजियम ने सुप्रीम कोर्ट के लिए एक साथ 9 जजों की सिफारिश की थी जिसे सरकार ने भी मंजूरी दे दी। बीते कुछ सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब कॉलिजियम की ओर से भेजे गए सभी नामों को केंद्र सरकार ने मंजूर कर लिया।

बता दें कि अदालतें लंबित मामलों के भार तले दबती जा रही हैं फिर भी अदालतों में जजों के पद ज़्यादा ही खाली होते जा रहे हैं। यह सिर्फ़ ज़िला अदालतों की स्थिति नहीं है, बल्कि हाई कोर्ट की भी स्थिति है। 2006 में देश भर के उच्च न्यायालयों में जहाँ स्वीकृत 726 पदों में से 154 खाली थे वहीं अब 1 अक्टूबर को 471 पद खाली हैं। उच्च न्यायालयों में 1098 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं। 

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