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सारे मुद्दे सुप्रीम कोर्ट सुलझाए तो लोकसभा, राज्यसभा किसलिए हैं: CJI

सारे मुद्दे सुप्रीम कोर्ट सुलझाए तो लोकसभा, राज्यसभा किसलिए हैं: CJI

क्या अब ऐसी नौबत आ गई है कि जो समस्याएँ और मुद्दे लोकसभा और राज्यसभा में उठाए जाने चाहिए वे अब सुप्रीम कोर्ट में उठाए जा रहे हैं? जानिए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने क्या कहा।

क्या हर मर्ज की दवा सुप्रीम कोर्ट हो सकता है? यह मुमकीन नहीं है और भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने भी गुरुवार को यही साफ़ किया है। मुख्य न्यायाधीश ने अवैध प्रवासियों को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई की मांग किए जाने पर प्रतिक्रिया में यह बात कही। सीजेआई ने सर्वोच्च न्यायालय पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी के बोझ पर पीड़ा व्यक्त की और कहा कि ऐसे मुद्दों पर निर्वाचित सरकार को निर्णय लेना चाहिए।

सीजेआई उस मामले में बोल रहे थे जिसमें वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक साल के भीतर सभी अवैध प्रवासियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का सरकार को निर्देश देने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

इस मामले का ज़िक्र किए जाने पर सीजेआई ने पूछा, 'अगर आपके उठाए सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए और जो आदेश पारित किए जाने की इच्छा जताई गई है उससे मैं सहमत हो जाऊँ, तो राजनीतिक प्रतिनिधि किस उद्देश्य के लिए चुने जाते हैं? ...लोकसभा... राज्यसभा?' सीजेआई ने इस पर आश्चर्य जताया कि क्या अदालत को अब विधेयक भी पास करने होंगे।

बता दें कि अश्विनी उपाध्याय ने कई मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिकाएँ दायर की हैं। इनमें शामिल हैं- धर्मों से परे लोगों के लिए एक समान तलाक कोड की मांग करना; समान दत्तक ग्रहण और संरक्षकता क़ानून बनाना; भारत के विधि आयोग के लिए वैधानिक स्टेटस देना; दो-बच्चे के मानदंड का कार्यान्वयन करना; और उन राज्यों में हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा देना जहां 2011 की जनगणना के अनुसार उनकी संख्या दूसरों से कम हो गई है।

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने 31 जनवरी 2018 को निर्देश दिया था कि अवैध प्रवासियों से जुड़ी अश्विनी उपाध्याय की याचिका को सितंबर 2017 में दो रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दायर की गई एक अन्य याचिका के साथ जोड़ दिया जाए। उसने यह भी निर्देश दिया था कि केंद्र सरकार के वकील को इसकी एक प्रति दी जाए।

दोनों रोहिंग्या शरणार्थियों ने तब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था जब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के मुख्य सचिवों को गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक पत्र में उन्हें तत्काल क़दम उठाने और निर्वासन प्रक्रियाओं को शुरू करने के लिए सभी क़ानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील बनाने की सलाह दी गई थी।

इस बीच 26 मार्च 2021 को उपाध्याय की याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस भी जारी किया गया। चूँकि उनकी याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया था, इसलिए उपाध्याय ने गुरुवार को सीजेआई के सामने तब इसका ज़िक्र जब तत्काल सुनवाई वाले मामलों को सीजेआई के ध्यान में लाया जाता है।

तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए उन्होंने कहा, 'पांच करोड़ अवैध अप्रवासी हमारे आजीविका के अधिकार को छीन रहे हैं।'

इस पर सीजेआई ने कहा, 'मिस्टर उपाध्याय, हर रोज़ मुझे सिर्फ़ आपका केस ही सुनना पड़ता है। काफ़ी ज़्यादा समस्याएं, संसद सदस्य के मुद्दे, नामांकन का मुद्दा, चुनाव सुधार इत्यादि। ये सभी राजनीतिक मुद्दे सरकार से राहत मांगने के बजाय अदालत के समक्ष दायर किए जा रहे हैं।' उसी दौरान उन्होंने कहा कि अदालत में संवेदनशील राजनीतिक मुद्दों का बोझ बढ़ रहा है जिसको सरकार को निपटारा करना चाहिए।

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