+
नागरिकता क़ानून: क्या यूपी पुलिस झूठ बोल रही है कि पुलिसकर्मियों को गोली लगी?

नागरिकता क़ानून: क्या यूपी पुलिस झूठ बोल रही है कि पुलिसकर्मियों को गोली लगी?

पुलिस का कहना है कि नागरिकता क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान कई पुलिसकर्मी भी गोली लगने से घायल हुए हैं लेकिन वह इनके बारे में जानकारी देने से बच क्यों रही है।

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ उत्तर प्रदेश में हुए जोरदार विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की कार्यशैली को लेकर सवाल उठे हैं। पुलिस पर मुसलिम समुदाय के घरों में घुसकर बुजुर्गों, महिलाओं को पीटने के आरोप लगे हैं। यूपी में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान 20 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पुलिस का कहना है कि हिंसक विरोध-प्रदर्शनों में पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं और उन्हें गोलियां लगी हैं। जबकि अंग्रेजी अख़बार ‘द टेलीग्राफ़’ के मुताबिक़, सरकार के कई अधिकारियों और जिन अस्पतालों में घायल पुलिसकर्मियों का इलाज हो रहा था, वहां के सूत्रों ने कहा है कि पुलिस को पैलेट गन के छर्रे लगे हैं। लेकिन पुलिसकर्मी इसे मानने से इनकार कर रहे हैं। 

इसमें एक उदाहरण बिजनौर के सिपाही मोहित कुमार का है। यूपी पुलिस के डीजीपी ने दावा किया था कि पुलिस ने इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान एक भी गोली नहीं चलाई। लेकिन बाद में पुलिस को स्वीकार करना पड़ा था कि बिजनौर में मुहम्मद सुलेमान नाम के युवक की मौत पुलिस की गोली लगने से हुई थी। पुलिस का कहना है कि सुलेमान ने मोहित कुमार पर गोली चलाई थी और मोहित को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी थी। यह घटना 20 दिसंबर को हुई थी। 

सुलेमान के भाई शुएब हुसैन मलिक ने अख़बार से कहा, ‘मेरे भाई ने कभी बंदूक को छुआ तक नहीं था। मौक़े पर मौजूद लोगों ने कहा कि जब सुलेमान नमाज़ पढ़ने के बाद घर लौट रहा था तब पुलिसकर्मी उसे घसीटते हुए एक किनारे में ले गए और गोली मार दी।’ शुएब ने कहा, ‘मुझे कोई ऐसा पुलिसकर्मी दिखाइए जिसे बड़ी चोट लगी हो। यह पूरी तरह झूठ है कि सुलेमान ने पुलिस पर फ़ायरिंग की।’ 

बिजनौर के एसपी संजीव त्यागी ने दावा किया था कि मोहित के पेट में गोली लगी थी और उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन जब घटना के अगले दिन अख़बार के रिपोर्टर मोहित को देखने गये तो डॉक्टर्स ने कहा कि मोहित के कूल्हे के पिछले हिस्से में पैलेट गन के छर्रे के घाव हैं और उन्हें एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज, मेरठ शिफ़्ट किया गया है। जब रिपोर्टर 22 दिसंबर को मेरठ पहुंचा तो अस्पताल की ओर से बताया कि मोहित को डिस्चार्ज कर दिया गया है और वह घर चले गए हैं। 

अख़बार के रिपोर्टर ने त्यागी और कई अन्य पुलिस अफ़सरों से मोहित का नंबर देने को कहा लेकिन उन्होंने कहा कि उनके पास मोहित के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है कि पुलिस अफ़सरों के पास मोहित का नंबर तक न हो?

गृह विभाग के एक अधिकारी ने ‘द टेलीग्राफ़’ को बताया कि सीआरपीएफ़ और राज्य पुलिस के कर्मचारियों को पैलेट गन के छर्रे लगे हैं और वे सभी अब ठीक हैं। 

बिजनौर के एसपी संजीव त्यागी ने दावा किया था कि उनके जिले में 46 पुलिसकर्मी गोली लगने से घायल हुए हैं। जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह पता करेंगे कि अभी किसका इलाज चल रहा है। जब उनसे यह पूछा गया कि पुलिसकर्मियों को किस तरह की चोट लगी है, तब भी उन्होंने यही कहा कि वह पता करेंगे। 

अख़बार की ओर से त्यागी से तीन सवाल पूछे गये हैं जिनमें घायल पुलिसकर्मियों की संख्या, वे कब अस्पताल से डिस्चार्ज होंगे और उन्हें किस तरह की चोट है और मोहित का फ़ोन नंबर क्या है, के बारे में बताने के लिए कहा गया था। लेकिन अभी तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है।  

‘किसी का इलाज नहीं चल रहा’

फिरोज़ाबाद में भी इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान काफ़ी लोगों की मौत हुई है। यहां भी पुलिस का दावा है कि कई पुलिसकर्मी घायल हुए हैं लेकिन जिले के चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर एस. के. दीक्षित ने 10 जनवरी को कहा था कि उनके मुताबिक़, जिला अस्पताल में किसी भी पुलिसकर्मी का इलाज नहीं चल रहा है। जिला अस्पताल में ही सभी घायल पुलिसकर्मियों को लाया गया था। 

जिला अस्पताल के एक सूत्र ने अख़बार को बताया कि दो पुलिसकर्मियों की बांहों में गहरी चोट थी। एक कांस्टेबल के हाथ में कुछ फ़्रैक्चर थे और एक इंस्पेक्टर की मांसपेशियां फट गई थीं। लेकिन दोनों को ही डिस्चार्ज कर दिया गया है। बाक़ी पुलिसकर्मियों को पैलेट गन के छर्रे लगे थे या पत्थरों से चोट लगी थी और सभी को 22 दिसंबर की शाम को डिस्चार्ज कर दिया गया था। 

लखनऊ की कार्यकर्ता सदफ जफ़र की जमानत याचिका का पुलिस ने यह कहकर विरोध किया था कि प्रदर्शनकारियों ने तीन पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया था। पुलिस ने इन तीनों के नाम सुरेश चंद्र रावत, विजय शंकर तिवारी और प्रियांबद मिश्रा बताये थे। लेकिन एडिशनल सेशन जज एस.एस पांडे ने पाया कि रावत को मामूली चोट लगी थी और अन्य दो पुलिसकर्मियों ने शरीर में दर्द की शिकायत की थी। इसके बाद पुलिस ने इसी अदालत में लेखक दीपक कबीर की याचिका का बिलुकल यही कहकर विरोध किया था। 

कानपुर के बाबूपुरवा पुलिस थाने के अफ़सरों के मुताबिक़, दो पुलिसकर्मी पैलेट गन के छर्रे लगने से घायल हुए हैं। लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि क्या किसी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है।

फिरोज़ाबाद में हिंसक प्रदर्शनों के दौरान मारे गए नबी जान के पिता मुहम्मद अयूब ने कहा कि मौक़े पर मौजूद लोगों ने उन्हें बताया कि पुलिस बिना कुछ सोचे-समझे भीड़ पर फ़ायरिंग कर रही थी। 

मारे गए लोगों के परिवार वालों ने आरोप लगाया है कि पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट तक नहीं दे रही है। इस बारे में गृह विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि स्थिति सामान्य होने के बाद ही पीड़ित परिवारों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट दी जाएगी। विभाग का कहना है कि ऐसी ख़ुफ़िया जानकारी है कि राज्य में फिर से हिंसा फैल सकती है। 

डीजीपी ओपी सिंह का कहना है कि राज्य भर में हुई हिंसक झड़पों में 288 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और इनमें से 61 बंदूक की गोलियों से घायल हुए हैं। लेकिन ‘द टेलीग्राफ़’ और कुछ अन्य मीडिया संस्थानों की पड़ताल यह बताती है कि पुलिस इन मामलों में पाक साफ़ नहीं है। इससे पहले एनडीटीवी ने जब पुलिस महक़मे से गोलियों से घायल हुए पुलिसकर्मियों के बारे में जानकारी माँगी तब भी पुलिस अफ़सरों के पास इसका जवाब नहीं था। 

लेकिन हैरानी की बात यह है कि पुलिस अफ़सर घायल पुलिसकर्मियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं, यहां तक कि वह उनके फ़ोन नंबर भी देने के लिए तैयार नहीं हैं। अगर वास्तव में पुलिसकर्मियों को गोली लगी है और वे घायल हुए हैं और अगर कहीं उनका इलाज चल रहा है तो विभाग की ओर से इस बारे में जानकारी छुपाई क्यों जा रही है। पुलिस विभाग को खुलकर बताना चाहिए कि इतने पुलिसकर्मी इस अस्पताल में भर्ती हैं और उन्हें शरीर में इस जगह गोली लगी है। लेकिन ‘द टेलीग्राफ़’ की पड़ताल बताती है कि पुलिसकर्मियों को सिर्फ़ पैलेट गन के छर्रे लगे हैं और घटना के 2 दिन के अंदर ही उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया था। अगर गोली लगी होती तो क्या उन्हें 2 दिन के अंदर डिस्चार्ज किया जा सकता था। ऐसे में पुलिसकर्मियों को गोली लगने की पुलिस की कहानी पर शक होना लाजिमी है और सवाल यह उठता है कि क्या यूपी पुलिस झूठ बोल रही है कि नागरिकता क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिसकर्मियों को गोली लगी है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें