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नागरिकता क़ानून: हिंदुत्ववादी दिखने का शौक?

नागरिकता क़ानून: हिंदुत्ववादी दिखने का शौक?

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर हो रहे जोरदार विरोध के बीच सवाल यह पूछा जा रहा है कि आख़िर इस क़ानून की क्या ज़रूरत थी?

नागरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध देश में इतना बड़ा आंदोलन उठ खड़ा होगा, इसकी कल्पना नरेंद्र मोदी और अमित शाह को क्या, कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों को भी नहीं होगी। यदि अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया के छात्र भड़क उठे हैं तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और देश के अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र भी इस क़ानून के विरुद्ध मैदान में उतर आए हैं। 

यह ठीक है कि देश के विपक्षी दल इस जनोत्थान से खुश हैं और वे इसे उकसा भी रहे हैं लेकिन हम इससे इनकार नहीं कर सकते कि यह आंदोलन स्वतःस्फूर्त है। बीजेपी की प्रतिक्रिया ऐसी है, जो इस आंदोलन में आग में घी का काम कर रही है। 

पहली बात यह कि पुलिस ने विश्वविद्यालयों के अंदर छात्रों के साथ मारपीट क्यों की यह ठीक है कि छात्रों का आंदोलन अहिंसक नहीं था। उन्होंने तोड़-फोड़ और आगजनी भी कर डाली लेकिन पुलिस थोड़ा संयम से काम लेती तो बेहतर होता। दूसरी बात प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि प्रदर्शनकारियों के कपड़े देखकर ही पता चल जाता है कि वे कौन हैं क्या मतलब है, इस वाक्य का इसका मतलब यह है कि वे मुसलमान हैं और हम पक्के हिंदुत्ववादी हैं। इस मौक़े पर इतना ग़ैर-जिम्मेदाराना बयान देना क्या भारत के प्रधानमंत्री को शोभा देता है 

हालांकि भारत के मुसलमान नागरिकों को इस नए क़ानून से ज़रा-सा भी नुक़सान नहीं है लेकिन पड़ोसी देशों के मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता से वंचित करने का प्रावधान किसी भी भारतीय या अभारतीय मुसलमान को अपमानित महसूस करवा सकता है।

मैं पूछता हूं कि पाकिस्तान के कितने मुसलमान (1947 में भारत से गए हुए नहीं) आज तक भारत आए हैं कुछ दर्जन पाकिस्तानी मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करने के इस काम को बीजेपी सरकार ने इतना तूल शायद इसलिए दे दिया कि वह बड़ी हिंदुत्ववादी दिखना चाहती थी। लेकिन पूर्वोत्तर के हिंदुओं ने इस मंशा को लहूलुहान कर दिया है। 

बीजेपी के इस क़दम ने अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे परस्पर-विरोधी देशों को तो एकजुट कर ही दिया है, भारत के लगभग सभी विरोधी दलों को, जो एक-दूसरे के जानी दुश्मन भी हैं, एक सांझा मंच भी प्रदान कर दिया है। बीजेपी के इस क़दम को मैं ‘‘आ बैल सींग मार’’ की संज्ञा देता हूं। इससे बचने का अब एक ही रास्ता है कि सर्वोच्च न्यायालय इस क़ानून को असंवैधानिक घोषित कर दे।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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