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नागरिकता क़ानून: असम सीएम ने कहा, बहिष्कृत न करें, मैं कहाँ जाऊँगा?

नागरिकता क़ानून: असम सीएम ने कहा, बहिष्कृत न करें, मैं कहाँ जाऊँगा?

असम में नागरिकता क़ानून के लगातार विरोध से राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल मुश्किल में हैं। ख़ुद सोनोवाल यह बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा, 'मुझे बहिष्कृत न करें, मैं कहाँ जाऊँगा?'

असम में नागरिकता क़ानून के लगातार विरोध से राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल मुश्किल में हैं। ख़ुद सोनोवाल ने यह बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा, 'मुझे बहिष्कृत न करें, मैं कहाँ जाऊँगा' शुरुआती दिनों की हिंसा के बाद असम में अब शांति है, लेकिन इसके बाद भी लगातार शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन ने मुख्यमंत्री को भावनात्मक रूप से हिला दिया है। शायद उनको लगता है कि राज्य में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ लोगों के विरोध-प्रदर्शन से उनको काफ़ी नुक़सान पहुँचा है। यही कारण है कि सोनोवाल ने कहा है, 'मैं आपका बेटा हूँ, आपका अंग हूँ। आपने मुझे आपका नेतृत्व करने के लिए चुना है, मैं आपको निराश कैसे कर सकता हूँ मैंने असम के लोगों के हित से कभी भी समझौता नहीं किया है।' इसको लेकर सोनोवाल ने एक ट्वीट भी किया। 

मुख्यमंत्री का यह भावनात्मक बयान ऐसे समय में आया है जब नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जारी विरोध-प्रदर्शन के बीच असम के कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्रों ने संकल्प लिया है कि वे इस क़ानून के ख़िलाफ़ किसी भी परिस्थिति में विरोध-प्रदर्शन जारी रखेंगे। असम के पूर्व डीजीपी हरेकृष्ण डेका ने भी इस क़ानून को लेकर मुख्यमंत्री सोनोवाल की तीखी आलोचना की है। उन्होंने सोनोवाल को एक 'कट्टर हिंदूवादी' नेता के रूप में बदल जाने की बात कही है।

डेका ने कहा, "असम के मुख्यमंत्री ने कहा- ‘मैंने क्या ग़लत किया है' अगर उन्होंने अपने दिल में झाँका होता तो उन्हें पता होता कि उन्होंने हिंदू धर्म के नाम पर असमिया सांस्कृतिक परंपरा की धर्मनिरपेक्ष भावना को त्याग दिया है। असमिया संस्कृति बहुत अलग है। जब सोनोवाल हिंदुत्व का चश्मा पहनते हैं तो वह उस जनसांख्यिकीय दबाव को नहीं देखते हैं जिसने असमियों और अन्य स्वदेशी लोगों पर नकेल कस दी है। फ़िलहाल का उनका लेंस एक सांप्रदायिक लेंस है, जो यह नहीं देखता है कि सीएए (नागरिकता क़ानून) ने अपने ही लोगों के सामाजिक-राजनीतिक भाग्य को बदल दिया है।”

बता दें कि असम में छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। चार विश्वविद्यालयों के छात्रों ने असम की राजधानी गुवाहाटी में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। 'फ़र्स्ट पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार गुवाहाटी विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएट छात्रसंघ के महासचिव मून तालुकदार ने कहा, 'हमने संकल्प लिया है कि सरकार के दमन के बावजूद हम तब तक प्रदर्शन करते रहेंगे जब तक सरकार इस नागरिकता क़ानून को वापस नहीं लेती है।...' एक अन्य छात्र ने कहा, 'हम आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ भी विरोध करेंगे। हमारी संपत्तियों का केंद्र सरकार ने लंबे समय से शोषण किया है, लेकिन वे हमारी समस्याओं के प्रति उदासीन हैं।...'

नागरिकता संशोधन के मुद्दे पर असम के बीजेपी नेताओं में ही सहमति नहीं है। अभिनेता जतिन बोरा ने इस मुद्दे पर पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया था। इनके बाद पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता और असम के विधानसभा स्पीकर हितेंद्र नाथ गोस्वामी ने इस क़ानून को विभाजनकारी बताया था।

गोस्वामी ने कहा था कि इस विधेयक को लेकर लोगों की जो शंकाएँ हैं, वे निराधार नहीं हैं। गोस्वामी ने केंद्र सरकार से अपील की थी कि वह असम के लोगों, विशेषकर युवाओं के ग़ुस्से और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाए।

गोस्वामी ने एक बयान में कहा था, ‘राज्यसभा से पास होने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक क़ानून बन चुका है। हालाँकि मुझे विधानसभा स्पीकर जैसे संवैधानिक पद पर होने के नाते टिप्पणी नहीं करनी चाहिए लेकिन असम आंदोलन के ज़रिये देश और समाज के लिए काम करने वाले एक व्यक्ति के नाते मैं मानता हूँ कि इस विधेयक को लेकर लोगों की जो शंकाएँ हैं, वे बेबुनियाद नहीं हैं।’ 

गोस्वामी ने कहा था, ‘अगर इस विधेयक को लागू किया जाता है तो इस बात की प्रबल संभावना है कि यह जातियों, समुदायों और भाषाओं को बाँटने वाला साबित होगा।’ 

बता दें कि नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत यह प्रावधान है कि 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हुए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जा सकेगी। इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। पूर्वोत्तर के लोगों का कहना है कि इससे बाहर से आए लोग उनके यहाँ छा जाएँगे और स्थानीय लोग अपने ही इलाक़ों में अल्पसंख्यक बन जाएँगे, जिससे उनकी पहचान और संस्कृति ख़तरे में पड़ जाएगी। इस क़ानून के विरोधियों का यह भी कहना है कि धार्मिक आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, जो संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है।

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