'दो और दो प्यार': अंग्रेज़ी फ़िल्म का मुम्बइया हिंग्लिश एडॉप्शन ! तौबा तौबा !
मोहब्बत दुनिया भर के फिल्म वालों के लिए बेहतरीन कंज्यूमर आइटम है। सात साल पहले की हॉलीवुड फिल्म 'द लवर्स' का हिन्दी प्रस्तुतीकरण है 'दो और दो प्यार'। फिल्म में विवाह और विवाहेत्तर संबंधों को बेहद संजीदगी से दिखाया गया है। फिल्म में पति-पत्नी और उनके प्रेमी-प्रेमिकाओं की कहानी है। रोमांस की दुनिया में भी एक पर एक फ्री का पैकेज !
पति और पत्नी के आपसी संबंधों में आये बदलाव को लेकर कई फिल्में बनी हैं। सिलसिला, अर्थ, गहराइयां, लाइफ इन ए मेट्रो आदि। इस फिल्म में संबंधों को बहुत ही नाजुक तरीके से दिखाया गया है और दर्शकों की रूचि ध्यान रखा गया है। एक दक्षिण भारतीय डेंटिस्ट काव्या गणेशन और बिजनेसमैन पति अनि बनर्जी (प्रतीक गाँधी) में प्रेम होता है फिर विवाह। शादी के 12 साल बाद उनमें प्रेम उड़ जाता है और दोनों अपने अपने स्तर पर किसी दूसरे में उसे खोजते हैं। काव्या (विद्या बालन) को मिलता है क्यूबा से आया एक फोटोग्राफर विक्रम (सेंथिल राममूर्ति) और अनि को मोहब्बत होती है उभरती अभिनेत्री नोरा ( इलियाना डीक्रूज़) से। फिर शुरू हो जाती है संबंधों की घिचड़-पिचड़! फिल्म में अंत भला तो सब भला।
फिल्म की लम्बाई 139 मिनट ही है, लेकिन इंटरवल के बाद वह खिंचती हुई लगती है। कहानी में कई मोड़ और घुमाव भी हैं, और लगता है कि किस्सा उलझ गया है। लेकिन अंग्रेज़ी की मूल फिल्म की तरह इस फिल्म का अंत बेहद संजीदगी और भावुकता से होता है। विज्ञापन फ़िल्में बनानेवालीं निर्देशिका शीर्षा गुहा ठाकुरता की यह पहली ही फीचर फिल्म है, जिसमें वे अपनी छाप छोड़ती हैं। फिल्म में अंग्रेज़ी के संवादों का बोलबाला है। एक पात्र तो केवल अंग्रेजी ही बोलता है। विद्या बालन और दूसरे कलाकारों का काम अच्छा है। गाने तो दो ही हैं, पर अच्छे हैं।
फुरसत हो और फ़िल्मी रोमांस में दिलचस्पी तो यह फिल्म देख सकते हैं। हल्की फुल्की फिल्म है।
केवल धोखे हैं इस फिल्म में
फूहड़ता और बेतुकेपन की मार्केटिंग में माहिर एकता कपूर की फिल्म एलएसडी 2 (लव, सेक्स और धोखा 2) में तीन कहानियां हैं। तीनों का एक दूसरे से कोई ताल्लुक नहीं। इसकी कहानियों को यूपीएससी का टॉपर भी शायद ही समझ सके। शायद फिल्म यह बताना चाहती है कि सोशल मीडिया, इंटरनेट और मेटवर्स की दुनिया में लाइक, कमेंट और डाउनलोड के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
पहली कहानी एक बेतुके नाम वाले जैसे रियालटी शो 'ट्रूथ (सच) या नाच' की एक ट्रांसजेंडर प्रतिभागी है। शो बिग बॉस जैसा है, लेकिन निर्णायक सारेगामा टाइप अनु मलिक, तुषार कपूर जैसे हैं। लडके से लड़की बनी प्रतिभागी अपनी मां से दो साल से नहीं मिली, लेकिन लाइव शो की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए आयोजक उसकी मां को हेलीकॉप्टर से बुलाते हैं। शो में वह अपनी माँ के सामने लाइव शो में लिप लॉक करती हैं, मां को चांटा मारती है, और एकता कपूर के बताये धतकर्म करती है। फिर शो वाले भगा देते हैं और उसका आगे पीछे के अंगों को प्लास्टिक सर्जरी कराने का ख्वाब टूट जाता है।
दूसरी कहानी भी एक ट्रांसजेंडर की है जिसे एनजीओ वालों की मदद से मेट्रो स्टेशन में सफाईकर्मी का काम मिलता है, लेकिन उसका पार्ट टाइम धंधा उसे मुश्किल में डाल देता है। तीसरी कहानी मेटावर्स की दुनिया में गेमिंग शो चलानेवाले एक लड़के की है, जो 18 का हुआ ही है। किसी ने उसका पेज हैक कर लिया और अश्लील सामग्री परोस दी। इससे उसकी लोकप्रियता बढ़ गई और वह स्टार हो गया। बाद में एक पुलिस केस बनता है और पूछताछ होती है कि क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है? कोई बॉयफ्रेंड? तुम गे हो?
यह 'ए' सर्टिफिकेट वाली फिल्म है। सिनेमाहॉल और मल्टीप्लेक्स खाली पड़े हैं। दर्शकों के झेलने की भी कोई सीमा होती है।
(डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी देश के जाने-माने फिल्म समीक्षक हैं)