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कोरोना वायरस ख़त्म नहीं होगा, संक्रमण हर साल आता रह सकता है: वैज्ञानिक

कोरोना वायरस ख़त्म नहीं होगा, संक्रमण हर साल आता रह सकता है: वैज्ञानिक

चीन के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस ख़त्म नहीं होगा और इसके संक्रमण के मामले हर साल आते रहने की आशंका है।

चीन के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस ख़त्म नहीं होगा और इसके संक्रमण के मामले हर साल आते रहने की आशंका है। ऐसा मानने के पीछे एक तर्क तो यही है कि नया कोरोना वायरस, एसएआरएस यानी गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम के परिवार का ही वायरस है और यह एसएआरएस वायरस 17 साल पहले आया था। एसएआरएस का मामला पहली बार नवंबर 2002 में चीन में आया था और फ़रवरी 2003 में इसकी पहचान की गई थी। यह वायरस ख़त्म नहीं हुआ है और इसके संक्रमण के मामले आते रहे हैं। 

दुनिया भर के शीर्ष शोधकर्ताओं और सरकारों के बीच एक आम सहमति बन रही है कि लॉकडाउन के बावजूद इस वायरस को ख़त्म होने की संभावना नहीं है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिजीज के निदेशक एंथोनी फ़ॉसी ने पिछले महीने कहा था कि वायरस के कारण होने वाली बीमारी कोविड -19 एक मौसमी बीमारी बन सकती है। उन्होंने यह बात कई देशों में ऐसे मामले आने के बाद कही थी।

अब चीन के वायरल और चिकित्सा शोधकर्ताओं के एक समूह ने इस मामले में दो दिन पहले ही सोमवार को बीजिंग में प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी। 'ब्लूमबर्ग' की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों ने कहा कि मरीज़ों में बिना लक्षण दिखाए लंबे समय तक रहने वाले वायरस को फैलने से रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है क्योंकि वायरस बिना पकड़ में आए ही लोगों में फैलते रहता है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि एसएआरएस याना सार्स वायरस के मामले में संक्रमित लोग गंभीर रूप से बीमार हुए। लेकिन एक बार जब उन्हें क्वॉरंटीन कर दिया गया तो वायरस फैलने से रुक गया। लेकिन इसके उलट नये कोरोना वायरस के मामले में ऐसा नहीं है। चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण पा लिए जाने के बावजूद हर रोज़ ऐसे दर्जनों कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे हैं जिनमें कोई लक्षण ही नहीं दिख रहा है। 

चीन के शीर्ष अनुसंधान संस्थान चाइनीज एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में पैथोजन जीवविज्ञान संस्थान के निदेशक जिन क्यूई ने कहा, 'इसकी एक ऐसी महामारी होने की संभावना है जो लंबे समय तक इंसानों में रह सकती है, मौसमी बन सकती है और मानव शरीर के भीतर बनी रह सकती है।'

यदि चीन के वैज्ञानिकों की यह बात सही है तो फिर अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और दिल्ली की एक संस्था के शोधकर्ताओं का वह सुझाव घातक हो सकता है जिसमें कहा गया है कि भारत को कोरोना वायरस से मुक्त करने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा यह है कि इसकी आधी से ज़्यादा आबादी को कोरोना वायरस से संक्रमित करा दिया जाए।

प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और दिल्ली की संस्था के शोधकर्ताओं ने इसके लिए हर्ड इम्यूनिटी या झुंड प्रतिरक्षण का सुझाव दिया था। चूँकि कोरोना वायरस का कोई वैक्सीन यानी टीका अभी बना नहीं है, इसलिए उस टीम ने सुझाव दिया था कि यदि एक नियंत्रित तरीक़े से अगले सात महीनों में भारत के 60% लोगों को इस बीमारी से ग्रस्त होने दिया जाए तो नवंबर तक भारत में यह स्थिति आ जाएगी कि यह वायरस किसी नए व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकेगा क्योंकि इतने सारे लोगों के संक्रमित हो जाने के बाद वायरस को ऐसे असंक्रमित लोग नहीं मिलेंगे जिनपर वह हमला कर सके और अपनी संख्या बढ़ा सके।

कुछ रिपोर्टों में कहा गया है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी कह चुके हैं कि जैसे-जैसे गर्मियाँ बढ़ेंगी, यह वायरस कमज़ोर पड़ जाएगा। लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं। पेकिंग यूनिवर्सिटी फर्स्ट हॉस्पिटल के संक्रामक रोग विभाग के प्रमुख वांग गुइकियांग ने कहा है, 'यह वायरस गर्मी के प्रति संवेदनशील है, लेकिन ऐसा तब होगा जब यह वायरस 30 मिनट के लिए क़रीब 56 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाए और मौसम कभी इतना गर्म नहीं होता है। इसलिए, विश्व स्तर पर, गर्मियों के दौरान भी, मामलों के कम होने की संभावना बहुत कम है।'

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