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क्या पूरी दुनिया के लिये बड़ा ख़तरा बन कर उभर रहा है चीन?

क्या पूरी दुनिया के लिये बड़ा ख़तरा बन कर उभर रहा है चीन?

क्या चीन पूरी दुनिया के लिये एक बड़ा ख़तरा बन कर उभर रहा है? क्या उसने यह तय कर लिया है कि बहुत जल्दी वह दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक शक्ति बन जायेगा और अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा? 

क्या चीन पूरी दुनिया के लिये एक बड़ा ख़तरा बन कर उभर रहा है क्या उसने यह तय कर लिया है कि बहुत जल्दी वह दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक शक्ति बन जायेगा और अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा क्या उसने यह भी तय कर लिया है कि वह भारत को सबक़ सिखा कर रहेगा या फिर भारत को चारों तरफ़ से ऐसा घेर देगा कि भारत उसे चुनौती देने के बारे में न सोचे चीन की सैनिक तैयारियों पर अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने एक रिपोर्ट पेश की है। यह रिपोर्ट ऊपर उठाये गये सवालों के जवाब आप ही दे देते हैं ।  

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने 1 सितंबर को कांग्रेस यानी संसद के सामने चीन की सामरिक तैयारियों, उसके उद्येश्यों और उसकी रणनीतियों पर  रिपोर्ट पेश की। 'मिलिटरी एंड सिक्योरिटी डेवलपमेंट्स इनवॉल्विंग द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना 2020' नाम की यह रिपोर्ट 200 पेजों की है। 

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क्या है रिपोर्ट में

इस रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन का राष्ट्रीय उद्देश्य 2049 तक पूरे चीनी राष्ट्र का कायाकल्प कर देना है। इसके तहत उसे राजनीतिक, अर्थव्यवस्था और सामाजिक परिवर्तन करने हैं। और यह सिर्फ़ एक मक़सद से किया जा रहा है कि चीन को तब तक दुनिया का नंबर एक महाशक्ति बनना है। अगर सिर्फ़ उसकी नौसेना का हवाला दे तो उसकी तैयारियों का अंदाज़ा लगता है। 

इस रिपोर्ट के अनुसार चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 350 जहाज़ और पनडु्ब्बियाँ हैं। कम से कम 130 लड़ाकू जहाज़ हैं जो पूरी तरह आधुनिकतम तोपों और मिसाइलों से लैस हैं और कहीं भी कभी भी हमला कर सकते हैं। दूसरी ओर अमेरिका के पास उसकी ही रिपोर्ट के मुताबिक़, 293 जहाज़ हैं।

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पेंटागन की रिपोर्ट का अंशdepartment of defense, US

पेंटागन की इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि चीन के पास 1,250 ज़मीन से छोड़े जाने वाली मिसाइलें हैं, जिनकी मारक क्षमता 500 किलोमीटर से 5,500 किलोमीटर तक है। चीन के पास ज़मीन से छोड़े जाने वाली क्रूज़ मिसाइलें भी हैं।

पेंटागन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने 70 से 300 किलोमीटर दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें ही तैनात कर रखी हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका ने ज़मीन से छोड़ी जाने वाली क्रूज़ मिसाइल तैनात नहीं की है।

एअर डिफेन्स

चीन के पास आधुनिकतम एअर डिफेन्स सिस्टम प्रणाली है, जिसमें रूस का बना एस-400 और एस-300 तो है ही, चीन का अपना घरेलू सिस्टम भी है। यानी चीन धीरे धीरे अपनी सैनिक ताक़त को मज़बूत करता जा रहा है। और दुनिया अगर सावधान नहीं हुयी तो वो बड़ी मुसीबत में फँस सकती है। 

भारत के लिए ख़तरा

इस बड़ी रिपोर्ट में भारत के लिए चिंता की बात यह है चीनी नौसेना पूरे हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में कम से कम 14 देशों में अपना नौसैनिक अड्डा बना चुका है या बनाने की योजना में है।

पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि म्यांमार, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, कीनिया, सेशेल्स, तंजानिया, अंगोला और ताजिकिस्तान में या तो चीन का सैनिक अड्डा है या वह इस पर काम कर रहा है।

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पेंटागन की रिपोर्ट का अंशdepartment of defense, US

ये तमाम नौसैनिक अड्डे अमेरिका को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं ताकि हिंद और प्रशांत महासागर पर उसके दबदबे को चुनौती दी जा सके, पर ये सारे नौसिक अड्डे भारत के खिलाफ़ भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

पहले नज़र डालते हैं भारत के आस पास के देशों में जहां चीन की दिलचस्पी है।

थाईलैंड

चीन की दिलचस्पी थाईलैंड के दक्षिण में स्थित क्रॉ इस्थमस को काट कर एक चौड़ी नहर बनाने की है। ऐसा होने पर इसके जहाजों को 700 किलोमीटर लंबा रास्ता तय कर चीन से सिंगापुर तक जाने और सिंगापुर को पार कर फिर थाईलैंड के उस क्रॉ इस्थमस तक आने की जहमत नहीं उठानी होगी।

मशहूर पत्रिका फ़ॉरन पॉलिसी के अनुसार बीजिंग ने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत उसे प्रस्ताव दिया है कि वह 30 अरब डॉलर का निवेश करने को तैयार है, जिससे क्रॉ इस्थमस को खोद कर नहर बनाया जा सकता है। वह थाईलैंड के लिए वहां विशेष औद्योगिक क्षेत्र बना देगा, जिससे थाईलैंड के लोगों को रोज़गार मिलेगा और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

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थाईलैंड और प्रस्तावित क्रॉ कैनालmarinelink.com

थाईलैंड में जनरल प्रयूत चान ओ चा ने 2014 में सैनिक तख़्तापलट कर निर्वाचित प्रधानमंत्री यिंगलक सिनावात्रा को सत्ता से हटा दिया और उन पर कई तरह के आरोप जड़ कर उन्हें जेल में डाल दिया। चीन ने इस सैनिक सरकार का समर्थन किया, उसके बाद से थाई सरकार इस योजना में दिलचस्पी लेने लगी है। 

कम्बोडिया

चीन ने कंबोडिया के सिहानूकविला बंदरगाह पर बड़ा निवेश किया है। कंबोडिया की सरकार चीन के साथ किसी तरह के क़रार से इनकार करती है, पर सच यह है कि सिंहानूकविला से सिर्फ 30 किलोमीटर की दूरी पर रीयाम में नैसैनिक अड्डा बनाया जा रहा है।

एबीसी न्यूज़ के अनुसार, कंबोडिया के दक्षिण पश्चिम इलाक़े में दारा साकर सीशोर रिज़ॉर्ट बनाया जा रहा है। वहां एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी बनेगा जो नागरिक ही नहीं लड़ाकू जहाजों के उतरने के लायक भी होगा। 

कम्बोडिया के साथ मिल कर चीन कोह कॉंग डीप सी पोर्ट भी बना रहा है। इस बंदरगाह पर नौसेना के लड़ाकू जहाज फ्रिगेट को लगाया जा सकता है और लड़ाकू विमानों को भी उतारा जा सकता है।

इंडोनेशिया

चीन इंडोनेशिया में जकार्ता-बान्डुंग हाई स्पीड रेलवे बना रहा है। 142 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन पर बीजिंग 5.5 अरब डॉलर खर्च करने जा रहा है।

इंडोनेशिया और चीन के साथ बड़ी दिक्क़त यह है कि दक्षिण चीन सागर में उनके बीच कुछ द्वीपों को लेकर विवाद है। बीजिंग का कहना है कि नतूना द्वीप उसके 'नाइन डैश लाइन' के अंदर है, यानी यह उसका इलाक़ा है। लेकिन इंडोनेशिया का कहना है कि यह उसका द्वीप है। बीच बीच में चीनी नौसेना इंडोनेशिया के मछली पकड़ने वाले जहाजों को छेड़ती रहती है।

'नाइन डैश लाइन' एक काल्पनिक लाइन है जो दक्षिण चीन सागर में बीजिंग ने ऐतिहासिक आधार पर खींच रखी है और उसका कहना है कि यह पूरा इलाक़ा उसका है।

इंडोनेशिया ने 'द हेग ट्राब्यूनल' का हवाला देकर नाइन डैश लाइन को खारिज कर दिया है।

मलेशिया

बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत चीन ने मलेशिया में बहुत बड़ा निवेश कर रखा है और वह पूरे देश में ढाँचागत सुविधाओं का जाल बिछा रहा है। चीन ईस्ट कोस्ट रेल लिंक तो बना ही रहा है, बंदरगाहों के विकास पर भी खर्च कर रहा है। इसके तहत बंदर मलेशिया और मलक्का गेटवे परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इसके अलावा कुआन्तन में डीप सी पोर्ट बना रहा है। 

कुआन्तन डीप सी पोर्ट पर उसका जहाज रहे तो चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर निगरानी रख सकता है। इसके अलावा वह इसके ज़रिए मलक्का स्ट्रेट की भी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। यहां तैनात चीनी जहाज मलक्का स्ट्रेट की नाकेबंदी को रोक सकता है। 

म्यांमार

म्यांमार पर चीन कुछ अधिक ही मेहरबान है। बंगाल की खाड़ी में और बांग्लादेश से कुछ ही दूरी पर क्योकप्यू में वह एक बड़ा डीप सी पोर्ट बना रहा है। क्योकप्यू से चीन के युन्नान प्रांत स्थित कुनमिंग तक यानी 1,060 किलोमीटर लंबी तेल पाइपलाइन बनाई जा रही है। इस पर 2.4 अरब डॉलर का खर्च आएगा। इस पाइपलाइन से 4 लाख बैरल तेल सालाना ढुलाई की जा सकेगी।  इसके अलावा कुनमिंग से क्योकप्यू तक हाई स्पीड रेल लाइन और हाईवे भी बनाए जाएंगे।

क्योकप्यू बंदरगाह भारत के लिए चिंता की बात इसलिए है कि यह म्यांमार के रखाइन प्रांत में है, बंगाल की खाड़ी में है और बांग्लादेश के नजदीक है। लेकिन उससे भी अधिक चिेंता की बात यह है कि अंडमान निकोबार इलाक़े के समुद्री रास्ते में है।

यानी क्योकप्यू पर तैनात विमानवाहक पोत या कोई फ्रिगेट अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मौजूद भारतीय नौसेना के लिए मुसीबत बन सकता है।

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बंगाल की खाड़ी में चीन बना रहा है बंदरगाहIDSA

हालांकि यह व्यावसायिक परियोजना है और इसका मकसद चीन को ईंधन आयात और अपने उत्पाद निर्यात करने के लिए बड़ा बंदरगाह चाहिए, जो उसे मिल रहा है। पर इसका सामरिक इस्तेमाल किया जा सकता है।

बांग्लादेश

भारत की मदद से वजूद में आए बांग्लादेश से भी नरेंद्र मोदी सरकार के रिश्ते इतने बुरे हो गए कि वह अब दूसरी ओर देखने लगा है। चीन ने इस मौके को लपक लिया है।

भारत के साथ हमेशा असंतुलित व्यापार की शिकायत करने वाले बांग्लादेश को चीन ने लगभग 97 प्रतिशत उत्पादों को पूरी तरह आयात शुल्क मुक्त कर दिया है। भारत तो जामदानी साड़ी और हिल्सा मछली पर भी आयात शुल्क लगाता है।

इसके अलावा चीन बांग्लादेश को 24 अरब डॉलर की मदद दे रहा है और दोनों देशों की कंपनियां 13 साझा परियोजनाओं पर काम कर रही हैं। ढाका ने बीजिंग के साथ 27 सहमित पत्रों पर दस्तखत किए हैं।

चाइना हार्बर एंड इंजीनियरिंग कंपनी ने ही श्रीलंका के हम्बनटोटा में बंदरगाह बनाया था और अंत में वह बंदरगाह चीन को दे देना पड़ा। वही कंपनी ढाका-सिलहट हाईव बना रही थी जिस परियोजना को बाद में बांग्लादेश ने अधिक पैसे के नाम पर रद्द कर दिया । समझा जाता है कि उसने ऐसा नई दिल्ली के दबाव में किया था।

लेकिन यदि चीन किसी तरह बांग्लादेश को इस पर राजी करा लेता है कि वह उसके लिए एक बंदरगाह बना दे तो भारत की क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना ही सिहरन पैदा कर देना वाली है। अभी यह दूर की कौड़ी लगती है, पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह नामुमिकन नहीं है।

पाकिस्तान

चीन तो पाकिस्तान का 'ऑल वेदर फ्रेंड' यानी सुखदुख का साथी है। वह उस देश में बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत 46 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। इसके तहत शिनजियांग से ग्वादर तक सड़क बन रही है और ग्वादर बंदरगाह तो बन ही रहा है। ग्वादर बंदरगाह अरब सागर में बसा वह बंदरगाह होगा जहां चीनी नौसेना आराम से जहाज खड़ी कर भारत को चुनौती दे सकती है।

श्रीलंका

श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह तो बहुचर्चित है। श्रीलंका की सरकार ने यह बंदरगाह बनाने का ठेक चीनी कंपनी चाइना हार्बर एंड इंजीनियरिंग कंपनी को दिया, बंदरगाह बन कर तैयार हुआ तो चीन ने 8 अरब डॉलर मांग लिए। इतना पैसा कोलंबो के पास नही है और उसने चीन को यह बंदरगाह 99 साल की लीज पर दे दिया।

यह बंदरगाह भारत के लिए अधिक चिंता की बात इसलिए है कि वह भारतीय जल सीमा से बस कुछ नॉटिकल माइल की दूरी पर है। चीन वहां अपना विमान वाहक पोत लगा कर भारत की नाकेबंदी तक कर सकता है।

'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स'

दरअसल चीन की एक बड़ी और महात्वाकाक्षी परियोजना और है जिसकी कम चर्चा होती है। वह है 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' यानी 'मोतियों की माला' परियोजना। इस परियोजना के तहत हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में अलग-अलग जगहों पर चीन को अपना नौसैनिक अड्डा बनाना है, जो व्यावसायिक हित भी देखेंगे। दरअसल इन बदंरगाहों का निर्माण व्यावसायिक हित दिखा कर कर ही किया जा रहा है, पर उसका मकसद सामरिक ज्यादा है व्यावसायिक कम।

इसका मूल मकसद पूरे हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में अमेरिकी प्रभाव को ख़त्म कर अपना दबदबा कायम करना है। लेकिन चूंकि वह खुले आम कह रहा है और यह आंशिक रूप से सच भी है कि भारत अमेरिका के साथ मिल कर उसे रोकना चाहता है तो वह भारत को भी निशाना बना ही सकता है।

इसलिए चीन भारत को घेरते हुए उसके पड़ोस में श्रीलंका, म्यांमार और बांग्लादेश तक पहुँच चुका है।

भारत के लिए यह खतरे की घंटी के समान है।

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