शतरंज बनाम वेईछी: यानी चीन भारत को गलवान में फँसा कर कोई और ज़मीन हड़पना चाहता है?
हम भारतीय लोग शतरंज के खेल में माहिर हैं तो आम चीनी इसी किस्म के लोकप्रिय वेईछी खेल में माहिर हैं। हमारी राष्ट्रीय समर नीति शतरंज की रणनीति के अनुरूप चलती है तो चीन की रणनीति वेईछी खेल के अनुरूप। चीन ने जिस तरह मई महीने से भारतीय सेनाओं को पूर्वी लद्दाख के विभिन्न इलाकों में उलझा कर रखा है, वह चीन में शतरंज नुमा बोर्ड पर खेले जाने वाले वेईछी खेल की याद दिलाता है।
चीनी लोग 25 सौ सालों से वेईछी खेल को खेल रहे हैं। शतरंज की तरह दो लोगों के बीच खेला जाने वाला यह खेल चीनियों को वह रणनीति सिखाता है जिससे वे दुश्मन को उलझाने और उस पर भारी पड़ने में कामयाब होते हैं।
शतरंज के खेल में हम प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के घोड़ों, हाथियों, मंत्री और राजा को शह देकर मारने या उसे घेर कर मारते या सीधा हमला करते हैं लेकिन वेईछी खेल में मुख्य लक्ष्य दुश्मन का कोई एक भू-भाग होता है जिस पर कब्जा करने के लिए कुछ और भू-भाग में अपनी बढ़त बनानी होती है। आम चीनियों को हम गली-मुहल्लों के नुक्कड़ों या चबूतरों पर इसे खेलते हुए देख सकते हैं।
दुश्मन की सामरिक घेराबंदी
सत्तर के दशक में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे प्रसिद्ध सामरिक विचारक हेनरी किसिंजर जिन्होंने सोवियत संघ को काटने के लिए 1971 में चीन का ऐतिहासिक दौरा किया था, ने चीन के इस वेईछी खेल के बारे में लिखा है। किसिंजर के मुताबिक़ यदि शतरंज किसी एक मोर्चे पर निर्णायक लड़ाई के बारे में हमें सोचने को कहता है तो वेईछी एक लम्बे सैन्य अभियान की रणनीति लागू करने को कहता है जिसमें दुश्मन की सामरिक घेराबंदी की जाती है। इसके लिए चीनी खिलाड़ी दुश्मन के दूसरे खाली इलाकों पर कब्जा करता है और इसमें सामरिक लचीलापन होने की गुंजाइश रखी जाती है।
वेईछी खेल में दुश्मन के कई भू-भाग को घेरने की कोशिश की जाती है ताकि दुश्मन का ध्यान सभी को बचाने में बंट जाए और जिस भू-भाग को हासिल करने का लक्ष्य तय किया गया है, उसे हथियाने में आसानी हो।
फिंगर-4 से फिंगर-8 पर नज़र
पूर्वी लद्दाख में चीन का इरादा अब साफ हो गया है। वह पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 से फिंगर-8 तक के इलाके पर अपना अधिकार जताना चाहता है जिसे वह वेईछी खेल की समर नीति के अनुरूप इस तरह जीतना चाहता है कि उसने पैंगोंग त्सो झील के अलावा गलवान घाटी, देपसांग और हॉट स्प्रिंग इलाकों में अपने सैन्य कदम आगे बढ़ाए हैं।
जहां एक ओर सभी रणनीतिकारों का ध्यान 15 जून को गलवान घाटी में हुई खूनी झड़प पर लगा हुआ है और जहां से चीनी सेना ने अपने को वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे लौटा लिया है, तो दूसरी ओर चीनी सेना पैंगोंग झील के फिंगर-4 से फिंगर-8 तक के आठ किलोमीटर के इलाके पर अपनी सैन्य मौजूदगी मजबूत करती जा रही है।
चीनी सेना की रणनीति है कि वह अपने लक्ष्य के इलाके पर सैन्य तैनाती बढ़ाती जाए और बाकी इलाकों को लेकर हमें बातों में फंसा कर रखे।
चीन ऐसी स्थिति लाना चाहता है कि फिंगर-4 व फिंगर -8 इलाकों में अपने को इतना मजबूत कर ले कि दुश्मन देश इसकी सैन्य नाकेबंदी की तैयारी को देखकर ही समझ जाए कि वहां से चीन को अब बेदखल नहीं किया जा सकता, इसलिए दूसरे इलाकों से चीनी सेना को हटाने की सौदेबाजी की जाए।
चीन ने फिंगर चोटियों पर इसलिए नज़र लगाई है क्योंकि यहां से श्योक-दौलतबेग ओल्डी मार्ग को निशाना बनाया जा सकता है और भारत को 255 किलोमीटर लंबी इस सड़क के जरिये इस रणनीतिक लाभ से वंचित कर सके कि भारत चीन-पाक आर्थिक गलियारा को निशाना बनाने की स्थिति में न रहे।
शातिर चालें चल रहा ड्रैगन
एक ओर चीन जहां भारत के साथ सैनिक और राजनयिक स्तर पर दो दौर की बातें कर भारत को यह संदेश देने की चाल चल रहा है कि वह उसके द्वारा कृत्रिम तौर पर पैदा किए गए पूरे विवाद को बातचीत से सुलझाना चाहता है, वहीं जमीनी सैन्य हालात कुछ और बयां करते हैं। इसी रणनीति के तहत दोनों सेनाओं के कमांडरों के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है और तीसरे दौर की बातचीत 30 जून को पूर्वी लद्दाख के भारतीय इलाके चुशुल में करने का एलान किया गया है।
यह बातचीत पहले की तरह लेह स्थित 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन के शिन्च्यांग-तिब्बत इलाके के कमांडर मेजर जनरल ल्यु लिन के बीच होगी। दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच यह तीसरी बैठक होगी। सैन्य कमांडरों की 22 जून को हुई दूसरी बैठक 11 घंटे तक चली थी जिसे सौहार्द्रपूर्ण, सकारात्मक और रचनात्मक होने की संज्ञा दी गई थी लेकिन सचाई यही है कि इन वार्ताओं का असर जमीन पर देखने को नहीं मिला है।
इसके बाद इसी सप्ताह के अंत तक दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर की बातचीत होगी जो वर्किंग मैकेनिज्म फ़ॉर कंसल्टेशन एंड को-ऑर्डिनेशन ऑन बार्डर अफ़ेयर्स (डब्ल्यूएमसीसी) के तत्वावधान में होगी।
एक ओर जहां चीन ने गलवान घाटी पर अपना दावा कर विवाद को नया मोड़ दे दिया है, वहीं देपसांग घाटी में अपनी सैन्य बढ़त और तैनाती बढ़ा कर भारत पर सैन्य दबाव बढ़ाने की रणनीति लागू की है। यह रणनीति चीन के वेईछी खेल के अनुरूप ही लागू की जा रही है।
दोनोंं देशों के बीच बढ़ा तनाव
भारत और चीन के बीच पहली झड़प गत पांच और नौ मई को पैंगोंग झील की फिंगर-4 चोटी और गलवान घाटी में हुई थी और तब से करीब दो महीने होने वाले हैं और दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव घटने के बदले बढ़ा ही है। इस बीच चीन ने राजनयिक स्तर पर दो बार और सैन्य कमांडरों के स्तर पर दो बार लंबी वार्ताएं की हैं।
इन वार्ताओं के नतीजों और सहमतियों को जमीन पर उतारने का वादा करने के बाद चीनी पक्ष जिस तरह मुकर जाता है, वह चीन के वेईछी खेल की याद दिलाता है जिसमें मुख्य लक्ष्य हासिल करने के लिए चीन भारतीय सेना का ध्यान हटाकर दूसरे भू-भाग पर लगाने की रणनीति खेल रहा है।