फिर साबित हो रहा है कि भारत के लिए पाक से ज़्यादा खतरनाक है चीन!
भारत के ख़िलाफ़ चीन के हौसले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उसने लद्दाख में अपना दबाव बढ़ाने के बाद अब एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश में भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का सिलसिला तेज़ कर दिया है। उसने अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों पर अपना दावा जताते हुए उनके नाम बदल दिए हैं।
अरुणाचल प्रदेश को तो चीन लंबे समय से तिब्बत का यानी अपनी हिस्सा मानता रहा है लेकिन लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना देने के बाद से उसने लद्दाख के इलाक़ों पर भी अपना दावा जताना शुरू कर दिया है। यही नहीं, पिछले दिनों भारतीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बती नेताओं से मुलाक़ात की तो उस पर भी चीनी दूतावास ने सीधे सांसदों को पत्र लिख कर ऐतराज़ जताया है। चीन का यह रवैया भारत के रक्षा मंत्री रहे दिवंगत समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस की उस चेतावनी की याद दिलाता है, जिसमें उन्होंने चीन को भारत का दुश्मन नंबर एक क़रार दिया था।
बात दो दशक से भी ज़्यादा पुरानी है। तब भी केंद्र में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी। कश्मीर में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद भी जारी था और सीमा पर पाकिस्तानी सेना की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए उकसाने वाली कार्रवाइयां भी हो रही थीं। उन्हीं दिनों मई 1998 में वाजपेयी सरकार ने 'पोकरण टू’ परमाणु परीक्षण किया था जिसकी वजह से अमेरिका ने भारत को काली सूची में डाल दिया था। उस परमाणु विस्फोट के बाद ही एनडीए सरकार के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने अपने एक चौंकाने वाले बयान में सामरिक दृष्टि से चीन को भारत का दुश्मन नंबर एक करार दिया था।
जॉर्ज का यह बयान निश्चित ही किन्हीं ठोस सूचनाओं पर आधारित रहा होगा जो रक्षा मंत्री होने के नाते उन्हें हासिल हुई होगी। लेकिन उनका यह बयान कई लोगों को रास नहीं आया था। उनके ही कई साथी मंत्रियों ने उनके इस बयान पर नाक-भौं सिकोड़ी थीं। आज की तरह उस समय भी कांग्रेस विपक्ष में थी और उसे ही नहीं बल्कि एनडीए की नेतृत्वकारी भारतीय जनता पार्टी को तथा यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी जॉर्ज का यह बयान नागवार गुजरा था। वामपंथी दलों को तो स्वाभाविक रूप से चीन के बारे में जॉर्ज की यह साफगोई नहीं ही सुहा सकती थी, सो नहीं सुहाई थी।
यह दिलचस्प था कि संघ और वामपंथियों के रूप में दो परस्पर विरोधी विचारधारा वाली ताकतें इस मुद्दे पर एक सुर में बोल रही थीं, ठीक वैसे ही जैसे दोनों ने अलग-अलग कारणों से 1942 में 'भारत छोड़ो’ आंदोलन का विरोध किया था। जॉर्ज के इस बयान के विरोध के पीछे भी दोनों की प्रेरणाएं अलग-अलग थीं।
संघ परिवार जहां अपनी चिर-परिचित मुसलिम विरोधी ग्रंथी के चलते पाकिस्तान के अलावा किसी और देश को भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा नहीं मान सकता था, वहीं वामपंथी दल चीन के साथ अपने वैचारिक बिरादराना रिश्तों के चलते जॉर्ज के बयान को खारिज कर रहे थे।
कई तथाकथित रक्षा विशेषज्ञों और विश्लेषकों समेत मीडिया के एक बड़े हिस्से ने भी इसके लिए जॉर्ज की काफी लानत-मलामत की थी।
जॉर्ज अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन चीन को लेकर उनका आकलन समय की कसौटी पर बीते दो दशकों के दौरान कई बार सही साबित हुआ है। इस समय भी अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में चीन की हरकतें जॉर्ज के कहे की तसदीक कर रही हैं।
भारत में शहरों, जिलों, सड़कों, गलियों, चौक-चौराहों, स्टेडियमों और रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने को विकास मान रही सरकार की चुप्पी और दब्बूपन के चलते चीन के हौसले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अरुणाचल में उसने जिन इलाक़ों के नाम बदले हैं उनमें आठ रिहायशी इलाक़े, चार पहाड़, दो नदियाँ हैं और एक पहाड़ी दर्रा है। उसने इन स्थानों की अक्षांश और देशांतर रेखाओं के आधार पर पहचान बताते हुए तिब्बती और रोमन वर्णमाला के हिसाब से नए नाम दिए हैं। वह पहले से कहता रहा है कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत है, जिसका चीनी नाम जंगनान है।
इससे पहले 2017 में जिस समय चीन और भारत के बीच सिक्किम के डोकलाम इलाके को लेकर विवाद चल रहा था, उस समय भी चीन ने भारतीय सीमा में छह स्थानों के नाम बदले थे लेकिन तब इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई थी। अभी चूंकि चीन के साथ कई जगह विवाद चल रहा है और उसने नया लैंड बॉर्डर लॉ बनाया है, जिसे एक जनवरी से लागू किया गया है इसलिए 15 स्थानों का नाम बदले जाने का मुद्दा चर्चा में आया है। यह नया लैंड बॉर्डर लॉ भारत के लिए परेशानी पैदा करने वाला है। लेकिन भारत सरकार ने इस पर जो बेहद ठंडी और चलताऊ प्रतिक्रिया जताई है, उससे कतई नहीं लगता भारत सरकार चीन की इस कारगुजारी को गंभीरता से ले रही है।
सरकार के शीर्ष स्तर से ऐसा कोई बयान नहीं आया है जिसमें चीन को सबक सीखा देने की चेतावनी दी गई हो। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इतना ही कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा, गढ़े गए नामों से कुछ नहीं होगा।
भारत सरकार का यह दोहराना तो वाजिब है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और आगे भी रहेगा, लेकिन इतना कहने भर से बात ख़त्म नहीं हो जाती। चीन ने भारतीय भू भाग को अपना बताने संबंधी कोई बयान नहीं दिया है, जिसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान दे देने से काम चल जाएगा। यह चीन का एक निर्णायक कदम है, जिसका भारत सरकार के शीर्ष स्तर से प्रतिकार किया जाना चाहिए। भारत ने 2017 में भी ऐसा नहीं किया था इसलिए चीन की हिम्मत बढ़ी। अगर अब भी कुछ नहीं किया गया तो चीन ने जिन जगहों के नाम बदले हैं, उन पर वह अपना दावा मज़बूत करेगा। भारत को तत्काल चीन के राजदूत को बुला कर सख्त शब्दों में चेतावनी देना चाहिए। कायदे से तो कूटनीतिक और कारोबारी संबंध ख़त्म होने चाहिए लेकिन भारत कारोबारी संबंध खत्म नहीं कर सकता है कि क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक चीन पर निर्भर है।
चीन की ताज़ा हरकत पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान इसलिए भी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इस बयान के तुरंत बाद चीन के सरकार समर्थक अखबार 'ग्लोबल टाइम्स’ ने चीनी विदेश मंत्रालय के एक पुराने दस्तावेज को प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया था कि चीन ने कभी 'तथाकथित’ अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी।
बहरहाल, इस गरमाए माहौल के बीच यह ख़बर भी आई कि नए साल के मौक़े पर लद्दाख क्षेत्र में दस जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों ने मिठाइयों का आदान-प्रदान किया। जिन दस जगहों के नाम आए, उनमें बोटलनेक भी है। सुरक्षा विशेषज्ञों को इस नाम ने चौंकाया है। उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या यह भारत सरकार की पहली स्वीकृति है कि देपसांग इलाके में इस जगह तक चीनी घुस आए हैं? वैसे, लद्दाख के बारे में भारत सरकार का आधिकारिक रुख अब तक यही है कि 'न कोई घुसा था, न कोई घुसा हुआ है और न ही किसी ने किसी भारतीय चौकी पर कब्जा जमा रखा है।’ यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल जून महीने में सर्वदलीय बैठक में तब कही थी, जब गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। हालाँकि अनेक भारतीय विशेषज्ञ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात से आज भी सहमत नही हैं।
कई रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि लद्दाख क्षेत्र में अपनी स्थिति मज़बूत करने के बाद अब चीन पूरब में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर दबाव बढ़ा रहा है। चीन की हिमाकत इस कदर बढ़ती जा रही है कि पिछले दिनों भारतीय सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने तिब्बती नेताओं से मुलाकात की तो चीनी दूतावास के एक अधिकारी ने सीधे सांसदों को पत्र लिख कर इस पर ऐतराज जताया। गौरतलब है कि तिब्बत की निर्वासित सरकार के एक पदाधिकारी की ओर से पिछले दिनों रात्रि भोज का आयोजन हुआ था, जिसमें केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर सहित कई दलों के सांसद शामिल हुए थे। कायदे से तो भारत सरकार को तत्काल इस पर सख्त विरोध जताते हुए चीनी राजदूत को तलब कर उसे सख्त हिदायत देनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। भारत सरकार के इसी ठंडे रवैये का फायदा उठाते हुए चीन लगातार नई-नई हिमाकत करता जा रहा है।