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क्या चीन ने तीसरे विश्व युद्ध के हथियार के रूप में बनाया कोरोना वायरस?

क्या चीन ने तीसरे विश्व युद्ध के हथियार के रूप में बनाया कोरोना वायरस?

क्या चीनी सेना ने कोरोना वायरस संक्रमण पूरी दुनिया में फैलने से पाँच साल पहले यानी 2015 में जैविक हथियार बनाने के लिए कोरोना वायरस तैयार किया था? 

क्या चीनी सेना ने कोरोना वायरस संक्रमण पूरी दुनिया में फैलने से पाँच साल पहले यानी 2015 में जैविक हथियार बनाने के लिए कोरोना वायरस तैयार किया था? क्या पीपल्स लिबरेशन आर्मी इस नीति पर चल रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पारंपरिक हथियारों से नहीं, बल्कि वायरस जैसे जैविक हथियारों के बल पर लड़ा जाएगा? क्या इसके लिए चीन के माइक्रोबायोलोजिस्ट सीधे तौर पर ज़िम्मेदार हैं?

ऐसे समय जब अकेले भारत में कोरोना वायरस से दो करोड़ से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और दो लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, ये सवाल उठने लाज़िमी है। ये सवाल एक बार फिर इसलिए उठने लगे है कि ऑस्ट्रेलिया से छपने वाले अख़बार 'द ऑस्ट्रेलियन' ने कोरोना वायरस से जुड़े हुए मामले में एक धमाकेदार रहस्योद्धाटन किया है और कोरोना के लिए सीधे तौर पर चीन को ज़िम्मेदार ठहराया है।

बड़ा धमाका!

चीन पर इस तरह के आरोप पहले भी लग चुके हैं। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उनके विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने खुले आम चीन सरकार पर दोष लगाया था, लेकिन 'द ऑस्ट्रेलियन' ने अपनी खबर में चीनी सेना के वैज्ञानिकों का नाम लेकर कहा है बीजिंग ने जैविक हथियार विकसित किए थे। 

अख़बार के मुताबिक़, चीनी सेना ने 2015 में एक शोध पत्र तैयार किया था- 'द अननेचुरल ऑरिजिन ऑफ़ सार्स एंड अदर स्पेशीज़ ऑफ़ मैनमेड वायरसेस एज जेनेटिक बायोवेपन्स'।

 

 - Satya Hindi

 'वॉट रियली हैपेन्ड इन वुहान'

इसमें सार्स कोरोनावायरस को 'नए युग का जैव हथियार' बताया गया था 'इसके साथ छेड़छाड़ कर मनुष्य को होने वाले वायरस संक्रमण के रूप में विकसित किया जा सकता है, इसके बाद इससे हथियार बनाया जा सकता है और इसका ऐसा इस्तेमाल किया जा सकता है जैसा आज तक नहीं हुआ है।'

जल्द ही छपने वाली किताब 'वॉट रियली हैपेन्ड इन वुहान' में इस शोध पत्र के बारे में जानकारी दी गई है। इस किताब के लेखक शारी मार्क्सन हैं और इसे हार्पर कॉलिन्स छाप रहा है, सितंबर तक इसके बाज़ार में आने की संभावना है। 

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क्या है मामला?

ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीच्यूट के कार्यकारी निदेशक पीटर जेनिंग्स ने news.com.au से कहा,

यह अहम इसलिए है कि चीनी वैज्ञानिक कोरोना वायरस के अलग-अलग स्ट्रेन के सैन्य इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे थे और सोच रहे थे कि उन्हें कैसे तैनात किया जाए। रोगाणुओं के सैन्य इस्तेमाल का यह पक्का सबूत है।


पीटर जेनिंग्स, कार्यकारी निदेशक. ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीच्यूट

क्या कहा डब्लूएचओ ने?

चीनी शोधपत्र के 18 लेखकों में से कई पीएलए के वैज्ञानिक थे। 

लोगों को चीन पर इसलिए भी संदेह हो रहा  है कि तकरीबन 10 साल पहले वहां सीवियर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रम (सार्स) तेजी से फैला था और उसका वायरस जिस फैमिली का था, उसी फैमिली का कोरोना वायरस भी है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक दल उसके जन स्वास्थ्य पैथोलोजी विभाग के निदेशक डॉमिनिक ड्वैयर की अगुआई में जनवरी में चीन के शहर वुहान गया था। इस दल ने अध्ययन करने के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कोरोना वायरस मूल रूप से जानवरों में पाया जाने वाला वायरस है यह वहीं से मनुष्य में गया होगा। 

डॉमिनिक ड्वैयर  ने अमेरिकी पत्रिका 'द कंजरवेटिव' से फरवरी में कहा था कि हो सकता है कि कोरोना वायरस चीन के मांस बाज़ार से मनुष्यों तक न पहुँचा हो। 

उन्होंने कहा,

हम वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ़ वायरोलोजी भी गए थे, वहाँ काफी अच्छी व्यवस्था है। हमने वैज्ञानिकों से बात की, हमने सुना कि उसके खून के नमूनों की जाँच की गई थी, लेकिन कोरोना से जुड़ा कोई एंटीबॉडी नहीं मिला था, हमने बायो ऑडिट की रिपोर्ट भी देखी, हमें इसके कोई सबूत नहीं मिला कि वुहान इंस्टीच्यूट में कोरोना वायरस हों।


डॉमिनिक ड्वैयर, निदेशक, जन स्वास्थ्य पैथोलोजी, डब्लूएचओ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रस एडेनाम घेब्रेयसस ने मार्च में कहा कि हमने सभी संभावनाओं पर विचार किया, वुहान इंस्टीच्यूट से कोरोना वायरस फैलने का कोई सबूत नहीं मिला, हम आगे भी इस पर काम करते रहेंगे। 

भारत का हाल!

जहाँ तक भारत की बात है, कोरोना संकट की गंभीरता हर रोज़ 4 लाख से ज़्यादा पॉजिटिव केस आने और क़रीब 4 हज़ार मौतों से तो पता चलती ही है, लेकिन अब सरकार ने गंभीर मरीज़ों सहित कोरोना से जुड़े जो आँकड़े जारी किए हैं, वे क्या संकेत देते हैं? क्या कोरोना पहली लहर से ज़्यादा घातक है? इन आँकड़ों से ख़ुद अंदाज़ा लगाइए। क़रीब 50 हज़ार कोरोना मरीज़ आईसीयू में हैं। 14 हज़ार 500 वेंटिलेटर पर हैं। और 1.37 लाख मरीज़ ऑक्सीज़न सपोर्ट पर हैं।

 ये आँकड़े स्वास्थ्य मंत्रालय ने ही शनिवार को जारी किए हैं। हालाँकि रिपोर्ट में यह साफ़ नहीं किया गया है कि कितने मरीज़ आईसीयू में भर्ती होने की स्थिति में हैं लेकिन उन्हें बेड नहीं मिल पा रहा है, कितने मरीज़ों को वेंटिलेटर की ज़रूरत है और कितने मरीज़ों को ऑक्सीजन सपोर्ट की। 

वहीं सोमवार को जारी आँकड़ों के अनुसार, बीते 24 घंटों में इनमें कुछ कमी आई और 3,66,161 नए मामले दर्ज किए गए। इस दौरान मौतों के मामलों में भी कमी आई और यह आंकड़ा 3,754 रहा जबकि बीते दिन 4092 मौतें हुई थीं। हालांकि इसके पीछे कारण यह भी है कि रविवार को 14.74 लाख सैंपल्स की जांच की गई जबकि और दिन यह आंकड़ा 18-19 लाख होता है। 

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