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चीन की जनसंख्या 60 साल में पहली बार घटी; भारत के लिए सबक़?

चीन की जनसंख्या 60 साल में पहली बार घटी; भारत के लिए सबक़?

चीन के सामने बुजुर्ग हो रही बड़ी आबादी का संकट है। पिछले कुछ वर्षों से जनसंख्या बढ़ाने के लिए चीन संघर्ष कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद 60 साल में ऐसा पहली बार हुआ जो बेहद गहरे संकट को दिखाता है।

दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन अब जनसंख्या घटने से संकट में है! चीन की आबादी में गिरावट शुरू हो गई है। यानी चीन में अब ऐसी स्थिति आ गई है कि जितने बच्चों ने जन्म लिया उससे ज़्यादा लोगों की मौत हुई है। जन्म दर में वर्षों तक लगातार गिरावट के बाद अब ऐसी स्थिति हुई है।

चीन सरकार ने मंगलवार को कहा है कि चीन में 2022 में 95.6 लाख बच्चों का जन्म हुआ, जबकि 104.1 लाख लोगों की मौत हुई। 1960 के दशक की शुरुआत के बाद से यह पहली बार है जब मौतों की संख्या चीन में जन्म से अधिक है। 1960 में ऐसी स्थिति तब आई थी जब ग्रेट लीप फॉरवर्ड, माओत्से तुंग के विफल आर्थिक प्रयोग के कारण बड़े पैमाने पर अकाल पड़ा था और इस वजह से मौतें हुई थीं। हालाँकि, तब जन्म दर में ऐसी कोई कमी नहीं आई थी। तब तो जन्म दर काफ़ी ज़्यादा थी और यह चीन की सरकार के लिए चिंता का विषय था। यही वजह थी कि इसने बाद में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े क़ानून बनाए थे। 

चीन अपनी बढ़ती जनसंख्या से परेशान होकर 1980 तक आते-आते ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ ले आया। यानी चीन ने ऐसा क़ानून बनाया जिसमें एक पति-पत्नी सिर्फ़ एक ही बच्चा जन्म दे सकता था। इसे कड़ाई के साथ लागू किया गया। उस नियम के तहत यदि एक से अधिक बच्चा पाया जाता था तो सरकारी अफ़सर और कर्मचारियों को अपनी नौकरी गँवानी पड़ती थी।

जिन महिलाओं को इस क़ानून का उल्लंघन करते पाया जाता था उनका या तो जबरन गर्भपात करा दिया जाता था या फिर भारी जुर्माना लगाया जाता था। अगर माता-पिता पर लगाया गया जुर्माना नहीं भरा जाता था तो उस बच्चे की देश की नागरिकता में गणना नहीं की जाती थी, यानी वे पैदा होते ही ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिए जाते थे।

हालाँकि कुछ मामलों में छूट दी गई थी। अल्पसंख्यकों पर बच्चों की संख्या की कोई पाबंदी नहीं थी। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले हान मूल के चीनी नागरिकों को दो बच्चे की छूट थी। विक्लांग बच्चा पैदा होने पर भी छूट थी। 

यह देश में तेज़ी से बढ़ती आबादी को कम करने और उसी समय चीन के जीवन स्तर को ऊँचा करने के लिए एक रणनीति थी। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि असंतुलित लिंग अनुपात हो गया।

महिलाओं की संख्या काफ़ी कम हो गई और पुरुषों की संख्या ज़्यादा। असंतुलित लिंग अनुपात भयावह स्तर तक बढ़ गया।

वन चाइल्ड पॉलिसी का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि बूढ़े लोगों की संख्या अब काफी ज़्यादा हो गई। वहाँ बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बुज़ुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिए नौजवान आबादी की कमी हो रही है। 2035 तक चीन में 40 करोड़ लोगों के 60 वर्ष से अधिक उम्र के होने की संभावना है, जो इसकी आबादी का लगभग एक-तिहाई है।

इन वजहों से जब स्थिति ख़राब होने लगी तो 2015 में वन चाइल्ड पॉलिसी को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया गया और 2016 में उस क़ानून को ख़त्म कर दिया गया। चीनी अधिकारी क़रीब चार साल से कोशिश कर रहे हैं कि एक बच्चा की नीति के विनाशकारी असंतुलन को ख़त्म किया जाए और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

इसके लिए उन्होंने दंपतियों से कहा है कि दो बच्चों को पालना उनकी देशभक्ति का कर्तव्य है। उन्होंने टैक्स ब्रेक और हाउसिंग सब्सिडी दी है। उन्होंने शिक्षा को सस्ता किया है और पैतृक अवकाश लंबा करने की पेशकश की है। उन्होंने गर्भपात या तलाक़ लेने के लिए इसे और अधिक कठिन बनाने की कोशिश की है। लेकिन यह उतना कारगर नहीं रहा है।

आज के जमाने की महिलाओं को अपने ख़ुद के करियर की चाह होती है। और इस तरह शादी और बच्चे के जन्म में देरी हो रही है। इससे चीजें आगे और भी जटिल हो जाती हैं।

इसी का नतीजा है कि तमाम प्रयासों के बाद भी चीन की जनसंख्या सिकुड़ने लगी है। 2022 में जहाँ क़रीब 95 लाख बच्चों ने जन्म लिया वहीं 2021 में 106 लाख बच्चों ने जन्म लिया था। यह लगातार छठा वर्ष था जब जन्म लेने वालों की यह संख्या गिर गई थी।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि यह गिरावट चीन को एक जनसांख्यिकीय संकट में डाल रही है। कहा जा रहा है कि इसका असर इस सदी में न केवल चीन और इसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बल्कि दुनिया पर भी पड़ेगा।

भारत की जनसंख्या भी घटेगी!

चीन की मौजूदा स्थिति भारत के लिए सबक़ के तौर पर हो सकती है। ख़ासकर तब जब भारत में भी प्रजनन दर अब जनसंख्या के स्थिर रहने से भी नीचे आ गयी है। 

इसे समझने के लिए टीएफ़आर को समझना होगा। टीएफ़आर यानी कुल प्रजनन क्षमता दर। भारत में 1950 में जो टीएफ़आर 5.9 था वह अब घटकर 2.0 हो गया है। अब आगे के वर्षों में इसमें और भी गिरावट का अनुमान लगाया गया है।

 - Satya Hindi

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस-5 दिखाता है कि भारत का टीएफ़आर पिछली बार के 2.2 से घटकर 2.0 हो गया है। प्रजनन क्षमता से मतलब है कि देश में एक महिला अपने जीवन काल में औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करती है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। लेकिन टीएफ़आर इससे कम होने का मतलब है कि जनसंख्या घटने लगेगी।

तो सवाल है कि जिस तरह 'एक बच्चे की नीति' को त्यागकर चीन अब जनसंख्या बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहा है क्या वही समस्या भारत के गले पड़ने वाली है? प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लांसेट के अनुसार, 2020 में भारत की जनसंख्या क़रीब 1.38 अरब थी जो 2040-48 के बीच तक बढ़कर 1.5-1.6 अरब के आसपास पहुंच जाएगी। लेकिन 2100 में इसके कम होकर क़रीब एक अरब के आसपास पहुँच जाने का अनुमान है। तो चीन के मौजूदा संकट जैसे हालात एक दिन भारत के सामने भी होंगे!

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