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चीनी घुसपैठ से इनकार कर बीजिंग के दावे को मजबूत कर रही है मोदी सरकार?

चीनी घुसपैठ से इनकार कर बीजिंग के दावे को मजबूत कर रही है मोदी सरकार?

संसद में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से यह बयान दिलवाना हैरान करता है कि पिछले छह महीनों से चीनी सीमा पर घुसपैठ नहीं हुई है। 

पूरा देश यह समझ रहा है कि सीमा पर चीनी सेना से इसलिये तनातनी चल रही है कि उसने भारतीय भू-भाग में घुसपैठ की है और वहाँ कब्जा कर लिया है, जिसे बेदख़ल करने के लिये भारतीय सेना की दो डिवीज़न यानी क़रीब 35 से 40 हज़ार सैनिक पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में तैनात हैं। 

घुसपैठ के चार महीने हो चुके हैं और चीनी सेना को बेदख़ल करने के लिये ही भारत ने कई बड़ी सैन्य कार्रवाई भी की है। उसने चीनी सेना को और आगे बढने से रोका है। नतीजतन, आज भारत और चीन की सेनाएं आमने- सामने खड़ी हैं। इसी ज़मीनी सचाई के अनुरूप  संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा भी है कि भारत किसी भी स्थिति का मुक़ाबला करने के लिये तैयार है।

लेकिन बुधवार को संसद में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से यह बयान दिलवाना हैरान करता है कि पिछले छह महीनों से चीनी सीमा पर घुसपैठ नहीं हुई है। इसके पहले 15 जून को गलवान घाटी की ख़ूनी झड़प में अपने 20 सैनिकों की शहादत के बाद जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सर्वदलीय बैठक बुलाने को मजबूर होना पड़ा था, उन्होंने यह कह कर देश को हैरान कर दिया था कि 'न तो कोई भारतीय सीमा में घुसा है औऱ न ही कोई पोस्ट किसी के कब्जे में है।' 

चीन ने इस बयान को खूब उछाला था और अगले दिन जब इसकी मामूली अस्पष्ट सफाई दी गई थी, यह सवाल उठा था कि भारतीय सीमांत इलाक़ों में जब कोई घुसा ही नहीं है तो चीन के साथ सैन्य तनातनी किस बात की है

वाहवाही लूटने की कोशिश में नुक़सान

टेलीविज़न चैनलों पर बीजेपी के प्रवक्ता इसी कथन के अनुरूप खुले आम यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि चीनी सैनिक भारतीय भू-भाग पर बैठ हुए हैं। आम जनता में अपनी वाहवाही लूटने के लिये सरकारी सूत्र यह कहने लगे हैं कि हमारी सेना ने ही वास्तविक नियंत्रण  रेखा के पार जाकर चीन के इलाक़े में चोटियों पर कब्जा कर चीन की घुसपैठ योजना को वक़्त से पहले नाकाम कर दिया।

चीन को यह कहने का मौका मिल गया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन तो भारतीय सेना ने किया है, चीनी सेना ने नहीं। चीनी राजदूत सुन वेई तुंग ने दिल्ली में कहा, 'चीनी सेना अपने ही इलाक़े में है।'

चीन का मनोबल बढ़ाया भारत ने

वास्तव में चीन ने गत चार महीने के भीतर भारत के क़रीब एक हज़ार वर्ग किलोमीटर भू-भाग पर चीन ने कब्जा कर  लिया है और हम बेबस हैं। सिवाए अपनी बांहें मरोड़ कर दुश्मन को दिखाने के अलावा दुश्मन को पीछे ढकेलने के लिये  कुछ नहीं किया है।

वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत की ओर से जो बयान दिये जा रहे हैं, उससे चीन का मनोबल और बढा है। रक्षा मत्री राजनाथ सिंह के संसद में मंगलवार को दिये गए इस बयान से चीनी दावे को ही बल मिलता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का स्पष्ट निर्धारण नहीं हुआ है और इसे लेकर दोनों देशों की अपनी अपनी धारणाएँ हैं।

क्या है चीनी अवधारणा

इसी तर्क के आधार पर चीन का दावा है कि चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख के जिस भारतीय अवधारणा वाले इलाक़े में घुसे हैं, वह वास्तव में चीन की अवधारणा के अनुरूप है, इसलिये उसी के अनुरूप चीन की सेना जहाँ तक है, वही वास्तविक नियंत्रण रेखा है। पूर्वी लद्दाख के चुशुल सेक्टर की देपसांग घाटी में चीनी सेना क़रीब 18 किलोमीटर भीतर घुसी है और वहां करीब 900 वर्ग किलोमीटर के भारतीय भूभाग पर भारतीय सैनिकों को गश्त करने से रोका हुआ है। यह इलाक़ा 1962 के बाद से भारतीय सेना की निगरानी में रहा है। 

वास्तव में 2013 में जब चीनी सेना ने देपसांग में घुसपैठ की थी, तब भारतीय राजनयिक दबाव के बाद वह पीछे जाने को मज़बूर की गई थी, लेकिन आज हम चीनी सेना को देपसांग इलाक़े में वैसा ही करने को मजबूर नहीं कर सके हैं।

समस्या 1993 से है

दरअसल 1993 में जब पहली बार वास्तविक नियंत्रण रेखा की अवधारणा के आधार पर शांति व स्थिरता की संधि भारत औऱ चीन ने की थी, उसी समय से यह समस्या चली आ रही है। यह हाल के सालों में इसलिये उग्र होती गई कि 1993 में वास्तविक नियंत्रण रेखा का कोई सीमांकन नहीं किया गया। चीन ने जानबूझ कर भ्रम की स्थिति रहने दी, जिसका लाभ वह आज उठा रहा है। भारतीय रणनीतिज्ञ 1993 की उसी ग़लती पर बार- बार मुहर लगा कर चीन के इस दावे को पुख़्ता कर रहे हैं कि पूरा इलाक़ा विवादास्पद है और चीनी सेना अपने दावे वाले इलाके में ही तैनात है।

1993 के पहले तक भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा जैसी कोई रेखा नहीं थी। 1987 में जब  अरुणाचल प्रदेश की समदुरोंग छू घाटी में चीन ने अतिक्रमण किया तो भारत ने इसे खाली करा कर ही दम लिया था। वास्तव में अतिक्रमण की इसी घटना के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1988 में चीन ऐतिहासिक  दौरा किया। तब चीन के शिखर पुरुष देंग जियाओ पिंग ने राजीव गांधी का हाथ पाँच मिनट तक पकड़े रख कर रिश्तों में इतनी गर्मी पैदा कर दी थी कि भारतीय नेता पिघल गए थे। 

चीनी नेता देंग जियाओ पिंग ने कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद इतिहास की विरासत है जो इतना जटिल है कि इसे सुलझाने में वक़्त लगेगा, तब तक भारत और चीन सीमा विवाद को दरकिनार कर अन्य क्षेत्रो में रिश्तों को मजबूत करते जाएं।

मजबूत व्यापारिक रिश्ते

तब से अब तक भारत चीन की इस लाइन पर चलता रहा और आज इसका नतीजा यह है कि भारत औऱ चीन के बीच दोतरफा व्यापार 95 अरब डालर तक पहुँच गया जिसमें चीन को भारी एकपक्षीय लाभ हुआ है। चीन ने व्यापार संतुलन अपने पक्ष में कर भारत को चीनी उत्पादों का बाज़ार बना दिया औऱ भारतीय निर्माण क्षेत्र को चौपट कर दिया। इस तरह चीन के मुक़ाबले आर्थिक क्षेत्र में खड़़े होने का भारत का सपना बिखरने लगा। इसके साथ ही चीन ने  भारत का विश्वास इस कदर जीता कि भारत ने चीन से लगे सीमांत इलाक़ों की अनदेखी की। दूसरी ओर चीन ने अपने इलाक़े में सैनिकों की तैनाती के लिये भारी ढाँचागत निर्माण किये और वहां अपने सैनिकों की आवाजाही को सुगम बना दिया। 

भारत के कान 2006 में खडे हुए जब चीन से लगे इलाक़े में बड़े पैमाने पर ढाँचागत सुविधा और निर्माण की योजना को मंजूरी दी। आज जब भारत ने इसी के अनुरूप 255 किलोमीर लम्बा दौलतबेग ओल्डी मार्ग बना लिया तो चीन को यह खटकने लगा और लद्दाख के इस पूरे इलाक़े को अपना बताने लगा।

चीन की अवधारणा तो यह है कि पूरा लद्दाख और पूरा अरुणाचल प्रदेश उसका है। क्या इस आधार पर हम दोनों इलाकों को ही विवादास्पद मान कर चीन के दावे को यह कह कर पुख़्ता करें कि पिछले छह महीनों में चीन से सटी सीमा पर कोई घुसपैठ नहीं हुई है 

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