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क्या चीन के ख़िलाफ़ लामबंद होंगे दुनिया के चार देश?

क्या चीन के ख़िलाफ़ लामबंद होंगे दुनिया के चार देश?

चीन की  विस्तारवादी हरक़तों और चुनौतियों से निबटने के अघोषित इरादे से ही चारों देश एक मंच पर आ रहे हैं।

27 सितंबर को न्यूयार्क में हुई चार देशों भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के विदेश मंत्रियों की बैठक ने अंतरराष्ट्रीय सामरिक जगत का ध्यान खींचा है। चार देशों के इस समूह को क्वाड कहा गया है और इसे किसी राजनीतिक या सैन्य गुट या संधि की संज्ञा नहीं दी जा रही है और क्वाड्रीलेटरल डॉयलाग यानी चतुर्पक्षीय वार्ता ही कही जा रही है। लेकिन जिन मसलों पर इस समूह के अधिकारियों की बैठकें अब तक होती रही हैं वे सभी चीन की नीतियों और गतिविधियों से जुड़ी हैं और इसके बयानों में जिस तरह हिंद प्रशांत इलाक़े में समुद्री क़ानूनों के पालन और समुद्री सुरक्षा में आपसी सहयोग को गहरा करने के बारे में संकल्प लिये जाते रहे हैं, उससे साफ़ है कि चीन की  विस्तारवादी हरक़तों और चुनौतियों से निबटने के अघोषित इरादे से ही चारों देश एक मंच पर आ  रहे हैं।

क़रीब दो साल पहले यानी 12 नवम्बर, 2017 को मनीला में आसियान शिखर बैठक के दौरान पहली बार चीन के रुख से परेशान चार ताक़तवर देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की बैठक के दौरान क्वाड यानी क्वाड्रीलेटरल डायलॉग की नींव डाली गई थी तो इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय सामरिक हलकों में काफी अटकलें लगी थीं। कहा गया था कि चार देश अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया चीन के ख़िलाफ़ लामबंद हो रहे हैं।  

भारत ने संभलकर बढ़ाए क़दम

इस चतुर्पक्षीय वार्ता को चीन विरोधी करार देने से भारत सहम गया था और भारत ने बाक़ी तीन भागीदार देशों से कहा था कि क्वाड की दिशा में कदम तेज़ी से नहीं बढ़ाएं। वास्तव में भारत ने चीन की चिंताओं को दूर करने के लिये इसे समावेशी बनाने को कहा। तब चीन ने भारत के साथ सहयोग का रिश्ता आगे बढ़ाने के संदेश दिये थे और भारत यह आभास चीन को नहीं देना चाहता था कि वह चीन के ख़िलाफ़ चार देशों की गुटबाजी में शामिल होना चाहता है।

चीन ने दिखाया भारत विरोधी रवैया

लेकिन अपनी इस हिचक को दूर करते हुए जिस तरह भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने न्यूयार्क में चार देशों के विदेश मंत्रियों की पहली  बैठक में भाग लेने की सहमति दी वह चीन के प्रति भारत की निराशा ही दर्शाता है। हालांकि चीन विश्व शांति व स्थिरता और आर्थिक विकास के लिये भारतीय हाथी और चीनी ड्रैगन के बीच साझा नृत्य को प्रोत्साहित करने की बातें करता रहा है लेकिन जिस तरह आतंकवाद के मसले पर चीन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत विरोधी रवैया दिखाया और जम्मू कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का खुल कर साथ दिया उससे भारतीय राजनयिक महकमे में यह अहसास पैदा हुआ कि चीन भारत के साथ दोस्ती की बातें केवल अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के नजरिये से ही करता है और वह भारत के साथ दोस्ती की बातें केवल दिखावे के लिये ही कर रहा है।

भारत की तरह बाक़ी तीन देश भी चीन के रुख से त्रस्त हैं। इसीलिये चारों देशों के सामरिक हलकों में यह धारणा मजबूत होती जा रही है कि हिंद प्रशांत और ख़ासकर दक्षिण चीन सागर में चीन अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिये दादागिरी दिखाते हुए कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर उन पर मिसाइलें आदि तैनात कर रहा है। 

चीन दक्षिण चीन सागर के इलाक़े में विदेशी व्यापारिक गतिविधियों को बाधित करने की कोशिश करने में लगा है और इससे न केवल चार देश बल्कि पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है।

यही वजह है कि दो साल पहले क्वाड की जो नींव डाली गई थी वह आज एक  इमारत जैसी खड़ी होती दिखने लगी है। इन देशों के सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चीन के बढ़ते सामरिक क़दम को नहीं रोका गया तो चीन एक दिन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश करेगा। सवाल यह है कि चीन के इन विस्तारवादी इरादों को किस तरह काबू में किया जाए।

ग़ौरतलब है कि इन्हीं दिनों जापान के समुद्री इलाक़े में क्वाड के तीन सदस्य देशों भारत, अमेरिका और जापान के बीच त्रिपक्षीय साझा अभ्यास मालाबार में आयोजित हो रहा है। हालांकि क्वाड ने अपने को एक सैन्य गुट की संज्ञा नहीं दी है लेकिन इसी वक़्त क्वाड के तीन सदस्यों द्वारा जापान के तट पर साझा नौसैनिक अभ्यास करना काफी अहम है। लेकिन क्वाड ने कहा है कि यह साझा अभ्यास किसी के ख़िलाफ़ निर्देशित नहीं है। 

इस त्रिपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास में क्वाड का चौथा सदस्य आस्ट्रेलिया भी शामिल होना चाहता है लेकिन भारत ने इस पर सहमति नहीं दी है। शायद इसलिये कि मालाबार नौसैनिक अभ्यास पूरी तरह क्वाड के सैन्य गठजोड़ की तरह दिखने लगेगा और चीन को इस पर एतराज होगा। 

लेकिन पर्यवेक्षकों का मानना है कि जिस तरह क्वाड की बैठक का स्तर विदेश मंत्री तक का करने में भारत ने हामी भरी उसी तरह मालाबार को भी चतुर्पक्षीय करने में भारत अब और नहीं हिचकेगा।

चारों देशों के बीच पिछले दो सालों से संयुक्त सचिव स्तर की सलाह-मशविरा बैठकें होती रही हैं। इसका स्तर ऊंचा करने के लिये भारत अब तक हिचकता रहा है इसलिये न्यूयार्क में चारों देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठने का ऐलान किया गया तो राजनयिक हलकों में हैरानी हुई। इस बैठक के बाद अमेरिकी कार्यवाहक सहायक सचिव एलिस वेल्स ने कहा कि हिंद प्रशांत इलाक़े में चारों देशों ने सहयोग आगे बढ़ाने के इरादे से यह बैठक की है।

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की मेजबानी में आयोजित इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जापान के विदेश मंत्री तोशीमित्सु मोतेगी और आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री मैंसे पाएन ने भाग लिया। इस बैठक के नतीजों के बारे में एक  अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि खुले और मुक्त हिंद प्रशांत इलाक़े के इरादे से सहयोग को आगे बढ़ाने के विषय पर चर्चा तो हुई ही प्रतिआतंकवाद, समुद्री सुरक्षा, आपदा के दौरान मानवीय सहायता,  साइबर सुरक्षा और विकास वित्त के मसलों पर गहन चर्चा हुई है।

इस बैठक के नतीजों के बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय मौन है। शायद वह चीन को यह अहसास नहीं देना चाहता है कि वह चीन विरोधी गुट में सक्रिय भूमिका निभा रहा है लेकिन क्वाड की बैठक में भारतीय विदेश मंत्री का भाग लेना ही चीन के लिये संकेत है कि भारत के सब्र का बांध टूटने लगा है और वह चीन विरोधी अघोषित गठजोड़ में अपनी भागीदारी बढ़ाने को तैयार है।

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