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मालाबार नौसैनिक अभ्यास से परेशान क्यों है चीन?

मालाबार नौसैनिक अभ्यास से परेशान क्यों है चीन?

ऑस्ट्रेलिया और जापान की अर्थव्यवस्थाओं की नकेल चीन के हाथों में है जिसे चीन जब भी कस कर खींचने लगेगा, दोनों देश ख़ुद पर लगाम कस लेंगे।

चीन के साथ चल रही सैन्य तनातनी के बीच बंगाल की खाड़ी में भारत की मेजबानी में तीन नवम्बर से शुरू हुआ चार देशों का साझा मालाबार नौसैनिक अभ्यास दुनिया में एक नये सामरिक समीकरण और सैन्य गठजोड़ का बीजारोपण है या महज दिखावटी शक्ति प्रदर्शक आयोजन, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। यह काफी कुछ चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता पर निर्भर करेगा लेकिन यह भी देखना होगा कि चीन अपनी आर्थिक ताकत के बल पर इस गठजोड़ के उभरने से पहले ही इसमें  दरार पैदा करने में कामयाब नहीं हो जाए।

खासकर ऑस्ट्रेलिया और जापान की अर्थव्यवस्थाओं की नकेल चीन के हाथों में है जिसे चीन जब भी कस कर खींचने लगेगा, दोनों देश ख़ुद पर लगाम कस लेंगे।

जापान को रोक रहा चीन

पिछली बार 2007 में जब बंगाल की खाड़ी में ही सिंगापुर के अलावा इन चार देशों को साथ लेकर पांच देशों का साझा बहुपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास हुआ था, तब भी चीन ने ऑस्ट्रेलिया को ऐसी घुट्टी पिलाई थी कि उसने मालाबार से अपने हाथ खींच लिये थे। इस बार ऑस्ट्रेलिया ने कुछ हिम्मत जुटाई है लेकिन चीन ने जापान पर डोरे डालने शुरू कर दिये हैं जिससे जापान कुछ नरम पड़ता दिखने लगा है। 

उधर, काफी कुछ अमेरिका के भावी राष्ट्रपति पर भी निर्भर करता है। अमेरिका में यदि डेमोक्रेट जो बाइडन की सरकार बनती है, जिसकी काफी संभावनाएं नजर आ रही हैं तो देखना होगा कि अमेरिकी चुनाव प्रचार के दौरान चीन के ख़िलाफ़ प्रखर होकर बोलने वाले बाइडन चीन विरोध को किस हद तक आगे ले जाते हैं। 

देखना होगा कि जो बाइडन चीन विरोध को अमेरिकी हितों तक ही सीमित रखते हैं या फिर भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान की सुरक्षा और आर्थिक चिंताओं के अनुरुप मालाबार में अपनी साझेदारी और हिस्सेदारी को मजबूत करने की पहल करते हैं।

नया सैन्य गठजोड़ 

मालाबार के चारों साझेदार देशों के विदेश मंत्री चतुर्पक्षीय गुट या क्वाड के तहत गत छह अक्टूबर को तोक्यो में इकट्ठा हुए थे जिसके बाद चारों देशों की नौसेनाओं का मालाबार के झंडे तले साथ होने का फैसला कोविड बाद की दुनिया में नये सामरिक समीकरण के बनने की नींव डालने वाला साबित हो सकता है। वास्तव में हिंद महासागर में चार देशों का यह सैन्य मिलन एक नये सैन्य गठजोड़ की संभावनाएं पैदा करता है।

इसीलिये मालाबार साझा नौसैनिक अभ्यास के शुरू होने के साथ ही चीन के सामरिक हलकों में इसे लेकर तीखी टिप्पणियां की जा रही हैं, जो चीनी हलकों में इसे लेकर पैदा हुई चिंता का सूचक हैं। 

 - Satya Hindi

विस्तारवाद में जुटा है चीन।

चीन की हेकड़ी

चीन को समझ में आ रहा है कि उसकी बढ़ती सैन्य विस्तारवादी नीतियों के ख़िलाफ़ चारों देश एकजुट हो रहे हैं। इसलिये चीनी विदेश मंत्रालय ने मालाबार के शुरू होने पर यह उम्मीद जाहिर की है कि मालाबार अभ्यास क्षेत्रीय शांति के अनुकुल होगा न कि इसके ख़िलाफ़। चीन के यह कहने का यही अर्थ है कि चारों देश चीन को सागरीय चुनौती देकर शांति भंग नहीं करें।

कई देश चिंतित

चीन ने हाल में जिस तरह दक्षिण चीन सागर में अपनी समर नीति को धारदार बनाया है उसकी वजह से न केवल अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत परेशान हैं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के छोटे देश भी चिंतित हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था भी  काफी हद तक चीन से जुड़ी है लेकिन वियतनाम, सिंगापुर को छोड़कर दक्षिण पूर्व एशिया के देश चीन के ख़िलाफ़ खुल कर खड़ा होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, हालांकि इंडोनेशिया, फिलीपींस के इस गठजोड़ का साथी बनने की संभावना है।

भारत के नजरिये से विशाखापतनम के समुद्री इलाक़े में शुरू हुआ यह चतुर्पक्षीय साझा अभ्यास चीन के लिये विशेष संदेश है और उसके साथ चल रही सैन्य तनातनी के बीच भारत का मनोबल बढ़ाने वाला है।

चीन ने पहले ही इस नये उभरते सैन्य गठजोड़ को एशिया के नाटो की संज्ञा दी है जिसके बारे में सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मुख्यालय अंडमान एंव निकोबार में स्थापित हो सकता है। हालांकि ऐसा कोई आधिकारिक प्रस्ताव किसी देश ने नहीं रखा है लेकिन मलक्का जलडमरु मध्य के काफी नजदीक होने की वजह से अंडमान निकोबार को मालाबार सैन्य गठजोड़  का मुख्यालय बनाना तार्किक लगता है। 

देखिए, इस विषय पर वीडियो- 

यह विचार भविष्य में ठोस आकार तभी ले सकता है जब भारतीय रक्षा कर्णधारों को यह आकलन होगा कि चीन की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिये बाकी देश भविष्य में ढीले तो नहीं पड़ जाएंगे।

सामरिक हलकों में सवाल यही बना रहेगा कि मालाबार केवल सालाना नौसैनिक मिलन तक ही सीमित रहेगा या आपसी गठजोड़ का अटूट रिश्ता स्थापित करने के लिये चारों देश कोई ढांचा भी खड़ा करेंगे।

हालांकि चीन की शंका के अनुरुप इसे एशियाई नाटो के तौर पर विकसित करना तो उचित नहीं होगा लेकिन चारों देश इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके युद्धपोत सामूहिक तौर पर न केवल हिंद महासागर में तालमेल से गश्ती करने की कोई योजना अमल में लाएं बल्कि दक्षिण चीन सागर में भी चीन की विस्तारवादी नीतियों को चुनौती देने के लिये साझा गश्ती करें।  

दो साल पहले ही भारत, जापान और अमेरिका के युद्धपोतों ने दक्षिण चीन सागर में साझा गश्ती कर चीन को भड़काया था। चारों देशों का हिंद महासागर के इलाके में इस तरह साथ दिखना तो चीन के लिये उतना चिंताजनक नहीं होगा जितना दक्षिण चीन सागर में चारों देशों का साथ-साथ चलना।

पिछले साल मई के मध्य में ही चारों देशों ने फिलीपींस को साथ लेकर दक्षिण चीन सागर में एक साझा अभ्यास आयोजित किया था जिसमें भारत की भागीदारी ने सामरिक हलकों का ध्यान आकर्षित किया था।

चीन ने ठोका दावा 

चीन को चारों देशों के एक साथ इकट्ठा होने पर तब परेशानी होगी जब चारों देश सुनियोजित तरीके से दक्षिण चीन सागर की साझा गश्ती करने लगेंगे। चीन ने दक्षिण चीन सागर के तीन चौथाई इलाके पर अपना दावा ठोका हुआ है। उसने इस सागर में कुछ कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर अपनी सागरीय सीमा का विस्तार भी कर लिया है, जहां के आसपास  के इलाके में अमेरिका ने इसी साल अपने दो विमानवाहक पोत और समुद्री टोही विमान भेजे थे तब चीन ने अमेरिका को आगाह किया था।

वास्तव में चीन की समुद्री दादागिरी को चुनौती देने के लिये चारों देशों का एक मंच पर संगठित होना चीन के लिये काफी चिंताजनक साबित हो सकता है। लेकिन इसके लिये चारों देशों को एक ठोस कार्ययोजना पेश कर उस पर अमल करने और अपने-अपने देशों में इस मसले पर राजनीतिक आम राय विकसित कर राष्ट्रीय संकल्प का इजहार कर आगे बढ़ना होगा।

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