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अंतरिक्ष में उम्मीदें! चाँद पर फिर उतरने की होड़ क्यों है?

अंतरिक्ष में उम्मीदें! चाँद पर फिर उतरने की होड़ क्यों है?

हाल ही में चीन की स्पेस एजेंसी ‘सीएनएसए’ ने ‘चांग ए-5’ नामक एक स्पसेक्राफ्ट चाँद की ओर भेजा है। इस 20-25 दिवसीय मिशन के तहत चीन चाँद पर से मिट्टी और चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करके धरती पर लाएगा।

खोज करना हम इंसानों की फितरत है। हम हमेशा से ही अपने चारों ओर की दुनिया को जानने-समझने के लिए लालायित रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ शुरुआत में होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव headlin एफ्रो-एशियाई भू-भाग में ही रहते थे। तो सवाल यह उठता है कि फिर कालांतर में हम इंसान अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और हवाई जैसे सुदूर द्वीपों तक कैसे पहुँचे 

आज से क़रीब 45,000 साल पहले शुरुआती मनुष्य ऑस्ट्रेलिया पहुँचे। ऑस्ट्रेलिया तक पहुँचने के लिए इंसानों ने बगैर किसी रक्षा तकनीक के सैकड़ों किलोमीटर के कई समुद्री चैनलों को पार किया। आख़िर क्यों जान हथेली पर रखकर इंसान ने समुद्र की विकराल लहरों से अठखेलियाँ करने की जुर्रत की इसका संक्षिप्त और सटीक जवाब है- मानव की जिज्ञासा या उत्सुकता और अपने चारों ओर की प्रकृति को जानने-समझने की ललक या स्थानांतरण और नई दुनिया बसाने की चाहत।

ऑस्ट्रेलिया की इस यात्रा के बाद मानवता की दूसरी सबसे बड़ी घटना थी, अपोलो-11 द्वारा इंसानों का चाँद पर क़दम रखना।

बीसवीं शताब्दी तक हम सोचते थे कि हम बहुत सुरक्षित जगह पर रह रहे हैं, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। मानव जाति के लुप्त होने के ख़तरे चिंताजनक रूप से बहुत अधिक और बहुत तरह से बढ़ गए हैं। महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग यह कहकर धरती से रुखसत हो चुके हैं कि महज 200 वर्षों के भीतर मानव जाति का अस्तित्व हमेशा के लिए ख़त्म हो सकता है और इस संकट का एक ही समाधान है कि हम अंतरिक्ष में कॉलोनियाँ बसाएँ। 

इसलिए अब अंतरिक्ष अन्वेषण महज रोमांच और जिज्ञासा का विषय न होकर, असलियत में यह आने वाली पीढ़ी और मानव जाति के वजूद को बचाए रखने के लिए हमारा कर्तव्य है।

धरती-चाँद की सृष्टि होने के समय से ही सूरज की प्रचंड किरणों को सोखकर चांद उसे शीतलता में बदलकर दूधिया चांदनी पूरी धरती पर बिखेरता रहा है। रात के टिमटिमाते तारों भरे अनंत आकाश में चाँद से सुंदर कुछ नहीं होता। इसलिए चाँद सभ्यता के उदय काल से ही मानव की कल्पना को हमेशा से रोमांचित करता रहा है।

दुनिया के लगभग सभी भाषाओं के कवियों ने चंद्रमा की पूर्णिमा की चाँदनी वाले मनोहरी रूप पर अपनी-अपनी तरह से काव्य-सृष्टि की है। तब भला आम आदमी चाँद और उसकी चाँदनी का मुरीद क्यों न हो!

हाल ही में चीन की स्पेस एजेंसी ‘सीएनएसए’ ने ‘चांग ए-5’ नामक एक स्पसेक्राफ्ट चाँद की ओर भेजा है। इस 20-25 दिवसीय मिशन के तहत चीन चाँद पर से मिट्टी और चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करके धरती पर लाएगा। चीन के मून सैंपल मिशन से ठीक पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की प्रत्यक्ष पुष्टि का दावा किया था और नासा ने अपने आर्टेमिस मून मिशन की रूपरेखा भी प्रकाशित की थी, जिसके अंतर्गत साल 2024 तक इंसान को चंद्रमा पर दुबारा भेजने की योजना का खुलासा किया था। हालाँकि इस मिशन पर काम कई दशकों पहले स्पेस लॉंच सिस्टम और ओरियन कैपस्यूल के निर्माण के साथ शुरू हुआ था और फ़िलहाल यह अपने अंतिम दौर में है। 

48 साल बाद नासा का मिशन

आर्टेमिस मिशन के ज़रिए नासा इंसानों को क़रीब 48 सालों बाद फिर एक बार चाँद पर उतारने की योजना बना रहा है। यह मिशन इस दशक का सबसे ख़ास और महत्वपूर्ण मिशन होने जा रहा है जोकि अन्तरिक्ष अन्वेषण (स्पेस एक्सप्लोरेशन) के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा। भले ही यह मिशन चाँद से शुरू होगा पर यह भविष्य में प्रस्तावित मंगल अभियान (मार्स मिशन) और दूसरे अन्य अन्तरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

अब से क़रीब 51 साल पहले 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा पर क़दम रखा था, तब उन्होंने कहा था कि ‘एक आदमी का यह छोटा-सा क़दम मानवता के लिए एक ऊँची छलांग है।’

अपोलो मिशन के तहत अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चाँद की ओर कुल नौ अंतरिक्ष यान भेजे और छह बार इंसान को चाँद पर उतारा।

दरअसल, अपोलो मिशन कोई वैज्ञानिक मिशन नहीं था, इसका मुख्य उद्देश्य राजनैतिक था, और वो था- सोवियत संघ को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में पछाड़ना। ग़ौरतलब है कि अपोलो मिशन के अंतर्गत गए लगभग सभी चंद्रयात्री सैनिक थे न कि वैज्ञानिक, सिर्फ़ एक वैज्ञानिक हैरिसन श्मिट को अपोलो-17 द्वारा चाँद पर जाने का मौक़ा मिला था और वे चाँद पर गए पहले और आख़िरी वैज्ञानिक हैं।

अपोलो मिशन ख़त्म होने के चार दशक बाद तक चंद्र अभियानों के प्रति एक बेरुखी सी दिखाई दी थी। मगर चांद की चाहत दुबारा बढ़ रही है। बीता साल चंद्र अभियानों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण रहा। 16 जुलाई,  2019 को मनुष्य के चाँद पर पहुँचने की पचासवीं सालगिरह थी। जनवरी 2019 में एक चीनी अंतरिक्ष यान ‘चांग ई-4’ ने एक छोटे से रोबोटिक रोवर के ज़रिए चाँद की सुदूरस्थ सतह पर उतरकर इतिहास रचा। भारत ने भी अपने महत्वाकांक्षी चंद्र अभियान के तहत चंद्रयान-2 को चांद की ओर भेजा था हालाँकि उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

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अंतरिक्ष में हमारा सबसे नज़दीकी पड़ोसी चाँद प्राचीन काल से ही मानव जाति की जिज्ञासा का विषय रहा है। पिछली सदी के पूर्वार्ध तक हम अपनी चंद्र जिज्ञासा को दूरबीन से ली गई तसवीरों से ही शांत करते थे। पहली बार साल 1959 में रूसी (तत्कालीन सोवियत संघ) अंतरिक्ष यान ‘लूना-1’ चंद्रमा के क़रीब पहुँचने में कामयाब रहा। इसके बाद रूसी यान ‘लूना-2’ पहली बार चंद्रमा की सतह पर उतरा। सोवियत संघ ने 1959 से लेकर 1966 तक एक के बाद एक कई मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर उतारे।

शीतयुद्ध: अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध जब अपने उत्कर्ष पर था, तभी 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में पहुँचाकर अमेरिका से बाज़ी मार ली। इससे अमेरिकी राष्ट्र के अहं तथा गौरव पर कहीं न कहीं चोट पहुँची थी। 25 मई 1961 को प्रसारित तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने अपने प्रसिद्ध ‘स्टेट ऑफ़ द यूनियन’ संदेश में कहा कि ‘यह मेरा विश्वास है कि (अब) राष्ट्र को इस दशक की समाप्ति से पहले इंसान को चंद्रमा पर उतारने तथा उसे सुरक्षित पृथ्वी तक वापस लाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संकल्प कर लेना चाहिए।’

इसके बाद क्या था! अमेरिका ने अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए अपने अकूत आर्थिक और वैज्ञानिक संसाधन झोंक दिए। आख़िरकार नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा की सतह पर क़दम रखने वाले पहले इंसान के रूप में इतिहास में दर्ज हुए।

अपोलो मिशन के ज़रिए 12 इंसानों ने चंद्रमा पर चलने का गौरव प्राप्त किया, जबकि 10 को उसकी कक्षा में चक्कर लगाने का मौक़ा मिला। शीतयुद्ध की राजनयिक, सैन्य विवशताओं और मिशन के बेहद खर्चीला होने के कारण अपोलो-17 के बाद इसे समाप्त कर दिया गया। तब से लेकर लगभग आधी सदी तक अंतरिक्ष कार्यक्रमों को मंजूरी देने वाले नियंताओं की आँख से मानो चाँद ओझल ही रहा। 

मगर आज चाँद पर पहुँचने के लिए जिस तरह से विभिन्न देशों में होड़ लगती हुई दिखाई दे रही है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि मानो चाँद फिर से निकल रहा है।

इसरो को चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक विफलता ने इसके उन्नत संस्करण चंद्रयान-3 के लिए नए जोश के साथ प्रेरित किया है। चीन 2024 तक चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री उतारने की तैयारी कर रहा है। रूस 2030 तक चांद पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने की तैयारी में है। यही नहीं, कई निजी कंपनियाँ चांद पर उपकरण पहुँचाने और प्रयोगों को गति देने के उद्देश्य से नासा का ठेका हासिल करने की कतार में खड़ी हैं।

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फ़ोटो साभार: इसरो

इसका मुख्य कारण है चाँद का धरती के नज़दीक होना। वहाँ तक पहुँचने के लिए तीन लाख चौरासी हज़ार किलोमीटर की दूरी सिर्फ़ तीन दिन में पूरी की जा सकती है। चाँद से धरती पर रेडियो कम्यूनिकेशन स्थापित करने में महज एक से दो सेकंड का समय लगता है। सवाल है कि बीते पचास सालों में किसी देश ने चाँद पर पहुँचने के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया, तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हें वहाँ जाने की दुबारा ज़रूरत महसूस होने लगी है

इसके लिए अलग-अलग देशों के पास अपनी-अपनी वजहें हैं। मसलन, भारत के लिए चंद्र अभियान ख़ुद को तकनीकी तौर पर उत्कृष्ट दिखाने का सुनहरा मौक़ा होगा। चीन तकनीक के स्तर पर ख़ुद को ताक़तवर दिखाकर महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ जाना चाहता है। अमेरिका के लिए चाँद पर जाना मंगल पर पहुँचने से पहले का एक पड़ाव भर है। 

लेकिन चंद्रमा की नई होड़ के पीछे सबसे बड़ा कारण वहाँ पानी मिलने की पुष्टि है। हालिया अन्वेषणों और अध्ययनों में चाँद के ध्रुवीय गड्ढों में बर्फ़ होने की उम्मीद जताई गई है। यह वहाँ जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पेयजल का दुर्लभ स्रोत तो होगा ही, सोलर ऊर्जा के ज़रिए पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीज़न में विखंडित भी किया जा सकता है। ऑक्सीज़न साँस लेने के लिए हवा मुहैया करा सकती है, जबकि हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

चाँद पर भविष्य में एक रिफ्यूलिंग स्टेशन बनाया जा सकता है, जहाँ रुककर अपने टैंक भरकर हमारे अंतरिक्ष यान सौरमंडल के लंबे अभियानों में आगे निकल सकते हैं।

विभिन्न देशों की सरकारों की नज़र चंद्रमा के कई दुर्लभ खनिजों जैसे सोने, चांदी, टाइटेनियम के अलावा उससे टकराने वाले क्षुद्र ग्रहों के मलबों की ओर भी है, मगर वैज्ञानिकों की विशेष रुचि चंद्रमा के हीलियम-3 के भंडार पर है। हीलियम-3 धरती की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ इसके क़ारोबार में लगे लोगों को ख़रबों डॉलर भी दिला सकता है।

भविष्य के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टरों में इस्तेमाल के लिहाज़ से यह सबसे बेहतरीन और साफ़-सुथरा ईंधन है। 

जाहिर है, इस दशक में चाँद इंसानी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनेगा क्योंकि वहाँ खनन से लेकर होटल बनाने और मानव बस्तियाँ बसाने तक की योजनाओं पर काम चल रहा है। देखते हैं, चंद्रमा की यह नई दौड़ क्या नतीजे लाती है। वैसे, नतीजे के रूप में आने वाले वर्षों में चाँद के कई चौंकाने वाले रहस्यों पर से परदा उठे तो आश्चर्य नहीं।

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