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ग़लतफहमी में न रहें, बच्चों से भी कोरोना संक्रमण फैलता है: शोध

ग़लतफहमी में न रहें, बच्चों से भी कोरोना संक्रमण फैलता है: शोध

अब तक जिन रिपोर्टों में यह कहा जा रहा था कि बच्चों से कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता है, यह बात अब एक शोध से ग़लत साबित हुई है। इस शोध के अनुसार, भारत में कोरोना संक्रमण बच्चों से भी उतना ही फैलता है।

अब तक जिन रिपोर्टों में यह कहा जा रहा था कि बच्चों से कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता है, यह बात अब एक शोध में ग़लत साबित हुई है। इस शोध के अनुसार, भारत में कोरोना संक्रमण बच्चों से भी उतना ही फैलता है। यह शोध प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे कोरोना संक्रमण को फैलाते हैं।

भारत में 85,000 कोरोना के मामलों और उनके संपर्क में आए 6 लाख मामलों पर एक अध्ययन की रिपोर्ट जर्नल ‘साइंस’ में प्रकाशित की गई है। इस पर ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक रिपोर्ट छापी है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले के महामारी विशेषज्ञ और इस शोध का नेतृत्व करने वाले डॉ. जोसेफ लेवार्ड ने कहा, ‘दावा है कि बच्चों की संक्रमण प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है, निश्चित रूप से यह सही नहीं है। यह ठीक है कि बड़ी संख्या में बच्चों का कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग डेटा नहीं है, लेकिन जो इसमें हैं वे निश्चित रूप से संक्रमण फैला रहे हैं।’

यह शोध काफ़ी अहम चिंताएँ दूर करता है। पहले ऐसी रिपोर्टें आती रही थीं कि कोरोना वायरस लाखों लोगों की जान ले चुका है, लेकिन इसने बच्चों को शिकार नहीं बनाया है। इसलिए पहले तो लोगों में एक धारणा यह बन गई कि बच्चों को कोरोना से ख़तरा नहीं है और कई लोग तो यह मान बैठे कि बच्चों को कोरोना संक्रमण ही नहीं होगा। लेकिन ऐसा नहीं था। 

जब यह धारणा बनने लगी थी तभी ऐसी रिपोर्टें भी आने लगी थीं कि कोरोना संक्रमण से बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं। हालाँकि, बच्चे उस पैमाने पर संक्रमित नहीं हो रहे थे जितने बड़े पैमाने पर बड़े या बुजुर्ग। इस बारे में तो चीन में शोध भी किया गया था। चीन ने 20 फ़रवरी तक क़रीब 72,314 कोरोना संक्रमितों का डाटा जुटाया था जिसमें सिर्फ़ 2 फ़ीसदी लोग 19 साल से कम उम्र के थे।

अप्रैल महीने तक जितने भी शोध हुए उनमें यही संकेत मिले कि वयस्कों की तुलना में बच्चों पर इस वायरस का असर कम हो रहा था। उनमें वायरस के लक्षण भी कम ही उजागर हुए। ऐसा शायद इसलिए हो रहा था कि बच्चों में कोरोना संक्रमण के लक्षण अपेक्षाकृत कम दिखते हैं। कोरोना वायरस की शुरुआत जहाँ से हुई उस देश चीन में कराए गए एक शोध से पता चला था कि जिन 2,143 बच्चों में कोरोना की पुष्टि हो चुकी थी उनमें से क़रीब 94 फ़ीसदी बिना किसी लक्षण, या हल्के और मध्यम दर्जे के लक्षणों वाले थे।

अब जो ताज़ा शोध हुआ है वह आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु पर केंद्रित था। इन दोनों राज्यों में क़रीब 12.8 करोड़ की जनसंख्या है। देश में सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामलों वाले पाँच राज्यों में से दो राज्य ये ही हैं। इन दोनों राज्यों में देश में सबसे बढ़िया स्वास्थ्य व्यवस्था भी है।

शोध में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि उम्र और लिंग के हिसाब से उनके संपर्क में आए किन लोगों में संक्रमण फैला। इसमें पता चला कि वे अपनी उम्र के लोगों को ज़्यादा संक्रमित करते हैं। ऐसा इसलिए है कि लोग आमतौर पर अपनी उम्र के लोगों या समूहों के साथ घुलते-मिलते हैं। 

शोध में स्कूल की उम्र के आयु वर्ग के 5,300 से अधिक बच्चों ने संपर्क में आए 2,508 लोगों को संक्रमित किया था। लेकिन इसकी संभावना अधिक थी कि वे अपनी उम्र के ही बच्चों में संक्रमण फैला रहे थे। चूँकि शोधकर्ता संक्रमित बच्चों के संपर्क में आए सभी लोगों से संपर्क करने में कामयाब नहीं रहे इसलिए यह पता नहीं लगा पाए कि बच्चे व्यस्कों में कोरोना संक्रमण किस हद तक फैलाते हैं। 

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शोधकर्ताओं ने पाया कि अध्ययन में 71 प्रतिशत लोगों ने वायरस को किसी और में नहीं फैलाया था; इसके बजाय सिर्फ़ 5 प्रतिशत लोग संपर्क ट्रेसिंग द्वारा पाए गए 80 प्रतिशत संक्रमणों के लिए ज़िम्मेदार थे।

कोरोना महामारी के संबंध में अब तक के सबसे बड़े इस विश्लेषण में पाया गया है कि विकसित देशों की तुलना में भारत में 40 वर्ष से 69 वर्ष तक की आयुवर्ग में कोरोना वायरस संक्रमण के अधिक मामले सामने आए हैं और मृतकों में भी इसी आयुवर्ग के अधिक लोग शामिल हैं। 

दोनों राज्यों में कोरोना के 85 हज़ार मामलों के संपर्क में आए तीन करोड़ लोगों तक पहुँचा गया। इसमें से 5 लाख 75 हज़ार 71 लोगों में बीमारी के संक्रमण के तरीक़े का विश्लेषण किया गया। 

वैज्ञानिकों ने आँकड़ों के आधार पर बताया कि अधिक आयु वाले देशों की तुलना में दोनों भारतीय राज्यों में युवकों में संक्रमण के अधिक मामले सामने आए हैं। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि ऐसा नवजात से 14 वर्ष के बच्चों एवं 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में अधिक देखा गया है। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि दोनों राज्यों में मरीज़ मौत से पहले अस्पताल में औसतन पाँच दिन रहे, जबकि अमेरिका में मरीज़ मौत से पहले क़रीब 13 दिन अस्पताल में रहे।

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