अमेरिका: इंटरनेट पर बच्चों के यौन उत्पीड़न-पोर्न की दो करोड़ रिपोर्ट
क्या आपके बच्चे यौन शोषण से सुरक्षित हैं कहीं कोई क़रीबी या अनजान व्यक्ति ही उसकी ज़िंदगी से खिलवाड़ तो नहीं कर रहा कहीं अश्लील वीडियो या तसवीरें तो नहीं बनाई जा रही हैं
अमेरिका में बच्चों से यौन दुराचार और इससे जुड़ी तसवीरों व वीडियो की इंटरनेट पर बाढ़ आई है। 1998 में जहाँ सिर्फ़ 3000 ऐसी रिपोर्टें थीं वहीं पिछले साल क़रीब दो करोड़ पहुँच गईं। पीड़ित बच्चे 3 से 4 साल तक के बच्चे भी हैं। ऐसा करने वाले वे लोग हैं जो बच्चे के सगे-संबंधी हैं और अनजान भी। वे अश्लील तसवीरें और वीडियो बना लेते हैं। यानी साफ़-साफ़ कहें तो ये ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी’ के मामले हैं। बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले भारत में भी कम नहीं हैं। क्या अमेरिका की यह रिपोर्ट भारत और यहाँ के अभिभावकों के लिए एक चेतावनी या सबक नहीं होना चाहिए
अमेरिका में बच्चों के साथ होती ऐसी ज़्यादती पर 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने एक रिपोर्ट छापी है। काफ़ी लंबी-चौड़ी इस रिपोर्ट में इसका ज़िक्र है कि काफ़ी तेज़ी से फैल रहे इंटरनेट और तकनीक के इस दौर में कैसे ज़्यादा बच्चे शिकार बनते जा रहे हैं और शिकार बनाने वाले लोग पकड़े नहीं जा रहे हैं।
'द न्यूयॉर्क टाइम्स' के अनुसार अमेरिका में 1998 में बच्चों से यौन शोषण वाली तसवीरों की तीन हज़ार रिपोर्टें आई थीं। एक दशक बाद सालाना एक लाख ऐसे मामले आने लगे। 2014 में यह संख्या बढ़कर दस लाख हो गई। पिछले साल यह तादाद 1 करोड़ 84 लाख पहुँच गई।
पिछले साल की रिपोर्टों की यह संख्या अब तक दर्ज सभी मामलों की एक तिहाई है। इन रिपोर्टों में 4 करोड़ 50 तसवीरें और वीडियो बच्चों के यौन से दुराचार से जुड़े थे। ऐसी स्थिति तब है जब वहाँ इसे रोकने के लिए तमाम तरह के क़ानून हैं और एजेंसियाँ भी हैं।
बच्चों के साथ ऐसे मामले बड़े ख़तरनाक संकेत देते हैं। बच्चों को असह्य प्रताड़ना दी जाती है और उसका वीडियो भी बनाया जाता है। ऐसे मामलों को बढ़ने के बाद अमेरिका में ऐसे क़ानून बनाए गए। क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों, क़ानून बनाने वाले सीनेटर्स और टेक्नोलॉजी से जुड़ी कंपनियों को लगाया गया। 2008 में इस पर एक बिल पास किया गया। लेकिन ऐसे मामलों में कमी नहीं आई। 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने इस पर भी गहन पड़ताल कर लिखा है कि इसमें कई कमियाँ हैं। ऐसे अपराध करने वालों पर कार्रवाई इसलिए भी नहीं हो पाती है क्योंकि ऐसे लोग पकड़ में ही नहीं आ पाते। दरअसल, ऐसे पोर्नोग्राफ़ी वीडियो या तसवीरों को डालने के लिए इन्क्रीप्शन सॉफ़्टवेयर, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क और डार्क वेब का प्रयोग कर ऐसे अपराधी अपनी पहचान छुपा लेते हैं। 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट के इस तरह की तकनीकों के इस्तेमाल के कारण भी अपराधियों को पकड़ पाना मुश्किल हो जाता है।
दस हज़ार ऐसी रिपोर्टों के अध्ययन के बाद तैयार की गई ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसे ही एक मामले में ओहियो में पकड़े गए एक व्यक्ति के कम्प्यूटर पर बच्चों के वीडियो मिले थे। 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अदालत के दस्तावेज़ के आधार पर रिपोर्ट दी है कि इस मामले में पता चला कि वह डार्क वेब पर एक वेबसाइट चलवाता था और उसके कम्प्यूटर पर ऐसे तीस लाख वीडियो और फ़ोटो थे। वह वेबसाइट अब बंद हो चुकी है लेकिन जब वह सक्रिय थी तब उसके क़रीब 30 हज़ार सदस्य थे और वे पोर्नोग्राफ़ी से जुड़े वीडियो और तसवीरें शेयर करते थे।
ऐसी साइटों पर जो सदस्य वीडियो अपलोड करते हैं उनको इसके बदले मोटी रक़म मिलती है। ऐसे लोग या तो अपने सगे-संबंधियों या पड़ोसियों के बच्चों के साथ ऐसी हरकत करते हैं या फिर किडनैप कर ऐसा करते हैं।
अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मामले तो ऐसे होते हैं जिसमें बच्चों को टॉफ़ी या चॉकलेट से लुभाकर उनका यौन उत्पीड़न किया जाता है और फिर वीडियो बना लिया जाता है। कई बार जूस या अन्य ऐसे पेय पदार्थ बेहोश करने वाली दवा मिलाकर पिला दिया जाता है और फिर वीडियो बना लिया जाता है।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट भारत, यहाँ की एजेंसियों और सबसे ज़्यादा बच्चों को अभिभावकों के लिए सबक होना चाहिए। अमेरिका जैसे देश में तो ऐसी रिपोर्टें दर्ज भी हो जाती हैं, लेकिन भारत में सामाजिक कारणों से रिपोर्टें दर्ज भी नहीं कराई जाती हैं। बच्चों के पोर्न के मामले शायद ही कहीं आ पाते हैं। लेकिन भारत में बच्चों की यौन हिंसा की जो रिपोर्टें आती रही हैं वह अमेरिका से इस मामले में काफ़ी समान हैं कि यहाँ भी अधिकतर लोग अपने रिश्तेदार होते हैं या जान-पहचान वाले। कई ऐसी रिपोर्टें रही हैं कि क़रीब 90 फ़ीसदी मामले में बच्चों से यौन शोषण करने वाले उसके रिश्तेदार या जान-पहचान वाले होते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, रोज़ाना देश में 133 बच्चे बलात्कार और हत्या के अपराध का शिकार हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, देश भर में हर रोज़ क़रीब 180 बच्चे लापता हो जाते हैं।
देश में बच्चों के बारे में ये रिपोर्टें काफ़ी ख़तरनाक हैं। यह अभिभावकों को चेतने के लिए तो काफ़ी हैं।