पेडिया गांव में 10 मई को एनकाउंटर में 12 माओवादियों को मारने का दावा किया गया। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि मारे गए लोगों के पास कोई हथियार नहीं थे। वे लोग तेंदूपत्ता बीनने का काम करते थे। इंडियन एक्सप्रेस ने गांव में पहुंचकर इस एनकाउंटर की जानकारी हासिल की। पेडिया गांव तक पहुंचना आसाना नहीं है। इसी वजह से और भी सवाल उठ रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पेडिया गांव बीजापुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है। यह गांव बिल्कुल जंगल के अंदर है। गांव तक पहुंचने के लिए आपको जंगल के रास्ते में पांच पुलिस चेक पोस्ट को पार करना पड़ता है। गांव में किसी भी तरह की मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। यहां की सबसे नजदीकी मार्केट गंगालूर 30 किलोमीटर की दूरी पर है। सुरक्षा बलों का कहना है कि मारे गए कथित माओवादियों में 6 प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य थे। बाकी 6 लोग आरपीसी (रिवोल्यूशनरी पीपुल्स कमेटी) के सदस्य थे। इन सभी पर इनाम था।
पुलिस ने सानू हवलम, ओयम भीमा, दुला तामो और जोगा बारसे को माओवादी बताया है। इंडियन एक्सप्रेस को इन कथित माओवादी परिवारों के लोगों ने बताया कि जब गांव में पुलिस पहुंची तो वो तेंदूपत्ता तोड़ रहे थे। तेंदूपत्ते से ही बीड़ी बनाई जाती है। परिवार के लोगों का कहना है कि सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें जंगल में घेर लिया। कुछ महिलाएं जो आसपास थीं तो यह देखने के लिए पहुंचीं कि पुलिस ऐसा क्यों कर रही है, लेकिन उन्हें भगा दिया गया। यह ब्यौरा उन लोगों ने भी दिया, जो कथित माओवादियों के साथ पकड़े गए थे लेकिन अगले दिन उन्हें छोड़ दिया गया था। यानी महिलाओं द्वारा दी गई जानकारी उन पुरुषों की जानकारी से मिल रही थी, जिन्हें सुरक्षा बलों ने छोड़ दिया था।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ओयम भीम के पिता मंगू ओयम ने बताया कि ''सुरक्षा बलों ने उन्हें एक कोने में खड़ा कर दिया। जैसे ही उनमें से एक ने कहा कि वे जनता के आदमी हैं, उसे गोली मार दी गई। कुछ को पकड़ लिया गया और पुलिस उन्हें अपने साथ ले गई। जब वे लोग शनिवार को लौटे तभी सभी को पता चला कि कौन-कौन मारा गया था।'' भीमा के परिवार में पत्नी और तीन महीने का बेटा है।
40 साल के शानू हवलम के परिवार में मां, पत्नी और 6 बच्चे हैं। उनकी मां सकुले ने बताया कि मेरा बेटा शानू हवलम सुन या बोल नहीं सकता था। पहले भी पुलिस उसे बुलाकर ले जाती थी और छोड़ देती थी। एक बार मैंने जब आपत्ति की थी तो मुझे पुलिस ने पीटा था। उनका बेटा गंगालूर बाजार से राशन लाने हर हफ्ते जाता था। उसके पास कोई हथियार नहीं था। जब पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती थी तो गोली क्यों मारी गई। शानू हवलम की पत्नी मंगली ने बताया कि उन्हें उनके पति के मारे जाने का पता अगले दिन लगा, वो भी तब जब पुलिस ने उनके फोटो जारी किए।
जोगा बारसे के भाई बारसे दुला ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कहा, ''मेरा भाई तेंदूपत्ता तोड़ने गया था। मुझे अगले दिन जारी फोटो से भाई की मौत के बारे में पता चला। वह शराबी था और बीमार रहता था। चूंकि वो हमारे साथ रह रहा था, इसलिए मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि वो किसी भी माओवादी ग्रुप का सदस्य नहीं था। मेरे भाई के पास कोई हथियार नहीं था।” जोगा बारसे के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं।
पुलिस की कहानी
पुलिस ने गांव वालों की सारी बातों का खंडन कर दिया। बीजापुर के एसपी ने गांव वालों के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि माओवादियों ने पहले हमारे दल पर गोलियां चलाईं और जवाबी कार्रवाई में वे लोग मारे गए। मारे गए लोगों की पहचान सरेंडर करने वाले बाकी नक्सलियों ने की। एसपी ने कहा- “अगर हम उन्हें मारना चाहते तो बाकी सारे लोगों को गिरफ्तार ही क्यों करते? जो लोग मारे गए उन्होंने पहले पुलिस पर गोलियां चलाईं। हमने वहां से कुछ वर्दियाँ भी बरामद की हैं जो उन्होंने पुलिस को देखकर बदल लीं थीं।”एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि पश्चिम बस्तर डिवीजन में पेडिया गांव काफी हद तक माओवादियों के नियंत्रण में है। यह उनका गढ़ है। इसके अलावा अबूझमाड़ और दक्षिण बस्तर भी उनके गढ़ हैं। अधिकारी का दावा है कि बीजापुर में लगभग 3,000 माओवादी काडर हैं, जिनमें से 600 के पास हथियार होने की सूचना है।