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अजीत जोगी की बहू ऋचा की एंट्री से मुश्किल में कौन?

अजीत जोगी की बहू ऋचा की एंट्री से मुश्किल में कौन?

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पहले ऋचा जोगी की राजनीति में एंट्री से खलबली क्यों मची है? अजीत जोगी की बहू या फ़िर उनकी पॉलिटिकल इंजीनियरिंग की वजह से?

छत्तीसगढ़ चुनाव में हर रोज़ नये समीकरण बन रहे हैं। कभी मायावती से तो कभी अजीत जोगी से। अब जोगी की बहू ऋचा जोगी की राजनीति में एंट्री ने खलबली मचा दी है। वह बहू तो हैं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ सुप्रीमो की, लेकिन बीएसपी में शामिल हो गईं हैं। हालांकि, इन दोनों दलों के बीच गठबंधन है इसलिए इनके बीच खटपट जैसी कोई बात नहीं है। तो इस सियासी स्क्रिप्ट का मतलब क्या है बीजेपी या कांग्रेस का खेल बनेगा या अजीत जोगी की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग चमकेगीराज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई रही है। लेकिन कांग्रेस से अलग होकर नयी पार्टी बनाने वाले अजीत जोगी ने इस समीकरण को बदल दिया। जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने जब बीएसपी के साथ गठबंधन किया तो उन्हें अगली विधानसभा के लिए किंगमेकर के तौर पर उभरने की संभावना जताई गई। बाद में उन्होंने अपने गठबंधन में सीपीआई को शामिल किया। अब बताया जा रहा है कि ऋचा जोगी की राजनीति में एंट्री की स्क्रिप्ट भी जोगी ने ही लिखी है। यहीं भी पढ़ें: कार्पोरेट के लिए पढ़ाई करने वाली ऋचा जोगी राजनीति में कैसे पहुंच गईंजोगी यहीं नहीं रुके। उन्होंने इसमें नई स्क्रिप्ट लिखना जारी रखा। ऋचा के बीएसपी में शामिल होने पर कहा गया था कि जोगी खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे पहले जोगी ने राजनांदगांव से चुनाव लड़ने का एलान किया था। 

अब फ़िर से अजीत जोगी ने मारवाही से विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। मारवाही से विधायक व उनके पुत्र अमित जोगी इस बार मनेंद्रगढ़ से अपनी दावेदारी करेंगे।

अब ऋचा के अकलतरा सीट से चुनाव लड़ने की संभावना है। अकलतरा सीट पर बीएसपी का काफी प्रभाव माना जाता है और 2008 में यह सीट बीएसपी ने जीती थी।

 - Satya Hindi

बीजेपी और कांग्रेस काे ऐसे आ सकती हैं मुश्किलें

बीएसपी का वोट प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव में 4.3 रहा था और अनुसूचित जाति इलाकों के 13 सीटों पर उसका वोट 13 प्रतिशत से अधिक था। तब बीएसपी अकेले चुनाव लड़ रही थी, लेकिन इस बार जनता कांग्रेस और बीएसपी का गठबंधन है। कांग्रेस के बागी नेता अजीत जोगी यदि कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध मारते हैं तो बीजेपी और कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।बीजेपी के लिए भी कम मुश्किल नहीं है। पार्टी से आदिवासी मतदाता छिटके हैं। यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में 29 आदिवासी सीटों में से सिर्फ़ 11 सीटें मिली थीं। हालांकि, बीजेपी अब आदिवासी वोट पाने के प्रयास में है। प्रदेश कांग्रेस का आदिवासी चेहरा रहे रामदयाल उइके काे बीजेपी ने अपने साथ जोड़ लिया है। इसने अनुसूचित जाति की सीटों पर अच्छे वाेट पाने वाले ‘छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच’ को भी अपने में विलय करा लिया है। 

तो कांग्रेस कहां ठहरती है इस सियासी रेस में

कांग्रेस को इस चुनाव से काफ़ी उम्मीदें हैं क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच 0.7 वोट प्रतिशत का अंतर रहा था। तब इसे 29 आदिवासी सीटों में से 18 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन इस बार पार्टी के बड़े नेता रहे और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी साथ नहीं हैं। फ़िलहाल पार्टी में कोई इस क़द का कोई चेहरा भी नहीं है। पार्टी का आदिवासी चेहरा रहे रामदयाल उइके इस बार साथ नहीं हैं। बीएसपी के साथ भी गठबंधन नहीं हो पाया। हालांकि, कांग्रेस आदिवासियों के अधिकारों की मांग उठाती रही है और पार्टी को उनसे वोट मिलने की काफ़ी उम्मीदें हैं। छत्तीसगढ़ के गठन से लेकर अब तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही टक्कर रही है। इस बार परिस्थितियां बदली हैं। लगातार 15 साल तक सत्ता में रही बीजेपी के ख़िलाफ़ एंटी इन्कंबेंसी है। कांग्रेस इसको भुना सकती है। लेकिन जनता कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन से मुक़ाबला त्रिकोणीय हो गया है। नये समीकरण में अजीत जोगी काफ़ी सक्रिए दिख रहे हैं। इनकी सक्रियता का कितना असर होगा, यह तो चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।

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