कटघरे में कवासी लखमा नहीं, कांग्रेस पार्टी है
छत्तीसगढ़ के एक लोकप्रिय आदिवासी नेता, और बस्तर से छह बार के विधायक रहे कवासी लखमा को कल ईडी ने भूपेश सरकार के वक्त के कथित शराब घोटाले में गिरफ्तार किया है। इस चर्चित शराब घोटाले में दो हजार करोड़ से अधिक के काले कारोबार का आरोप ईडी ने अदालत में लगाया है, और इस मामले में प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक दिग्गज अफसर और कारोबारी पहले से गिरफ्तार हैं। कवासी लखमा भूपेश सरकार में आबकारी मंत्री थे, और आबकारी विभाग की फाइलों पर वे बिना पढ़े दस्तखत करते थे क्योंकि वे पढऩा नहीं जानते, जाहिर तौर पर लिखना भी नहीं जानते, और सिर्फ दस्तखत करना जानते हैं।
ऐसे कवासी लखमा को कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने क्या सोचकर, या बहुत सोचकर आबकारी मंत्री बनाया था, और एक अनपढ़ आदिवासी उस कार्यकाल के लिए अब ईडी हिरासत में है, और गिरफ्तारी के बाद जेल पहुंचना महज वक्त की बात है। ईडी ने अदालत को बताया है कि पहले जिन बड़े अफसरों को गिरफ्तार किया गया है, उन्होंने कवासी लखमा को हर महीने दो करोड़ रूपए देने का बयान दिया है, और लखमा ने इसी रकम में से परिवार का एक बड़ा सा घर बनवाया है, और सुकमा में कांग्रेस भवन भी। कांग्रेस भवन का हिसाब कांग्रेस पार्टी जाने, लेकिन कभी चुनाव न हारने वाला यह आदिवासी विधायक ईडी के जाल में फंस चुका है, और इसे लेकर लोगों के मन में रंज भी है।
दरअसल छत्तीसगढ़ को बेहतर तरीके से जानने वाले लोगों के बीच दो हजार करोड़ के शराब घोटाले की चार्जशीट पर किसी को हैरानी नहीं है। प्रदेश में शराब के धंधे और तौर-तरीके को लाखों लोग जानते थे, उन्हें यह हैरानी जरूर हो सकती है कि ईडी कुल दो हजार करोड़ के घोटाले का केस बना पाई है। जिन लोगों की गिरफ्तारी अब तक शराब घोटाले में हुई है, उनमें से किसी की भी मासूमियत का कोई धोखा किसी को नहीं है, और सबको यह पता है कि ये लोग पांच बरस किस तरह से आबकारी विभाग चला रहे थे।
लोगों को यह भी उतनी ही अच्छी तरह मालूम था कि कवासी लखमा लिखना-पढऩा नहीं जानते, वे सिर्फ दस्तखत कर सकते हैं। ऐसे में आबकारी जैसा विभाग उन्हें देना, और फिर इतना बड़ा शराब घोटाला होना, इनमें कुछ भी मासूम नहीं था। अगर दो करोड़ रूपए महीने आबकारी मंत्री को दिए भी गए थे, तो हर महीने सैकड़ों करोड़ रूपए का घोटाला उनके मातहत विभाग में उनके दस्तखत से, या बिना दस्तखत के किया जा रहा था, और मंत्री को एक टुकड़ा डाल दिया जाता था।
यह शायद हिन्दुस्तान के संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ था कि किसी सदन में मंत्री ने अपने विभाग से जुड़े किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक सबसे भरोसे के, और ताकतवर मंत्री मो.अकबर ही पूरे पांच साल कवासी लखमा की जगह जवाब देते रहे। किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के लिए यह बात एक फिक्र की होनी चाहिए थी कि आबकारी जैसे बदनाम और विवादास्पद विभाग का मंत्री एक ऐसे सीधे-सादे, और अनपढ़ विधायक को बना दिया गया था जो कि खबरों में चारों तरफ बरसों से छाए रहने वाले इस विभाग पर कोई भी काबू नहीं पा सकता था।
बरसों से देश का मीडिया और ईडी की अदालत आबकारी घोटाले की खबरों से भरे पड़े थे, और कांग्रेस पार्टी, छत्तीसगढ़ का मंत्रिमंडल, विधानसभा, राज्यपाल, ये सारे के सारे मानो अनपढ़ बने हुए थे, इस विभाग का हर दारू दुकान पर दिखता घोटाला किसी को नहीं दिख रहा था। लोकतंत्र में यह देखना भी हैरानी की बात थी कि कांग्रेस मंत्रिमंडल के किसी सदस्य ने यह सवाल नहीं उठाया कि पढ़ न पाने वाले मंत्री से फाइलों पर दस्तखत कैसे कराए जा रहे हैं?
शपथ दिलाने वाले राज्यपाल ने यह नहीं पूछा कि कवासी लखमा मंत्री की जिम्मेदारी कैसे पूरी करेंगे, और अपने आपको देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कहने वाली कांग्रेस ने भी कभी आंख खोलकर यह नहीं देखा कि छत्तीसगढ़ से जिस आबकारी घोटाले की खबरें चारों तरफ उठ रही हैं, उस विभाग को कैसा मंत्री चला रहा है। कवासी लखमा खुद तो एक सीधे-सरल आदिवासी हैं, लेकिन उनके कंधे पर बंदूक रखकर जिन सारे लोगों ने यह शराब घोटाला किया है, उन नेताओं, और पार्टी को तो इसका जवाब देना होगा कि एक आदिवासी को इतना बदनाम करके जेल भिजवाने की सजा उनके कौन-कौन लोग पाएंगे?
लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक अनपढ़ नेता को इस तरह फंसा देने की सजा अदालत चाहे न दे सके, कांग्रेस पार्टी को तो देना ही चाहिए। और शायद इस पूरे दौर में राहुल गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष थे, उन्हें कुछ देर आईने के सामने खड़े होकर कवासी लखमा की गिरफ्तारी के पीछे अपनी जवाबदेही तय करनी चाहिए।
राहुल का ब्रिटेन की नामी यूनिवर्सिटी में पढऩा भला किस काम का अगर वे एक आदिवासी को फंसाने और जेल भिजवाने की साजिश के सक्रिय हिस्सेदार, या मूकदर्शक थे? लोगों को यह भी याद रखने की जरूरत है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कोषाध्यक्ष ईडी की गिरफ्तारी से बचने के लिए दो बरस से फरार हैं, उन्हें धरती निगल गई, या आसमान खा गया, अभी कुछ भी साफ नहीं है। परिवार वाला एक अरबपति कारोबारी बरसों से फरार है, और पार्टी के पास अपने इस कोषाध्यक्ष पर कहने के लिए कुछ भी नहीं है, लोकतंत्र में ऐसा कैसे हो सकता है कि अपने इतने बड़े, इतने प्रभावशाली और इतने संपन्न पदाधिकारी की फरारी पर पार्टी कुछ भी न कहे।
हमारी बातें कांग्रेस और पिछली सरकार के मुखिया भूपेश बघेल को तल्ख और असुविधाजनक लग सकती हैं, लेकिन कवासी लखमा तो इस हालत में भी नहीं हैं कि उनके साथ हुई साजिश और बेइंसाफी के खिलाफ एक मजबूत बयान लिख सकें या दे सकें, ऐसे में किसी न किसी को तो कवासी लखमा का यह मुद्दा उठाना ही है कि बड़े-बड़े नामी-गिरामी नेताओं, अफसरों, और उनकी गिरोहबंदी वाले कारोबारियों ने मिलकर खुद तो हजारों करोड़ कमाए ही, एक अनपढ़ आदिवासी को बुरी तरह फंसा दिया।
कांग्रेस नेताओं का यह तर्क किसी काम का नहीं है कि ईडी ने यह गिरफ्तारी पंचायत और म्युनिसिपल चुनावों को प्रभावित करने के लिए की है, यह कार्रवाई तो किसी भी तरह के चुनाव के बरसों पहले से चल रही है, और राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड सहित कितने ही नेताओं, अफसरों, और कारोबारियों के यहां विधानसभा चुनाव के बरसों पहले से छापे पड़ते आए हैं। लोकतंत्र में चुनाव तो चलते ही रहते हैं, और सरकारी एजेंसियों की कार्रवाईयां भी चलती रहती हैं। खुद भूपेश सरकार की अधिकतर जांच एजेंसियों के नामी-गिरामी केस सुप्रीम कोर्ट तक जाकर बदनीयत के पाए गए, और खारिज हुए हैं। इसलिए हर बात को चुनाव से जोडक़र देखना ठीक नहीं है।
छत्तीसगढ़ बुनियादी तौर पर एक आदिवासी राज्य है, और एक सबसे कामयाब, सबसे लोकप्रिय निर्वाचित जनप्रतिनिधि को इस तरह घेरकर फंसाना आसानी से नहीं लिया जाना चाहिए। इसके लिए कवासी लखमा की अपनी पार्टी के लोग जिम्मेदार हैं। लखमा खुद अपनी पार्टी के लोगों के खिलाफ सब कुछ जानते समझते हुए भी कुछ बोल नहीं पाएंगे, लेकिन आदिवासी समाज को इस बारे में कांग्रेस से जवाब लेना चाहिए, और कटघरे में खड़ा करना चाहिए।