क्या है चंद्रयान-3 मिशन का लक्ष्य; जानिए क्यों है यह खास
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा भेजा गया चंद्रयान-3 बुधवार शाम 6.04 बजे चांद की सतह पर उतर गया। इसके साथ ही भारत चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश हो गया।
दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 का उतरना खास है। यह इसलिए कि अब तक के पिछले मिशन चंद्रमा के भूमध्यरेखा क्षेत्र के आसपास उतरे हैं। इसमें उस अपोलो की लैंडिंग भी शामिल है जिसमें क्रू सदस्य भी शामिल थे। दक्षिणी ध्रुव गड्ढों और गहरी खाइयों वाला क्षेत्र है।
कुछ दिन पहले ही रूस का लूना-25 भी इसी दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ उतरने की कोशिश में था, लेकिन सफल नहीं हो सका। दरअसल, चंद्रमा के भूमध्य रेखा के पास लैंडिंग कराना आसान है। ऐसा इसलिए कि चंद्रमा के भूमध्य रेखा के पास तकनीकी सेंसर और संचालन के लिए आवश्यक अन्य उपकरण सूर्य से सीधी रोशनी प्राप्त करते हैं। इसीलिए अब तक सभी अंतरिक्ष यान चंद्रमा के भूमध्य रेखा के करीब उतरे।
चंद्रमा सूर्य के सापेक्ष कुछ इस तरह स्थित है कि सूर्य की किरणें चंद्रमा के कुछ ध्रुवीय क्षेत्रों को छू भी नहीं पातीं और वहां के गड्ढों की गहराई तक नहीं पहुंच पाती हैं। ये गड्ढे ठंडी अवस्था में हैं। ऐसे क्षेत्रों में तापमान शून्य से 230 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। ज़ाहिर है, ऐसी जगहों पर लैंडिंग करना और तकनीकी प्रयोग करना बहुत मुश्किल है।
दक्षिणी ध्रुव महत्वपूर्ण है क्योंकि माना जाता है कि इस क्षेत्र में पानी की बर्फ है जो भविष्य में चंद्रमा पर मानव के बसने की संभावना को बल देता है। चंद्रयान-3 लैंडर विक्रम अपने साथ 'प्रज्ञान' नामक रोवर ले गया है जो चंद्रमा की सतह की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करेगा और पानी की खोज करेगा।
प्रज्ञान अपने लेजर बीम का उपयोग चंद्रमा की सतह के टुकड़े को पिघलाने के लिए करेगा और इस प्रक्रिया में उत्सर्जित गैसों का विश्लेषण करेगा। इस मिशन के माध्यम से भारत न केवल चंद्रमा की सतह के बारे में ज्ञान का खजाना हासिल करेगा, बल्कि भविष्य में मानव निवास के लिए इसकी क्षमता भी हासिल करेगा।
यह अभियान सफल होने पर चंद्रयान-3 मिशन भारत के अंतरिक्ष उद्योग के लिए एक बड़ा बढ़ावा देने वाला होगा। यह न केवल एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत करेगा, बल्कि भविष्य की चंद्रमा की खोज पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। यह मिशन अंतरग्रहीय मिशनों के लिए नई तकनीक का भी प्रदर्शन करेगा।