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चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग के लिए क्या उपाय किए गए?

चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग के लिए क्या उपाय किए गए?

चंद्रयान-3 से देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों को काफ़ी उम्मीदें हैं। इन उम्मीदों के पीछे वजह भी है। जानिए, आख़िर इन उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए इस बार सुरक्षा के क्या-क्या इंतज़ाम किए गए हैं।

चंद्रमा पर 2019 में भारत का चंद्रयान-2 नहीं उतर पाया, लेकिन कहा जाता है कि इसने अब चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग के लिए बड़ी सीख दी है। 2019 में जो खामियाँ दिखीं उनको दूर करते हुए अब चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर भेजा गया है। तो सवाल है कि इसमें आख़िर वो क्या उपाय किए गए हैं कि वह चंद्रयान-2 में किए गए उपायों से अलग है?

यह सवाल इसलिए कि यान को चंद्रमा पर उतारना ही सबसे जटिल काम है। कुछ दिन पहले ही रूसी अंतरिक्ष यान लूना-25 आख़िर में चंद्रमा की सतह से टकराकर ध्वस्त हो गया। 2019 में भी भारत के चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर सॉफ्ट लैंड नहीं कर पाया था। दरअसल, अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की सतह पर उतरने में लगने वाला क़रीब 15 मिनट के समय को 'आतंक के 15 मिनट' कहा जाता है। यह बेहद ही अहम क्षण होता है। 

दरअसल, 2019 में चंद्रयान-2 मिशन से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के सिवन ने लैंडिंग के अंतिम चरण को 'आतंक के 15 मिनट' कहा था। यह टिप्पणी चंद्र कक्षा से चंद्रमा की सतह तक उतरने में शामिल जटिलता की स्थिति बताती है। यह चंद्रमा मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है। 

2019 के अभियान से सीख लेते हुए इस बार अंतरिक्ष यान को आवश्यक ईंधन और ऊर्जा की मात्रा को ध्यान में रखते हुए लैंडर में संरचनात्मक परिवर्तन, निर्माण और मिशन को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है। इसी वजह से इस बार लैंडर अधिक भारी है।

इसके अलावा, सोलर पैनल पिछली बार की तुलना में बड़े हैं। चंद्रयान-3 में अधिक बिजली पैदा करने के लिए अधिक सौर पैनल भी हैं। टैंक बड़े हो गए हैं... क्योंकि इस बार इसमें अधिक ईंधन है। पहले एक इंजन का इस्तेमाल होता था, इस बार दो इंजन लगे हैं। 

कहा जा रहा है कि भारत ने इस बार अपने पहले के दो अभियानों की विफलता से बड़ी सीख ली है। इसरो के चंद्रयान-1 का मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर विफल रहे थे। वे जिस क्षेत्र में उतरने की कोशिश में विफल हुए थे उसी क्षेत्र में अब चंद्रयान-3 को उतरने के लिए भेजा गया है।

पिछली बार चंद्रयान-2 अपनी ज्यादा गति, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन के विफल हो जाने की वजह से सॉफ्ट लैंड नहीं हो पाया था। इस बार चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स और कैमरे लगाए गए हैं।

एलएचडीएसी कैमरे को विक्रम लैंडर को सुरक्षित चांद की सतह पर उतारने के लिए ही बनाया गया है। इसके साथ ही लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा, लेजर अल्टीमीटर, लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरे लगाए गए हैं ताकि यान को सुरक्षित उतारा जा सके। ये कैमरे और सेंसर लैंडिंग के लिए बेहतर लोकेशन, लैंडर की गति और स्थिति की जानकारी कम्प्यूटर को देंगे। ये कम्प्यूटर सेफ्टी मोड के लिए लगाए गए हैं। किसी ख़तरे की स्थिति को भी ये कैमरे और सेंसर कम्प्यूटर को देंगे और स्थिति को नियंत्रित किया जा सकेगा। 

इसरो के पूर्व निदेशक के सिवन ने कहा है, 'पिछली बार लैंडिंग प्रक्रिया के बाद हमने डेटा का अध्ययन किया था... उसी के आधार पर सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं। इतना ही नहीं, हमने कुछ और भी किया। हमने जो सुधार किया उससे कहीं अधिक। जहां भी मार्जिन कम है, हमने उन मार्जिन को बढ़ाया... चंद्रयान-2 से हमने जो सबक सीखा है, उसके आधार पर, सिस्टम अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ रहा है...।'

विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि चंद्रयान इस बार सफलतापूर्वक सतह पर उतर पाएगा क्योंकि इस बार इसमें सुरक्षा के समूचित उपाय किए गए हैं। यदि यह अभियान सफल होता है तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश हो जाएगा।

दुनिया भर के देशों ने चंद्रमा पर भले ही 20 से अधिक बार सफल लैंडिंग की है, पिछले 10 वर्षों में तीन चीनी लैंडिंग को छोड़कर, चंद्रमा पर सभी सफल लैंडिंग 1966 और 1976 के बीच एक दशक के भीतर हुईं। पिछले कुछ दशकों से चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान भेजने में दिलचस्पी कम हुई थी, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में एक बार फिर से कई देशों में इसको लेकर होड़ लग गई है। 

पिछले चार वर्षों में, चार देशों- भारत, इज़राइल, जापान और अब रूस की सरकारी और निजी अंतरिक्ष एजेंसियों ने चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यान उतारने की कोशिश की है, लेकिन असफल रहे। इनमें से प्रत्येक मिशन को अंतिम चरण में लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान समस्याओं का सामना करना पड़ा और चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। अब चंद्रयान-3 से काफी बड़ी उम्मीदें हैं। 

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