रूसी लूना की विफलता के बाद चंद्रयान-3 से कितनी बड़ी उम्मीदें?
रूसी अंतरिक्ष यान लूना-25 की विफलता के बावजूद दुनिया को भारत के चंद्रयान-3 से बड़ी उम्मीदें हैं। ऐसा इसलिए कि भारत के अंतरिक्ष यान में सुरक्षा को वो सारे उपाय किए गए हैं जिसकी वजह से भारत का पिछला अभियान विफल रहा था। रविवार को रूसी यान की विफलता के बाद जब सोमवार को चंद्रयान-3 द्वारा ली गई चंद्रमा की तस्वीर जारी की गई तो इससे उम्मीदें और बढ़ गईं।
चंद्रयान-3 के लैंडर द्वारा ली गई चंद्रमा की ताजा तस्वीरों ने इसके दूर के हिस्से पर कुछ प्रमुख गड्ढों की पहचान की, जो हमेशा पृथ्वी से दूर की ओर होते हैं। ये तस्वीरें इसलिए ली गईं ताकि चंद्रयान को लैंड करने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढा जा सके। इसरो ने तस्वीरें साझा करते हुए ट्वीट किया है कि ये लैंडर हैज़र्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस कैमरा (एलएचडीएसी) द्वारा ली गई चंद्रमा के दूर के हिस्से की तस्वीरें हैं। यह कैमरा एक सुरक्षित लैंडिंग क्षेत्र का पता लगाने में सहायता करता है।
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 21, 2023
Here are the images of
Lunar far side area
captured by the
Lander Hazard Detection and Avoidance Camera (LHDAC).
This camera that assists in locating a safe landing area -- without boulders or deep trenches -- during the descent is developed by ISRO… pic.twitter.com/rwWhrNFhHB
चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को उतरना है। इससे काफ़ी उम्मीदें हैं। लेकिन इस बीच रूस द्वारा भेजे गये यान के विफल होने के बाद चंद्रयान-3 की सफलता के बारे में बात होने लगी। विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि चंद्रयान इस बार सफलतापूर्वक सतह पर उतर पाएगा क्योंकि इस बार इसमें सुरक्षा के समूचित उपाय किए गए हैं।
इसरो के पूर्व निदेशक के सिवन ने एएनआई से कहा, 'पिछली बार लैंडिंग प्रक्रिया के बाद हमने डेटा का अध्ययन किया था... उसी के आधार पर सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं। इतना ही नहीं, हमने कुछ और भी किया। हमने जो सुधार किया उससे कहीं अधिक। जहां भी मार्जिन कम है, हमने उन मार्जिन को बढ़ाया... चंद्रयान-2 से हमने जो सबक सीखा है, उसके आधार पर, सिस्टम अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ रहा है...।'
बता दें कि 2019 में चंद्रयान-2 मिशन से पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के सिवन ने लैंडिंग के अंतिम चरण को 'आतंक के 15 मिनट' कहा था। यह टिप्पणी चंद्र कक्षा से चंद्रमा की सतह तक उतरने में शामिल जटिलता की स्थिति बताती है। यह चंद्रमा मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है।
2019 के अभियान से सीख लेते हुए इस बार अंतरिक्ष यान को आवश्यक ईंधन और ऊर्जा की मात्रा को ध्यान में रखते हुए लैंडर में संरचनात्मक परिवर्तन, निर्माण और मिशन को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है। इसी वजह से इस बार लैंडर अधिक भारी है।
इसके अलावा, सोलर पैनल पिछली बार की तुलना में बड़े हैं। चंद्रयान-3 में अधिक बिजली पैदा करने के लिए अधिक सौर पैनल भी हैं। टैंक बड़े हो गए हैं... क्योंकि इस बार इसमें अधिक ईंधन है। पहले एक इंजन का इस्तेमाल होता था, इस बार दो इंजन लगे हैं।
कहा जा रहा है कि भारत ने इस बार अपने पहले को दो अभियानों की विफलता से बड़ी सीख ली है। इसरो के चंद्रयान-1 का मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर विफल रहे थे। वे जिस क्षेत्र में उतरने की कोशिश में विफल हुए थे उसी क्षेत्र में चंद्रयान-3 को उतरने के लिए भेजा गया है।
यदि यह अभियान सफल होता है तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश हो जाएगा।
दुनिया भर के देशों ने चंद्रमा पर भले ही 20 से अधिक बार सफल लैंडिंग की है, पिछले 10 वर्षों में तीन चीनी लैंडिंग को छोड़कर, चंद्रमा पर सभी सफल लैंडिंग 1966 और 1976 के बीच एक दशक के भीतर हुईं। पिछले कुछ दशकों से चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान भेजने में दिलचस्पी कम हुई थी, लेकिन हाल के कुछ वर्षों में एक बार फिर से कई देशों में इसको लेकर होड़ लग गई है।
पिछले चार वर्षों में, चार देशों- भारत, इज़राइल, जापान और अब रूस की सरकारी और निजी अंतरिक्ष एजेंसियों ने चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यान उतारने की कोशिश की है, लेकिन असफल रहे। इनमें से प्रत्येक मिशन को अंतिम चरण में लैंडिंग प्रक्रिया के दौरान समस्याओं का सामना करना पड़ा और चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। तो सवाल है कि क्या भारत इस बार चंद्रयान-3 से इतिहास रच पाएगा?