गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद 31 मई तक खरीद का निर्देश क्यों?
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने कहा है कि केंद्र ने गेहूं उत्पादक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मई तक गेहूं की खरीद जारी रखने के लिए कहा है। यह बयान तब जारी किया गया है जब तीन दिन पहले ही केंद्र ने गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। और इस प्रतिबंध से एक दिन पहले ही यानी 12 मई को बयान जारी कर कहा गया था कि केंद्र 9 देशों में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है ताकि भारत से गेहूँ के निर्यात की संभावनाओं की तलाश की जाए।
आख़िर ऐसा क्यों है कि जहाँ एक दिन पहले ही आए बयान से निर्यात को बढ़ावा देने की बात की जा रही थी वहीं एक दिन बाद ही निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया?
कहा जा रहा है कि सरकार को अब गेहूँ की बढ़ती क़ीमतों को लेकर चिंता सताने लगी है। गेहूं का दैनिक औसत खुदरा मूल्य 9 मई को 19.34 प्रतिशत बढ़कर 29.49 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया, जबकि एक साल पहले यह 24.71 रुपये प्रति किलोग्राम था। ऐसी बढ़ोतरी अभी हुई है जब फ़सल कटी है। नवंबर-दिसंबर आते-आते बड़ी बढ़ोतरी की आशंका जताई गई।
ऐसा इसलिए भी हुआ कि इस बार गेहूँ का उत्पादन कम हुआ है और निर्यात का लक्ष्य बढ़ा दिया गया। देश के गेहूं का उत्पादन 2022-23 के लिए 111 मिलियन टन के पहले के अनुमान से कम करके 105-106 मिलियन टन कर दिया गया है।
इस वजह से इस महीने की शुरुआत में ही साफ़ हो गया था कि गेहूँ की सरकारी खरीद का जो अनुमान पहले लगाया गया था उससे 50 फ़ीसदी कम ख़रीद की आशंका है। सरकार ने मौजूदा रबी खरीद सीजन के लिए अपने गेहूँ खरीद अनुमान को घटाकर 19.5 मिलियन टन कर दिया है। जबकि पहले गेहूँ खरीद का अनुमान 44.4 मिलियन टन का लगाया गया था।
साफ़ शब्दों में कहें तो गेहूँ का उत्पादन कम होना, सरकारी खरीद कम होना और अभी ही गेहूँ की क़ीमतें बढ़ना, सरकार के लिए ये चिंता की बड़ी वजहें हैं। यही वजह है कि इसने गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
हालाँकि, प्रतिबंध में कुछ छूट का प्रावधान भी है। सरकार ने अधिसूचना की तारीख को या उससे पहले जारी वैध अपरिवर्तनीय साख पत्र यानी एलओसी के साथ गेहूं शिपमेंट की अनुमति दी है। देश ने चालू वित्त वर्ष में अब तक 45 लाख टन गेहूं के निर्यात का अनुबंध किया है। इनमें से अप्रैल में 14.6 लाख टन निर्यात किया गया था। इसके साथ ही सरकार ने कहा कि निर्यात तब भी हो सकता है जब नई दिल्ली अन्य सरकारों द्वारा 'उनकी खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए' अनुरोध को मंजूरी दे। मिस्र इस छूट के संदर्भ में भारत के साथ बातचीत कर रहा है।
तो सवाल है कि सरकार ने एकाएक प्रतिबंध का ऐसा फ़ैसला क्यों लिया? 12 मई को वाणिज्य विभाग से एक बयान जारी कर कहा गया था कि केंद्र ने नौ देशों को भारत से गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने की संभावनाएं तलाशने के लिए व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजा। इसके एक दिन बाद ही शिपमेंट पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई। ऐसा क्यों हुआ? क्या सरकार को इसका अंदाजा एक दिन पहले भी नहीं लग पाया था?
मार्च के मध्य से तापमान में अचानक वृद्धि के कारण देश के गेहूँ उत्पादन में गिरावट का अंदेशा था। ऐसा इसलिए कि हीट वेव के कारण अनाज समय से पहले पक गया और सिकुड़ गया। लेकिन यह अप्रैल की शुरुआत तक पता चल गया था। अधिकांश रिपोर्टों में किसानों की पिछले साल की तुलना में 15-20 प्रतिशत कम उपज होने के संकेत मिलने लगे थे। लेकिन तब वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल अप्रैल के मध्य में भी 2022-23 में 10-15 मिलियन टन के निर्यात का अनुमान लगाने की बात कर रहे थे जो पिछले साल के रिकॉर्ड 7 मिलियन टन से भी ज़्यादा था। तब वह कह रहे थे कि भारतीय किसान दुनिया को खिलाएँगे। लेकिन इसी पीयूष गोयल ने ट्वीट कर सरकारी खरीद 31 मई तक होने की जानकारी दी है।
To ensure that no wheat farmer faces inconvenience, Modi Sarkar extends wheat procurement season till 31 May 2022. We are committed to ensuring farm prosperity. pic.twitter.com/FfUE2bwuWO
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) May 15, 2022
लेकिन अब हालत यह है कि गेहूं की क़ीमतें काफ़ी बढ़ने लगी हैं। और क़ीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकारी स्टॉक काफी अहम होता है। सरकारी स्टॉक गेहूँ की सरकारी खरीद से ही मज़बूत होता है। अब जबकि 50 फ़ीसदी भी खरीद पूरी होती नहीं दिखाई दे रही है तो 31 मई तक खरीद करने के राज्यों को निर्देश से क्या खास असर पड़ेगा? यह अब इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या गेहूँ अब किसानों के पास बचा भी है?