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अब रिज़र्व बैंक को भी 'सरकारी तोता' बनाने की कोशिश?

अब रिज़र्व बैंक को भी 'सरकारी तोता' बनाने की कोशिश?

84 साल में पहली बार किसी सरकार ने आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर रिज़र्व बैंक को निर्देश दिया है। क्या यह रिज़र्व बैंक को 'क़ाबू' में करने की तैयारी है?

केन्द्र सरकार ने रिज़र्व बैंक अॉफ इंडिया (आरबीआई) के ख़िलाफ़ आरबीआई ऐक्ट, 1934 के सेक्शन 7 का इस्तेमाल किया है। आरबीआई के 84 साल के इतिहास में आज तक किसी भी सरकार ने इसका इस्तेमाल नहीं किया था। मोदी सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि उसने सत्ता में आने के बाद से ही संवैधानिक सन्स्थाओं को कमज़ोर करने की कोशिश की है। ऐसे में एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आख़िर क्यों इस सरकार में संवैधानिक संस्थाओं पर चुन-चुनकर हमले किए जा रहे हैं।

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मोदी सरकार पर इससे पहले न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग, सीबीआई जैसे संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता में दख़ल देने के आरोप लगे हैं। अब आरबीआई पर सेक्शन 7 का इस्तेमाल करने के बाद केन्द्रीय बैंक भी इसमें शामिल हो गया है। सेक्शन 7 का इस्तेमाल सीधे-सीधे केन्द्रीय बैंक को चुनौती है और बताया जा रहा है कि बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इससे ख़ासे नाराज़ हैं और वह अपने पद से इस्तीफ़ा दे सकते हैं।

क्या है आरबीआई ऐक्ट, 1934 का सेक्शन 7

आइए, जानते हैं कि आरबीआई ऐक्ट, 1934 का सेक्शन 7 क्या है। सेक्शन 7 के तहत केन्द्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सार्वजनिक हितों के मुद्दों पर आरबीआई को सीधे-सीधे निर्देश दे सकती है और आरबीआई इसे मानने से इनकार भी नहीं कर सकता जबकि सामान्य स्थितियों में सरकार आरबीआई को निर्देश नहीं, सिर्फ सुझाव दे सकती है। 

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़, सेक्शन 7 के तहत सरकार को मिले अधिकार के तहत बीते एक से दो सप्ताह में आरबीआई गवर्नर को दो पत्र भेजे जा चुके हैं। सरकार ने पत्र भेजकर नॉन-बैंकिंग फाइनेंशल कंपनियों (NBFCs) के लिए लिक्विडिटी, कमज़ोर बैंकों को पूँजी और लघु एवं मध्यम उद्योगों (SMEs) को कर्ज़ दिए जाने से सम्बन्धित नीतियों को लचीला बनाने के निर्देश दिए हैं।

इसके अलावा केन्द्रीय बैंक के ब्याज दरों में कटौती करने से इनकार करने, एनपीए को लेकर सर्क्युलर जारी करने और सरकार की ओर से अलग पेमेंट रेग्युलेटर बनाने की कोशिशों के चलते बैंक और आरबीआई में विवाद चल रहा है।

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वित्त मन्त्रालय ने इस मामले में बयान जारी कर कहा है कि आरबीआई की स्वायत्तता ज़रूरी है और सरकार उसकी स्वायत्तता का सम्मान करती है। मन्त्रालय ने कहा है कि बैंक और सरकारें दोनों जनहित का काम करें और इसे लेकर दोनों के बीच समय-समय पर विचार-विमर्श होता रहता है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने कहा है कि यदि ये ख़बरें सही हैं कि सरकार ने सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर रिज़र्व बैंक को कुछ 'अभूतपूर्व' निर्देश दिए हैं तो मुझे डर है कि आज कई और बुरी ख़बरें आ सकती हैं।

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रिज़र्व बैंक के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य

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कुछ दिन पहले ही बैंक के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य ने केन्द्र सरकार को चेतावनी दी थी कि बैंक के कामकाज में केन्द्र का दख़ल ख़तरनाक साबित हो सकता है। ग़ौरतलब है कि नोटबन्दी के बाद से ही सरकार और आरबीआई के रिश्ते ख़राब होने शुरू हो गए थे। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा था कि उन्हें नोटबंदी के क़दम की कोई जानकारी नहीं थी और वे कभी भी इसके पक्ष में नहीं रहे। पीएनबी घोटाले को लेकर भी केन्द्र और आरबीआई में तनातनी की ख़बरें आई थीं।

केन्द्र सरकार की ओर से सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद यह आशंका पैदा हो गई है कि भविष्य में यही या कोई दूसरी सरकार इसका इस्तेमाल कर बैंक की स्वायत्तता को चुनौती दे सकती है। ऐसा इसलिए कि 84 साल में पहली बार इसका इस्तेमाल किया गया है। हालाँकि सरकार ने आरबीआई की स्वायत्तता का सम्मान करने की बात कही है, लेकिन सरकार का यह कदम उसकी मंशा पर सवाल खड़े करता है।

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